हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
हम सिंघासन के परमेश्वर अल्लाह सर्वशक्तिमान से प्रश्न करते हैं कि वह आप को शीघ्र स्वास्थ्य प्रदान करे।
दूसरा :
रोगी के लिए रमज़ान के दिन में रोज़ा तोड़ना जाइज़ है, फिर जब अल्लाह तआला उसे निरोग्य करदे तो उसने जिन दिनों का रोज़ा तोड़ दिया है उनकी क़ज़ा करना उसके लिए आवश्यक है ; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وَمَنْ كَانَ مَرِيضاً أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ [البقرة : 185]
“और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे, अल्लाह तआला तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता है।” (सूरतुल बक़रा : 185)
तीसरा:
आप को चाहिए कि सबसे पहले आप दिन में कोई ऐसा काम तलाश करें जो आप की बीमारी के अनुकूल हो इस बात को ध्यान में रखते हुए कि दवाई का सेवन रात में हो, इस प्रकार आप दोनों हितों को एक साथ एकत्रित कर सकते हैं, यदि आप को केवल रात के समय ही काम मिले और उसके साथ (रात को) दवा लेना आप के लिए संभव न हो क्योंकि वह निद्रा लाने वाली दवा है - तो कोई हरज (पाप) की बात नहीं है कि आप रात को काम करें और दिन को उपचार (इलाज) लें, और आप के लिए रोज़ा तोड़ने में उज़्र है।
और यदि आपके लिए काम को छोड़ देना संभव है, चाहे केवल रमज़ान के महीने में ही क्यों न हो, फिर रमज़ान के बाद आप काम का आरंभ करें तो यह सर्वश्रेष्ठ है, जब तक कि इसका आप के ऊपर कोई हानि निष्कर्षित न होता हो जैसे कि आपका काम से निलंबित कर दिया जाना। तथा प्रश्न संख्या (65871) का उत्तर देखिए।
अल्लामा अल-हैतमी रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : “ और उसके लिए रोज़े का तोड़ देना जाइज़ है कटाई के लिए,या अपने लिए या दूसरे के लिए अनुदान करते हुए या मज़दूरी के द्वारा घर बनाने के लिए ... जबकि रात में काम करना कठिन हो ... और अगर उसके आवश्यक खूराक के लिए उसकी कमाई रूक जाये जिसके लिए वह मजबूर है, तो स्पष्ट बात यह है कि उसके लिए रोज़ा तोड़ना जाइज़ है, किंतु यह केवल आवश्यकता की मात्रा तक होना चाहिए।” किताब “तोहफतुल मुहताज” (3/430) से संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
अर्थात् उस व्यक्ति के लिए रोज़ा तोड़ना जाइज़ है जिसकी कमाई और उसका वह काम रूक जाए जिसके लिए वह मजबूर है, किंतु उसका रोज़ा तोड़ना आवश्यकता की मात्रा तक ही होना चाहिए।
इस आधार पर, आपके लिए रोज़ा तोड़ने में कोई आपत्ति की बात नहीं है यदि आपके लिए काम को छोड़ देना संभव नहीं है भले ही वह केवल रमज़ान में ही क्यों न हो।
फिर यदि यह बीमारी, ऐसी है जिस से शिफायाब (आरोग्य) होने की आशा की जाती है तो आप के ऊपर क़ज़ा करना अनिवार्य है यदि ऐसा करना आप के लिए आसान है। और यदि वह बीमारी डॉक्टरों के वचन (कहने) के अनुसार आपके साथ निरंतर रहने वाली है, तो आप के ऊपर क़ज़ा अनिवार्य नहीं है, बल्कि आप के ऊपर अनिवार्य यह है कि हर उस दिन के बदले जिनका रोज़ा आप ने तोड़ दिया है, एक गरीब को खाना खिलायें।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।