हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम:
कुछ विद्वानों ने सुहाग रात में बीवी से मिलने से पूर्व दो रकअत नमाज़ पढ़ना मुसतहब समझा है, और इस विषय में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई सुन्नत (तरीक़ा) वर्णित नहीं है बल्कि कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णन मिलता है:
1- अबू उसैद के मौला अबू सईद से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने शादी की जबकि मैं अभी ममलूक (गुलाम) था, तो मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ सहाबा को आमंत्रणित किया जिन में इब्ने मसऊद, अबू ज़र और हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हुम भी थे। वह कहते हैं : . . . उन्हों ने मुझे शिक्षा देते हुए कहा: (जब तुम्हारे पास तुम्हारी पत्नी को लाया जाये तो तुम दो रकअत नमाज़ पढ़ो, फिर तुम अल्लाह तआला से उस चीज़ की भलाई का प्रश्न करो जो तुम्हारे पास आई है, और उसके शर (बुराई) से अल्लाह का शरण मांगो, फिर तुम अपनी पत्नी के समीप जाओ।) इसे इब्ने अबी शैबा ने अपनी किताब “अल-मुसन्नफ” (3/401) में, और अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने भी अपनी किताब “अल-मुसन्नफ” (6/191) में रिवायत किया है और शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने कहा है कि “उसकी सनद अबू सईद तक सही है, और वह एक मसतूर रावी हैं।”
“आदाबुज़्ज़फाफ” (पृष्ठ / 22)
2- शक़ीक़ से वर्णित है कि उन्हों ने कहा: एक आदमी अब्दुल्लाह (अर्थात् इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु) के पास आया जिसे अबू जरीर कहा जाता था, तो उसने कहा : मैं ने एक युवा लड़की से शादी की है और मुझे भय है कि वह मुझसे घृणा करेगी। वह कहते हैं कि तो अब्दुल्लाह ने कहा: लगाव और प्रेम अल्लाह की ओर से है और घृणा शैतान की ओर से है, वह चाहता है कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो चीज़ हलाल कर दिया है उसे तुम्हारे निकट घृणित और नापसंदीदा बना दे, अतः जब वह तुम्हारे पास आए तो उसे आदेश दो कि वह तुम्हारे पीछे दो रकअत नमाज़ पढ़े।” इसे इब्ने अबी शैबा ने “अल-मुसन्नफ” (3/402), अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने “अल-मुसन्न्फ” (6/191) में और तबरानी ने “अल-मोजम अल-कबीर” (9/204) में रिवायत किया है।
शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “उसकी सनद सहीह है।”
“आदाबुज़्ज़फाफ” (पृष्ठ / 24)
तथा शैख इब्ने बाज़ से प्रश्न किया गया कि : लोग कहते हैं कि शादी के लिए एक नमाज़ है, और उसे सुन्नत या शादी की सुन्नत का नाम देते हैं, और वह प्रवेश करने से पूर्व अर्थात् संभोग से पहले है, तथा वे कहते हैं कि : दो रकअत नमाज़ पढ़ी जाये और उसके बाद प्रवेश किया जाये। धन्यवाद के साथ हमें जानकारी प्रदान करें।
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
“इस संबंध में कुछ सहाबा से कुछ आसार (हदीसें) वर्णित हैं कि प्रवेश करने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़ी जाए, किंतु इस बारे में कोई ऐसी सूचना (हदीस) नहीं है जिस पर प्रमाणिकता की दृष्टि से भरोसा किया जा सके, यदि वह दो रकअत पढ़ता है जैसा कि कुछ पूर्वजों ने किया है तो इसमें कोई बात (आपत्ति) नहीं है, और यदि वह ऐसा नहीं करता है तब भी कोई आपत्ति नहीं, और इस विषय में मामला विस्तार पूर्ण है, और मैं इस बारे में कोई सहीह सुन्नत नहीं जानता जिस पर भरोसा किया जा सके।”
दूसरा:
जहाँ तक उसे बुलंद आवाज़ से या धीमी आवाज़ मे पढ़ने के हुक्म का संबंध है: तो यदि वह रात को पढ़ी जा रही है तो बुलंद आवाज़ से पढ़ी जायेगी, और यदि दिन के समय पढ़ी जा रही है तो धीमी आवाज़ में पढ़ी जायेगी, अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (113891) का उत्तर देखें। उन दोनों रकअतों में जो चाहे पढ़ सकते हैं।
तीसरा:
जहाँ तक दुआ का प्रश्न है तो वह अपने हाथ को उसके सिर के सामने के भाग (पेशानी) पर रखकर कहे:
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ خَيْرَهَا وَخَيْرَ مَا جَبَلْتَهَا عَلَيْهِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَمِنْ شَرِّ مَا جَبَلْتَهَا عَلَيْهِ
उच्चारण: अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुका खैरहा व खैरा मा जबल्तहा अलैहि, व अऊज़ो बिक मिन शर्रिहा व मिन शर्रे मा जबल्तहा अलैहि।
“ऐ अल्लाह, मैं तुझसे इसकी भलाई और उस भलाई का प्रश्न करता हूँ जिस पर तू ने इसे पैदा किया है, तथा मैं इसके शर और उस शर से तेरे शरण में आता हूँ जिस पर तू ने इसे पैदा किया है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या: 2160) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सुनन अबू दाऊद में इसे हसन कहा है।
और - हमारी जानकारी के अनुसार - सुन्नत (हदीस) में इस दुआ के समय का निर्धारण वर्णित नहीं हुआ है, इसलिए चाहे तो इसे दो रकअत नमाज़ पढ़ने से पूर्व पढ़े या उसके बाद।