शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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सुन्नते-मुअक्कदा की नमाज़ दस रकअत है या बारह रकअत, और क्या इसे जमाअत के साथ पढ़ना जायज़ हैॽ

प्रश्न

बुखारी ने अपनी सहीह में अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ ज़ुहर से पहले दो रकअत, ज़ुहर के बाद दो रकअत, जुमा (जुमुआ) के बाद दो रकअत, मग़रिब के बाद दो रकअत और इशा के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ी। तो क्या इस हदीस में वर्णित सुन्नतें नियमित (मुअक्कदा) सुन्नतों में से हैंॽ यदि ऐसा ही है तो क्या उन्हें मंडली में (जमाअत के साथ) अदा किया जा सकता हैॽ क्या उन्हें एक ही नीयत (इरादे) से दूसरी नमाज़ के अंतर्गत पढ़ा जा सकता हैॽ

उत्तर का सारांश

सही दृष्टिकोण के अनुसार नियमित (मुअक्कदा) सुन्नतें बारह रकअत हैं : फज्र से पहले दो रकअत, ज़ुहर से पहले चार रकअतें दो सलाम के साथ और उसके बाद दो रकअत, मग़रिब के बाद दो रकअत और इशा के बाद दो रकअत।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

प्रथम : नियमित (मुअक्कदा) सुन्नतों की संख्या

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित हदीस में आया है कि नियमित (मुअक्कदा) सुन्नतें दस रकअत हैं। सही दृष्टिकोण के अनुसार, आयशा और उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस के कारण, नियमित सुन्नतें बारह रकअत हैं, जिसमें ‘‘ज़ुहर से पहले चार रकअत’’ का शब्द आया है।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :

“नियमित सुन्नतें बारह रकअत हैं, जबकि कुछ विद्वानों का मानना यह है कि वे दस रकअत हैं। हालाँकि, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसी हदीस साबित है, जो प्रमाणित करती है कि वे बारह रकअत हैं, और यह कि ज़ुहर से पहले नियमित सुन्नत चार रकअत है। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : ‘‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़ुहर से पहले चार रकअत नमाज़ पढ़ना नहीं छोड़ते थे।’’

जहाँ तक इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का संबंध है, तो उनसे साबित यह है कि नियमित सुन्नतें दस रकअत हैं, और यह कि ज़ुहर से पहले नियमित सुन्नत दो रकअत है। लेकिन आयशा और उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से) चार याद किए हैं, और नियम यह है कि जिसने याद किया वह उस पर तर्क है जिसने याद नहीं किया। इस प्रकार यह निर्धारित हो गया कि नियमित सुन्नत बारह रकअत हैं : ज़ुहर से पहले चार और उसके बाद दो रकअत, मग़रिब के बाद दो रकअत, इशा के बाद दो रकअत और फ़ज्र की नमाज़ से पहले दो रकअत।'' मजमूउल-फतावा (11/281) से उद्धरण समाप्त हुआ। 

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

"लेखक ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस के आधार पर नियमित सुन्नतों की संख्या को दस माना है, उन्होंने कहा : ‘‘मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस रकअतें याद की हैं।” फिर उन्होंने उनका उल्लेख किया।

यह इस मामले से संबंधित दो कथनों में से एक है।

इस मामले के संबंध में दूसरा कथन यह है कि : नियमित सुन्नतें बारह रकअत हैं, जो उस हदीस पर आधारित है जो सहीह बुखारी में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, वह कहती हैं : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़ुहर से पहले चार रकअत की नमाज़ पढ़ना नहीं छोड़ते थे।”

इसी तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है : "जिस व्यक्ति ने फर्ज़ नमाज़ के अलावा बारह रकअत नमाज़ पढ़ी, अल्लाह उसके लिए उनके बदले स्वर्ग में एक घर बनाएगा।" और आपने उनमें से "ज़ुहर से पहले चार रकअत" का उल्लेख किया और शेष वैसा ही जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।

इसके आधार पर, सही दृष्टिकोण यह है कि नियमित सुन्नत (मुअक्कदा सुन्नत) बारह रकअत है : फज्र से पहले दो रकअत, ज़ुहर से पहले चार रकअत दो सलाम के साथ और उसके बाद दो रकअत, मग़रिब के बाद दो रकअत और इशा के बाद दो रकअत।" “अश-शर्ह अल-मुम्ते” (4/68) से उद्धरण समाप्त हुआ। 

शौकानी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“अद-दाऊदी ने कहा : इब्ने उमर की हदीस में आया है कि ज़ुहर की नमाज़ से पहले दो रकअत है, और आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में यह कहा गया है कि चार रकअत है। इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि उनमें से प्रत्येक ने जो देखा उसका वर्णन किया। यह भी हो सकता है कि इब्ने उमर चार रकअतों में से दो भूल गए हों।

हाफिज़ इब्ने हजर ने कहा : यह संभावना बहुत कम है। बेहतर यह है कि इसे दो स्थितियों में माना जाए। कभी वह दो रकअत पढ़ते थे और कभी चार रकअत पढ़ते थे।

यह भी कहा गया है कि : इसका मतलब यह समझा जाए कि वह मस्जिद में दो रकअत पढ़ते थे और अपने घर में चार रकअत पढ़ते थे। यह भी हो सकता है कि जब वह अपने घर में होते थे तो दो रकअत नमाज़ पढ़ते थे। फिर वह मस्जिद में जाते थे तो दो रकअत और पढ़ते थे। इब्ने उमर ने उस चीज़ को देखा जो मस्जिद में हुआ, लेकिन उसे नहीं देखा जो घर में हुआ। जबकि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को दोनों मामलों की जानकारी हुई।

पहले दृष्टिकोण का समर्थन उस हदीस से होता है जिसे अहमद और अबू दाऊद ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने घर में ज़ुहर से पहले चार रकअत नमाज़ पढ़ते थे, फिर निकलते थे।

अबू जाफ़र अत-तबरी ने कहा : वह अधिकतर हालतों  में चार रकअत पढ़ते थे, और दो रकअत कम ही हालतों में पढ़ते थे।” “नैलुल-औतार” (3/ 21) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख अब्दुल-मोहसिन अल-अब्बाद हफ़िज़हुल्लाह ने कहा :

“उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस और आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस संख्या के संदर्भ में सहमत हैं, कि ज़ुहर से पहले नियमित सुन्नत चार रकअत है। यह इब्ने उमर की हदीस के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि ज़ुहर से पहले सुन्नत दो रकअत है। और इसमें कोई संदेह नहीं कि सबसे पूर्ण और सर्वोत्तम करना, जो कि चार रकअत है, अधिक उचित है। और जो कोई दो रकअत पढ़ता है वह (भी) अच्छा है और इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।” “शर्ह सुनन अबू दाऊद” से उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा : जुमा की नमाज़ के बाद दो रकअत

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में जुमा की नमाज़ के बाद वर्णित दो रकअतें, हर दिन और रात दोहराई जाने वाली नियमित सुन्नतों में से नहीं हैं। बल्कि यह एक अलग नमाज़ है जो ऊपर उद्धृत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में उल्लिखित संख्या में शामिल नहीं है।

अस-सनआनी रहिमहुल्लाह ने कहा : “अतः उनके शब्द : "दस रकअत" का अर्थ है जो हर दिन दोहराया जाता है।" “सुबुल अस-सलाम” (1/316) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख अब्दुर-रहमान अस-सुहैम हफ़िज़हुल्लाह ने कहा : “इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस... जुमा के बाद की नमाज़ [सुन्नत] को संदर्भित करती है; यह नियमित सुन्नतों (मुअक्कदा सुन्नतों) में से नहीं है; बल्कि यह एक अलग नमाज़ है।” “शर्ह अल-उमदा” (1/209) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा : स्वैच्छिक (नफ़्ल) नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ने का हुक्म

नफ़्ल नमाज़ों और नियमित सुन्नतों के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से (अकेले) अदा करना चाहिए, सिवाय उन नमाज़ों के जिन्हें जमाअत के साथ पढ़ना सुन्नत में वर्णित है, जैसे तरावीह की नमाज़, ग्रहण की नमाज़, इत्यादि।

परंतु, यदि कभी-कभी इन स्वैच्छिक नमाज़ों को जमाअत के साथ पढ़ लिया जाए, या ऐसा करने का कोई कारण है; तो इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है, लेकिन इसे एक स्थायी आदत नहीं बनाया जाना चाहिए, और न ही कोई नियमित मामला जिसके लिए लोग इकट्ठा होते हों।

चौथा : इशा की दो रकअत सुन्नत और रात की नमाज़ को एक नीयत के साथ एकत्र करना

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस का अर्थ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि इशा की दो रकअत सुन्नत को रात की नमाज़ (क़ियमुल्लैल) के साथ एक नीयत में शामिल किया जा सकता है; क्योंकि ऐसा हो सकता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इशा की नमाज़ पढ़ी, फिर उसके बाद नियमित सुन्नत पढ़ी... लेकिन वर्णनकर्ता ने इसका उल्लेख नहीं किया, जैसे उसने वित्र का उल्लेख नहीं किया।

यह भी संभव है कि वर्णनकर्ता ने विशेष रूप से रात की नमाज़ का उल्लेख किया हो।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर