गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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जीविका और धन प्राप्त करने तथा क़र्ज़ चुकाने की दुआएँ

प्रश्न

इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका जिस बिगड़ती आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है, उसके कारण मेरे पिता को काम में परेशानी हो रही है, और हमें पता नहीं कब तक वह अपनी इस नौकरी में रहेंगे। उन्होंने उन्हें छोड़ने की चेतावनी दी है.. और वह हमारे परिवार के लिए एकमात्र कमाने वाले हैं। मैं एक ऐसी दुआ सीखना चाहता हूँ जिसे मैं पढ़ूँ, तो हमारे मामलात आसान हो जाएँ और हमारे धन बढ़ जाएँ। मैंने इंटरनेट पर खोज की और मुझे एक दुआ मिली, लेकिन मुझे उसकी वैधता पर संदेह हुआ क्योंकि इसके लिए एक व्यक्ति को एक बैठक में 12,000 बार पढ़ने की आवश्यकता होती है। मुझे आशा है कि आप मेरी मदद करेंगे। अल्लाह आपको अच्छा प्रतिफल दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सबसे पहले :

हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपके मामले को आसान बनाए, आपके पिता की मदद करे और आपको हलाल और धन्य रोज़ी प्रदान करे।

सहीह सुन्नत में चिंताओं को दूर करने, संकटों के मोचन, क़र्ज़ चुकाने और धन की प्राप्ति के लिए कई दुआएँ साबित हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

1- इमाम अहमद (हदीस संख्या : 3712) ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो भी व्यक्ति किसी चिंता या शोक से पीड़ित हुआ, तो उसने यह दुआ पढी : अल्लाहुम्मा इन्नी अब्दुका वब्नू अब्दिका वब्नू अमतिका, नासियती बि यदिका, माज़िन फिय्या हुक्मुका, अदलुन् फिय्या कज़ाउका, अस्-अलुका बि-कुल्लिस्मिन हुवा लका सम्मयता बिहि नफ्सका अव अल्लमतहू अहदन मिन् ख़ल्क़िका अव अन्ज़लतहु फी किताबिका अविस्ता'सर्ता बिहि फी इल्मिल-ग़ैबि इंदक अन् तज-अलल्-कुरआना रबीआ क़ल्बी व नूरा सद्री वा जलाआ हुज़्नी वा ज़हाबा हम्मी (ऐ अल्लाह! मैं तेरा बंदा हूँ, तेरे बंदे का बेटा हूँ, तेरी बंदी का बेटा हूँ। मेरी पेशानी तेरे हाथ में है, मेरे बारे में तेरा आदेश क्रियान्वित होता है और मेरे बारे में तेरा फैसला न्यायपूर्ण है। मैं तुझसे हर उस नाम के साथ प्रश्न करता हूँ जो तेरा है, जिसके द्वारा तूने अपना नाम रखा है, या तूने उसे अपनी किसी मख़लूक़ को सिखाया है, या तूने अपनी किसी किताब में उतारा है, या तूने उसे अपने पास परोक्ष के ज्ञान में संरक्षित किया है, कि तू क़ुरआन को मेरे दिल की बहार, मेरे सीने की रोशनी, मेरे दुःख का निवारण और मेरी चिंता का मोचन बना दे।), तो अल्लाह उसके दु:ख और शोक को दूर कर देगा, और उसके बदले में उसको आनंद प्रदान करेगा।” कहा गया : ऐ अल्लाह के रसूल!, क्या हम उन्हें सीख न लेंॽ आपने कहा : “क्यों नहीं, जो कोई उन्हें सुने उसे उन्हें सीखना चाहिए।” अलबानी ने “सहीह अत-तर्गीब व अत-तर्हीब” (1822) में इसे सहीह कहा है।

2- मुस्लिम (हदीस संख्या : 2713) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें आदेश देते थे कि जब हम सोने के लिए लेटें तो कहें : “अल्लाहुम्मा रब्बस-समावाति व रब्बल-अर्शिल-अज़ीम, रब्ब्ना व रब्बा कुल्लि शैइन, फ़ालिक़ल-ह़ब्बि वन्नवा, व-मुन्ज़िलत-तौराति वल-इन्जीलि वल-फुरक़ानि, अऊज़ु बिका मिन शर्रि कुल्लि शैइन अन्ता आख़िज़ुन बि-नासियतिहि, अल्लाहुम्मा अन्तल-अव्वलु फ-लैसा क़ब्लका शैउन, व-अन्तल-आख़िरु फ़-लैसा बा’दका शैउन, व-अन्तज़-ज़ाहिरु फ-लैसा फौक़का शैउन, व-अन्तल-बातिनु फ-लैसा दूनका शैउन, इक़्ज़ि अन्नद-दैना व-अग़निना मिनल-फ़क़्रि" (ऐ अल्लाह, ऐ आकाशों के रब, धरती के रब और महान अर्श के रब! ऐ हमारे रब और हर चीज़ के रब! दाने और गुठली को फाड़ने वाले! तौरात, इन्जील और फुरक़ान (क़ुरआन) के उतारने वाले! मैं हर उस चीज़ की बुराई से तेरी पनाह चाहता हूँ जिसकी पेशानी तू पकड़े हुए है। ऐ अल्लाह! तू ही अव्वल (सबसे पहले) है, तुझसे पहले कोई चीज़ नहीं। और तू ही आखिर है, तेरे बाद कोई चीज़ नहीं। और तू ही ज़ाहिर है, तेरे ऊपर कोई चीज़ नहीं। और तू ही बातिन है, तुझसे वरे कोई चीज़ नहीं। हमारा क़र्ज अदा कर दे और हमें निर्धनता से (निकाल कर) धनवान कर दे।)

