हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।मोज़ों पर मसह करने के जाइज़ होने के लिए नीयत करना शर्त नहीं है, यदि उसने पवित्रता (वुज़ू) की हालत में मोज़े पहने हैं, तो उसके लिए उन पर मसह करना जाइज़ है, और उसके लिए शर्त नहीं है कि वुज़ू से पहले मसह करने की नीयत करे,बल्कि जब वुज़ू में उसकी जगह पहुंचेगा तो उन पर मसह करेगा और उसके लिए वह काफी होगा।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : क्या मोज़ों पर मसह करने के जाइज़ होने के लिए यह शर्त है कि वह उन पर मसह करने ही नीयत करे ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया : “यहाँ नीयत करना अनिवार्य नहीं है,क्योंकि यह ऐसा अमल है जिसके मात्र पाए जाने पर हुक्म को लंबित किया गया है,इसलिए नीयत की ज़रूरत नहीं है, जैसे कि यदि कपड़ा पहन ले तो उसके लिए शर्त नहीं है कि वह इसके द्वारा उदाहरण के तौर पर नमाज़ के अंदर अपने शरमगाह को छिपाने की नीयत करे, अतः मोज़े को पहनने में इस बात की नीयत करने की शर्त नहीं है कि वह उन पर मसह करेगा, और इसी तरह न अवधि की नीयत करना ही शर्त है। बल्कि यदि वह मुसाफिर है तो उसके लिए तीन दिन मसह करने की अनुमति है चाहे उसकी नीयत करे या नीयत न करे,और यदि वह निवासी है तो उसके लिए एक दिन और एक रात है चाहे उसने उसकी नीयत की हो या नीयत न की हो।” मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन (11/117)
रही बात उस व्यक्ति कि जिसने मोज़ों पर मसह किया फिर उसे याद आया कि मसह की अवधि समाप्त हो गई है,तो यदि यह मसह करने के तुरंत पश्चात है जैसाकि प्रश्न करने वाले ने वर्णन किया है तो उसके लिए काफी है कि वह मोज़े उतार दे फिर मात्र अपने दोनों पैर धुल ले,क्योंकि वुज़ू के अंगों को धुलने के बीच निरंतरता पाई गई,क्योंकि उसने सिर का मसह करने और पैर धुलने के बीच लंबे समय का अंतराल नहीं किया है।
लेकिन यदि उसका स्मरण करना वुज़ू से फारिग होने की एक लंबी अवधि के बाद हुआ है तो उसके ऊपर वुज़ू को दोहराना और दोनों पैर धुलना अनिवार्य है,क्योंकि इस लंबे अंतराल के बाद वुज़ू के कुछ हिस्से का दूसरे हिस्से पर बिना करना (जोड़ना) जाइज़ नहीं है।
देखिए: “अश्शरहुल मुम्ते” (1/355).