हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
वे साधन जो धर्म पर दृढ़ रहने में मदद करते हैं, विशेष रूप से प्रलोभन के समय, दो प्रकार के हैं :
पहला प्रकार :
ऐसे साधन जो ईमान व यक़ीन (विश्वास एवं निश्चितता) को बढ़ाते हैं। अर्थात् जो अल्लाह की आज्ञा का पालन करने पर उभारते हैं और अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और उन्हीं के माध्यम से बंदा ईमान का स्वाद चखता है।
उनमें से : एक अल्लाह के सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन माँगना है। मुसलमान के लिए प्रत्येक नमाज़ में यह दुआ माँगना अनिवार्य है : اهدنا الصراط المستقيم "हमें सीधे रास्ते का मार्गदर्शन कर।" [सूरतुल-फ़ातिहा : 6]
तबरानी ने ''अल-मो'जमुल-कबीर'' (7135) में शद्दाद इब्न औस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णन किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझसे कहा : "ऐ शद्दाद बिन औस! यदि तुम लोगों को सोना और चाँदी जमा करते हुए देखो, तो तुम इन शब्दों को जमा करना : ''अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका अस्-सबाता फ़िल-अम्र वल-अज़ीमता अलर्-रुश्द, व अस-अलुका मूजिबाति रहमतिका व अज़ाइमा मग़फिरतिका...'' (ऐ अल्लाह! निःसंदेह मैं तुझसे मामले में दृढ़ता और सही मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प माँगता हूँ। तथा मैं तुझसे तेरी दया के कारणों और तेरी क्षमा के संकल्प का सवाल करता हूँ...'' इसे अलबानी ने ''सिलसिलतुल-अहादीस अस-सहीहा'' (3228) में सहीह कहा है।
उन्हीं में से : अल्लाह के धर्म का पालन करना और उसमें से किसी भी चीज़ में लापरवाही न करना है। अल्लाह तआला का फरमान है :
وَأَنَّ هَذَا صِرَاطِي مُسْتَقِيمًا فَاتَّبِعُوهُ وَلَا تَتَّبِعُوا السُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمْ عَنْ سَبِيلِهِ ذَلِكُمْ وَصَّاكُمْ بِهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
الأنعام / 153.
"तथा यह कि यही मेरा सीधा मार्ग है। सो तुम उसी पर चलो। और दूसरी राहों पर न चलो, अन्यथा वे तुम्हें उसकी राह से हटाकर इधर-उधर कर देंगे। यही वह बात है, जिसकी ताकीद उसने तुम्हें की है, ताकि तुम उसके आज्ञाकारी रहो।” [सूरतुल-अनआम : 153]
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
يُثَبِّتُ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ
إبراهيم/27
"अल्लाह ईमान लाने वालों को दृढ़ बात के द्वारा दुनिया तथा आख़िरत में स्थिरता प्रदान करता है।" [सूरत इबराहीम : 27]
क़तादा ने कहा : "जहाँ तक इस दुनिया के जीवन की बात है, तो वह उन्हें भलाई और नेक कामों के द्वारा स्थिर रखता है, और आख़िरत में भी।'' यानी कब्र में।'' "तफ़सीर इब्ने कसीर" (4/502)
उन्हीं में से : सुन्नत का पालन करना है।
इरबाज़ बिन सारिया रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : "तुम मेरी सुन्नत और सही मार्गदर्शित खलीफाओं की सुन्नत (मार्ग) का पालन करो। उसे मज़ूती से पकड़ लो और उसे दाढ़ से जकड़ लो। और नए-नए आविष्कार किए गए मामलों से सावधान रहो, क्योंकि हर नया-नया आविष्कार किया गया मामला एक बिदआत (नवाचार) है, और हर बिदअत पथभ्रष्टता है।'' इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4607) ने रिवायत किया है और अलबानी ने 'सहीह अबू दाऊद' में इसे सहीह कहा है।”
उन्हीं में से : अल्लाह का अधिक से अधिक स्मरण करना है।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : शैतान आदम के बेटे के दिल पर घात लगाए बैठा है; यदि वह भूल जाता है और असावधान हो जाता है, तो वह वसवसा डालता (भर्मित करता) है, और जब वह अल्लाह को याद करता है, तो वह पीछे हट जाता है।''
देखें : ''तफ़सीर अत-तबरी'' (24/709-710).
दूसरा प्रकार :
ऐसे साधन जो प्रलोभन में पड़ने से बचाते हैं।
उनमें से : एक अल्लाह के आदेश का पालन करने में धैर्य से काम लेना है :
अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4341) ने अबू सा'लबा अल-ख़ुशनी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रिवायत किया कि आपने फरमाया : "तुम्हारे आगे सब्र के दिन हैं, जिसमें सब्र करना जलते अंगारों को पकड़ने के समान होगा। उनमें अच्छे कर्म करने वाले को उसके समान कर्म करने वाले पचास मनुष्यों का प्रतिफल मिलेगा।'' पूछा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! उनमें से पचास आदमियों का प्रतिफलॽ आपने उत्तर दिया : "तुममें से पचास आदमियों का प्रतिफल।" अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” में इसे सहीह कहा है।
उन्हीं में से : दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकार के प्रलोभनों से अल्लाह की शरण लेना है :
सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 2867) में ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन अपने साथियों से कहा : "अल्लाह की शरण लो दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकार के प्रलोभनों से।'' तो सहाबा ने कहा : हम दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकार के फ़ित्नों (प्रलोभनों) से अल्लाह की शरण लेते हैं।''
उन्हीं में से : एक है सर्वशक्तिमान अल्लाह की निगरानी को ध्यान में रखना, अर्थात् हमेशा यह ध्यान में रखना कि अल्लाह हमें देख रहा है और हमारा निरीक्षण कर रहा है।
तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2516) ने वर्णन किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह (के नियमों) की रक्षा करो, वह तुम्हारी रक्षा करेगा। अल्लाह (के अहकाम) की रक्षा करो, तुम उसे अपने सामने पाओगे।” अलबानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह करार दिया है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :
''अल्लाह की रक्षा करो, वह तुम्हारी रक्षा करेगा।'' एक ऐसा वाक्य है जो इंगित करता है कि जब भी कोई व्यक्ति अल्लाह के धर्म की रक्षा करेगा, अल्लाह उसकी रक्षा करेगा।
लेकिन उसकी रक्षा किस चीज़ में करेगाॽ अल्लाह उसके शरीर के संदर्भ में उसकी रक्षा और देखभाल करेगा, तथा उसके धन, उसके परिवार और उसके धर्म के संदर्भ में उसकी रक्षा करेगा, और यह बात सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है कि वह तुम्हे भटकाव और गुमराही से सुरक्षित रखेगा। क्योंकि इनसान जितना ज़्यादा हिदायत पर आता है, अल्लाह उसे हिदायत में उतना ही ज़्यादा बढ़ा देता। وَالَّذِينَ اهْتَدَوْا زَادَهُمْ هُدًى وَآتَاهُمْ تَقْواهُمْ "और जो लोग मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं, वह उनका मार्गदर्शन बढ़ाता है और उन्हें परहेज़गारी देता है।'' [मुहम्मद : 17]। तथा जितना अधिक वह भटकता है - अल्लाह न करे - उतना ही वह गुमराही में बढ़ जाता है।" उद्धरण समाप्त हुआ।
''शर्ह रियाज़ुस-सालिहीन'' (पृष्ठ : 70)
उन्हीं में से : सदाचारी मोमिनों के साथ संगति करना और उन लोगों के साथ संगति करने से बचना जो प्रलोभन ग्रस्त हैं।
अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4918) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है, वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : "(एक) मोमिन, (दूसरे) मोमिन का दर्पण है, और (एक) मोमिन (दूसरे) मोमिन का भाई है। वह उसे विनाश एवं घाटे से बचाता है और उसकी देखभाल और संरक्षण करता है।” अलबानी ने ''सहीह अबू दाऊद'' में इस हदीस को हसन कहा है।
तथा उन्होंने (4833) अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से यह भी रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "आदमी अपने क़रीबी दोस्त के रास्ते पर चलता है। इसलिए तुम में से एक को देखना चाहिए कि वह किसे अपना घनिष्ठ मित्र बनाता है।” इस हदीस को अलबानी ने ''सहीह अबू दाऊद'' में हसन कहा है।
धर्म पर सुदृढ़ रहने के सबसे लाभकारी साधनों में से ; एक यह है कि अपने आपको प्रलोभनों के संपर्क में नहीं लाना चाहिए, तथा प्रलोभनों से और उनके कारणों से दूर रहकर स्वयं को बचाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि दिल के लिए स्थिति स्पष्ट हो जाए और वह ईमान का स्वाद चख सके। दज्जाल के बारे में वर्णित हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन आया है : ''जो कोई भी दज्जाल के बारे में सुने, वह उससे दूर रहे। क्योंकि अल्लाह की क़सम! एक आदमी यह सोचकर उसके पास आएगा कि वह मोमिन है, फिर वह उसके साथ भेजे गए संदेहों के कारण उसके पीछे चल पड़ेगा।'' इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4319) ने रिवायत किया है और अलबानी ने ''सहीह अबू दाऊद'' में इसे सहीह कहा है।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और हमारे मुस्लिम भाइयों को अपने धर्म पर दृढ़ता प्रदान करे, और हमें दृश्य और अदृश्य दोनों तरह के प्रलोभनों से सुरक्षित रखे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।