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वादा को पूरा करने का प्रतिफल और उसे तोड़ने की गंभीरता

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प्रकाशन की तिथि : 12-03-2012

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प्रश्न

वादा को पूरा करने का बदला क्या है और विश्वासघात करने का दंड क्या है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

क़ुरआन हकीम की आयतों और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों ने वादा और प्रतिज्ञा को पूरा करने की अनिवार्यता पर तर्क स्थापित किया है और उन्हें तोड़ने वाले या उनका उल्लंघन करने वाले के अपराध की घृणास्पद को स्पष्ट किया है, तथा कभी कभी उनका उल्लंघन करना कुफ्र तक पहुँचा देता है जैसाकि बनी इस्राईल वगैरह के साथ उस समय पेश आया जब उन्हों ने अपने पालनहार के साथ वादा और प्रतिज्ञा को तोड़ दिया, और अल्लाह तआला से उन्हों ने उस पर ईमान लाने और उसके संदेष्टा का अनुसरण करने का जो वादा किया था उसे छोड़ दिया। अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْؤُولاً [الإسراء : 34]

“तथा वादा पूरा करो क्योंकि निःसंदेह वादा के बारे में पूछ होगी।” (सूरतुल इस्रा: 34).

तथा फरमाया:

وَبِعَهْدِ اللَّهِ أَوْفُوا [الأنعام : 152]

“तथा अल्लाह से किया वादा पूरा करो।” (सूरतुल अनआम : 152).

तथा अपने मोमिन बंदों की सराहना करते हुए फरमाया:

الَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهْدِ اللَّهِ وَلا يَنْقُضُونَ الْمِيثَاقَ [الرعد : 20]

“जो अल्लाह को दिए गए वादे को पूरा करते हैं और वादा नहीं तोड़ते।” (सूरतुर रअद : 2).

क़ुरआन और हदीस में बहुत से प्रमाण हैं जो स्पष्ट रूप से वफादारी की अनिवार्यता और विश्वासघात तथा गद्दारी के निषेद्ध पर तर्क स्थापित करते हैं, और सभी आयतें जिनमें 'अहद' (वादा) और 'मीसाक़' (प्रतिज्ञा, चार्टर) का शब्द आया है वह शाब्दिक तौर पर या उसका आशय इस पर तर्क स्थापित करता है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अमली -व्यवहारिक- सुन्नत इसकी सबसे स्पष्ट साक्षी और क्रियात्मक रूफ है।

दूसरा :

अल्लाह तआला ने वादा निभाने पर व्यक्ति के लिए उसके लोक और परलोक में महान लाभ आधारित किए हैं, जबकि समाज का कल्याण और उसकी स्थिरता इसके अतिरिक्त है, उन लाभों में से कुछ निम्नलिखित हैं :

- वादा पूरा करना अल्लाह की किताब में मुत्तक़ी व परहेज़गार (संयमी व ईश्भय रखने वाले) के गुणों, और तक़्वा (ईश्भय) प्राप्त करने के महान कारणों में से है। अल्लाह तआला का फरमान है :

بَلَى مَنْ أَوْفَى بِعَهْدِهِ وَاتَّقَى فَإِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ [آل عمران : 76]

“ क्यों नहीं, (पकड़ होगी) परंतु जो व्यक्ति अपना वादा पूरा करे और अल्लाह तआला से डरे, तो अल्लाह तआला भी ऐसे मुत्तक़ियों (संयमी व परहेज़गार लोगों) से प्रेम करता है।” (सूरत आल इम्रान : 76).

- वादा पूरा करना संसार में शांति की प्राप्ति और रक्त की सुरक्षा, तथा मुसलमान और काफिर बंदों के अधिकारों की रक्षा का कारण है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :

وَإِنِ اسْتَنْصَرُوكُمْ فِي الدِّينِ فَعَلَيْكُمُ النَّصْرُ إِلَّا عَلَى قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِيثَاقٌ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ [الأنفال : 72]

“और यदि वे धर्म के मामले में तुम से मदद माँगे तो तुम पर मदद देना अनिवार्य है, सिवाय उन लोगों के (खिलाफ) जिनके और तुम्हारे बीच मुआहदा है, और तुम जो भी कर रहे हो अल्लाह तआला उसे अच्छी तरह देख रहा है।” (सूरतुल अनफाल : 72).

- तथा यह गुनाहो और पापों को मिटाने और स्वर्गों में प्रवेश कराने का कारण है, जैसाकि हम यह सूरतुल बक़रा में अल्लाह के इस फरमान में पाते हैं :

وَأَوْفُوا بِعَهْدِي أُوفِ بِعَهْدِكُمْ [البقرة :40]

“और तुम मुझसे किया वादा पूरा करो, मैं तुम से किया वादा पूरा करूँगा।” (सूरतुल बक़रा : 40). इब्ने जरीर ने फरमाया : “और अल्लाह का उनसे वादा यह है कि यदि वे ऐसा करेंगे तो उन्हें स्वर्ग में प्रवेश करेगा।” अंत हुआ।

तथा सूरतुल माइदा में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उल्लेख किया है कि उसने बनी इस्राईल से प्रतिज्ञा (वादा) लिया, फिर उस मीसाक़ (प्रतिज्ञा) को स्पष्ट किया और उसे पूरा करने पर बदले का उल्लेख किया, चुनांचे फरमाया :

لأُكَفِّرَنَّ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَلأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الأَنْهَارُ [المائدة : 12]

“तो अवश्य मैं तुम्हारी बुराईयाँ तुम से दूर रखूँगा और तुम्हें उन जन्नतों में ले जाऊँगा जिनके नीचे नहरें बह रही हैं।” (सूरतुल माइदा : 12).

इसके अतिरिक्त अन्य आसार (आयात और अहादीस) हैं, जो अल्लाह की किताब में मनन चिंतन करने वाले और उसके पैगंबर के कथनी सुन्नत में और उनकी व्यवहारिक जीवनी में गौर करने वालों के लिए स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष होता है।

इस अध्याय में आयात व अहादीस बहुत हैं, इसलिए इमाम नववी रहिमहुल्लाह की किताब “रियाज़ुस्सालेहीन” और इमाम मुंज़िरी रहिमहुल्लाह की किताब “अत्तरग़ीब वत्तरहीब” को देखने की सलाह दी जाती है।

तीसरा :

खियानत (विश्वासघात), ईमानदारी और वफादारी का विपरीत है, जबकि अमानत, ईमानदारी और वफादारी, ईमान और तक़्वा (धर्मपरायणता) के गुणों में से है, तो विश्वासघात और ग़दर, पाखंड और पाप (अनैतिकता) के विशेषताओं में से है, अल्लाह की पनाह।

अब्दुल्लाह बिन अम्र - रज़ियल्लाहु अन्हुमा - से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : चार चीज़ें ऐसी हैं कि वे जिसके अंदर पाई जायेंगी, वह शुद्ध मुनाफिक़ (पाखंडी) होगा ; जब वह बात करे तो झूठ बोले, जब वादा करे तो उसे तोड़ दे, जब प्रतिज्ञा करे तो विश्वासघात करे, और जब बहस करे तो दुर्वचन करे, और जिसके अंदर उनमें से कोई एक चीज़ पाई जायेगी तो उसके अंदर निफाक़ की एक विशेषता पाई गई यहाँ तक कि वह उसे छोड़ दे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3178) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 58) ने रिवायत किया है।

तथा अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ जिसने किसी मुसलमान के साथ विश्वासघात किया तो उस पर अल्लाह, फरिश्तों, और सभी लोगों की धिक्कार है, उसके किसी स्वैच्छिक और अनिवार्य कार्य को स्वीकार नहीं किया जायेगा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1870)और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1370) ने रिवायत किया है।

तथा अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के माध्यम से अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया : गद्दारी (विश्वासघात) करने वाले के लिए क़ियामत के दिन झंडा खड़ा किया जायेगा, तो कहा जायेगा : यह फलां व्यक्ति का विश्वासघात है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6178) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1735) ने रिवायत किया है।

हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें वादों और प्रतिज्ञाओं को पूरा करने वालों में से बनाए, तथा हमें विश्वासघात करने और वादा तोड़ने से बचाए, और हमें अच्छी बात कहने और उस पर अमल करने की तौफीक़ प्रदान करे . . और सभी प्रकार की स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।

देखिए : किताब (अल-अह्दो वल-मीसाक़ो फिल-क़ुरआनिल करीम) प्रोफेसर डा. नासिर सुलैमान अल-उमर

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर