हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हाजी के लिए कंकरी मारने के दिनों में से दूसरे दिन जल्दी करना जायज़ है, इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :
فمن تعجل في يومين فلا إثم عليه ومن تأخر فلا إثم عليه لمن اتقى [البقرة : 203].
‘‘तो जिसने दो दिनों में जल्दी की तो उस पर कोई पाप नहीं, और जिसने विलंब किया उस पर भी कोई पाप नहीं, बशर्ते कि वह तक़्वा अपनाने वाला हो।'' (सूरतुल बक़राः 203).
जमहूर विद्वानों - मालिकिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला - के निकट उसके जायज़ होने की शर्त यह है कि हाजी मग्रिब (सूरज डूबने) से पहले कंकरी मारकर मिना से निकल जाए। तो उससे तश्रीक़ के तीसरे दिन की कंकरी मारना समाप्त हो जायेगा। यदि वह नहीं निकल सका यहाँ तक कि सूरज डूब गया तो मिना में रात बिताना और तीसरे दिन की कंकरी मारना उस पर अनिवार्य हो गया। उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से साबित है कि उन्होंने फरमाया : ''जिसके ऊपर सूर्य डूब गया और वह मिना ही में है तो वह प्रस्थान न करे, यहाँ तक कि वह तश्रीक़ के अंतिम दिन की कंकरी मार ले।''
स्थायी समिति क विद्वानों का कहना है कि :
‘‘हाजी के लिए यौमुन्नहर (अर्थात् दसवीं ज़ुलहिज्जा) के बाद मिना में जितनी अवधि ठहरना अनिवार्य है वह दो दिन है, ज़ुल-हिज्जा का ग्यारहवाँ और बारहवाँ दिन। रही बात ज़ुल-हिज्जा के तेरहवें दिन की, तो उसके ऊपर उस दिन मिना में ठहरना अनिवार्य नहीं है, और न तो उसके ऊपर उसमें जमरात को कंकरी मारना ही अनिवार्य है, बल्कि केवल मुस्तहब है, सिवाय इसके कि यदि बारहवीं ज़ुल-हिज्जा का सूरज उसके ऊपर मिना ही में डूब जाए।तो ऐसी स्थिति में उसके ऊपर तेरहवीं की रात को मिना में बिताना फिर सूरज ढलने के बाद तीनों जमरात को कंकरी मारना अनिवार्य हो जायेगा।
जहाँ तक उपर्युक्त आयत के अर्थ का संबंध है, तो यह है कि : जिसने यौमुन्नह्र के बाद, मिना में दो रातें बिताने के बाद और ग्यारहवीं और बारहवीं ज़ुल-हिज्जा को तीनों जमरात को कंकरी मारने के बाद, मिना से प्रस्थान करने में जल्दी किया तो उसके ऊपर कोई पाप नहीं है और उसके ऊपर दम अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि वह अपने ऊपर अनिवार्य कार्य को अंजाम दे चुका है। और जिसने मिना में विलंब कर दिया, चुनाँचे वहाँ तेरहवीं ज़ुल-हिज्जा की रात बिताई, और तेरहवें दिन तीनों जमरात को कंकरी मारी : तो उसके ऊपर कोई गुनाह नहीं है, बल्कि उसका इस रात को मिना में बिताना और उसके दिन में तीनों जमरात को कंकरी मारना बेहतर और अज्र व सवाब के एतिबार से बहुत महान है ; कयोंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा ही किया था, फिर अल्लाह तआला ने आयत का अंत तक़्वा (ईश्भय व धर्मपरायणता) पर बल देने, और आखिरत के दिन पर और उसमें घटित होने वाले हिसाब और बदले पर ईमान रखने पर किया है ; ताकि वह उस व्यक्ति के लिए जो उसमें पाई जाने वाली चीज़ों में गौर करे, अधिक से अधिक नेक कार्य करने, और बुराईयों से बचने का करण बने; अल्लाह की दया की आशा और उसकी सज़ा से भय के तौर पर।’’
शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन गुदैयान, शैख अबदुल्लाह बिन मनीअ।
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा’’ (11/266, 267) से समाप्त हुआ।