3- अली रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उनके पास एक मुकातब (एक गुलाम जो अपने मालिक के साथ दासता से मुक्ति का अनुबंध कर चुका था) आया और उसने कहा : “मैं अपनी मुकातबत की राशि चुकाने में असमर्थ हूँ; इसलिए मेरी सहायता करें।” उन्होंने कहा : क्या मैं तुम्हें कुछ ऐसे शब्द न सिखाऊँ जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे सिखाए? अगर तुम पर सीर के पहाड़ जैसा क़र्ज़ होगा तो अल्लाह उसे तुम्हारी ओर से अदा कर देगा। उन्होंने कहा : “कहो : “अल्लाहुम्मक-फ़िनी बि-ह़लालिका अन् ह़रामिक, व-अग़्निनी बि-फ़ज़्लिका अम्मन सिवाक” (ऐ अल्लाह मुझे हलाल प्रदान करके हराम से काफी हो जा और मुझे अपनी अनुकंपा प्रदान करके अपने सिवा अन्य से बेनियाज़ कर दे।) इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3563) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सहीह अत-तिर्मिज़ी में हसन कहा है।

मुकातबत : दास का अपने स्वामी को धन देने की प्रतिज्ञा करना ताकि वह उसे मुक्त कर दे।

 4- तबरानी ने “अल-मो'जम अस-सग़ीर” में अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : “क्या मैं तुम्हें एक दुआ न सिखाऊँ जिसे तुम कहो, तो भले ही तुम्हारे ऊपर उहुद पर्वत जैसा कर्ज हो, अल्लाह उसे तुम्हारी ओर से अदा कर देगाॽ, ऐ मुआज़! कहो : अल्लहुम्मा मालिकल्-मुल्कि तू’तिलमुल्का मन् ताशाओ, व-तनज़िउल-मुल्का मिम्मन् तशाओ, व-तुइज़्ज़ु मन् तशाओ व-तुज़िल्लु मन तशाओ, बि-यदिकल ख़ैरु इन्नका अला कुल्लि शैइन क़दीरुन। रहमानद-दुन्या वल आख़िरति व रहीमहुमा, तू'तीहिमा मन तशाओ, व तमनओ मिन्हुमा मन तशाओ, इर-हम्नी रहमतन तुग़नीनी बिहा अन् रहमति मन सिवाक” (ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य देता है और जिससे चाहे राज्य छीन लेता है, और जिसे चाहे इज़्ज़त प्रदान करता है और जिसे चाहे अपमानित कर देता है। तेरे ही हाथ में हर भलाई है। निःसंदेह तू हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है। ऐ दुनिया और आख़िरत में सबसे दयावान और उनमें असीम दयालु! तू जिसे चाहे वे दोनों प्रदान करे और जिसे चाहे उन दोनों से वंचित कर दे। मुझ पर ऐसी दया कर जिसके द्वारा मुझे अपने अलावा की दया से बेनियाज़ कर दे।)।''

अलबानी ने “सहीह अ-तर्गीब वत-तर्हीब” (हदीस संख्या : 1821) में इसे हसन कहा है।

5- जीविका प्राप्त करने के महान और लाभकारी साधनों में से एक : अल्लाह तआला से बहुत अधिक क्षमा माँगना (इस्तिग़फ़ार) है।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّاراً يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَاراً وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ أَنْهَاراً

نوح: 10- 12

“तो मैंने कहा : अपने पालनहार से क्षमा माँगो। निःसंदेह वह बहुत क्षमा करने वाला है। वह तुम पर मूसलाधार बारिश बरसाएगा। और वह तुम्हें धन और बच्चों में वृद्धि प्रदान करेगा तथा तुम्हारे लिए बाग़ बना देगा और तुम्हारे लिए नहरें निकाल देगा।” (सूरत नूह : 10-12)।

दूसरा :

जहाँ तक इन दुआओ में से किसी दुआ को दोहराने के लिए एक विशिष्ट संख्या निर्धारित करने की बात है, तो यह बिद्अतों और नवाचारों में से है।

“फतावा अल-लजनह अद-दाईमह” में कहा गया है : “अज़कार और इबादत के कार्यों के संबंध में मूल सिद्धांत : यह है कि वे तौक़ीफ़ी हैं [अर्थात् वे सही धार्मिक ग्रंथों के आधार पर ही सिद्ध हो सकते हैं], और अल्लाह की इबादत केवल उसी तरीक़े से की जाएगी जो उसने निर्धारित किए हैं। इसी तरह उसका मुतलक़ (सामान्य) होना या उसका कोई समय निर्धारित करना, उसकी कैफ़ियत (तरीक़ा) बयान करना, उसकी संख्या निर्धारित करना, उन अज़कार एवं दुआओं, तथा अन्य सभी इबादतों में जो किसी विशिष्ट समय, या संख्या, या स्थान या तरीक़े से प्रतिबंधित नहीं हैं : हमारे लिए उनमें किसी विशेष तरीक़े, या समय, या संख्या की पाबंदी करना जायज़ नहीं है। बल्कि हम इसके साथ अल्लाह की मुतलक़ इबादत करेंगे, जैसा कि वर्णित हुआ है। तथा जो कुछ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन या कर्म के आधार पर साबित होता है कि वह किसी विशेष समय या संख्या के साथ प्रतिबंधित है, या उसके लिए समय या तरीक़ा निर्धारित किया गया है : हम उसके साथ अल्लाह की इबादत उसी तरह करेंग जो शरीयत से साबित है।

शैख अब्दुल-अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुर-रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान, शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद

“मजल्लतुल-बुहूस अल-इस्लामिय्यह” (21/53) और “फतावा इस्लामिय्यह” (4/178) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर