गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ, रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।” के बारे में

प्रश्न

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ। रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।”  

क्या निम्नलिखित रुक़्या में कोई शिर्क का तत्व या कोई ऐसी चीज़ पाई जाती है, जो शरीयत के दृष्टिकोण से निषिद्ध हैॽ :

(हमज़ाद (जिन्न साथी) को नियंत्रित करने के लिए, जिसने शरीर को थका दिया है, विवाह में रुकावट पैदा कर दी है, काम-काज को असफल कर दिया है और छवि को बदल दी है :

[बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम (अल्लाह के नाम से जो अत्यंत दयावान् परम दयालु है), मग़रिब (सूर्यास्त) के बाद लगातार तीन दिनों तक 14 बार सूरत मुहम्मद का पाठ करना या सुनना, उसके बाद दो बार इस तावीज़ (संरक्षण) को पढ़ना :

(रक्षा करने वाली तावीज़ों के द्वारा, मैंने हर चालबाज़ (धूर्त) और अड़ियल को तथा शोरगुल करने वाले के शोर को अवरोधित कर दिया, और उसे इस शरीर वाले से दूर हटा दिया। मैंने हर खड़े हुए और बैठे हुए पर “क़ुल हुवल्लाहु अह़द अल्लाहुस-समद लम यलिद व लम यूलद व लम यकुंल्लहू कुफुवन अह़द” की क़सम खाई है), (मैंने तुमपर अल-अनहास की दुआओं के साथ क़सम खाई है और मैंने तुमसे एहसास (अनुभूति) को “क़ुल अऊज़ू बिरब्बिन्-नास, मलिकिन्-नास इलाहिन्-नास मिन् शर्रिल् वस्वासिल् ख़न्नास अल्लज़ी युवस्विसु फ़ी सुदूरिन्नास मिनल्-जिन्नति वन्नास” के द्वारा काट दिया है।)

यदि आप इसे दोहराना चाहते हैं, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। ])

अल्लाह आप लोगों को बेहतरीन बदला दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 2200) में औफ़ बिन मालिक अल-अशजई से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : हम जाहिलिय्यत (इस्लाम पूर्व अज्ञानता) के काल में रुक़्या (झाड़-फूँक) किया करते थे। इसलिए हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, इसके बारे में आपका क्या विचार हैॽ आपने फरमाया : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ। रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।”

इस हदीस से पता चलता है कि रुक़्या अनुमेय है जब तक कि उसमें कोई शिर्क का तत्व या कोई ऐसी चीज़ शामिल नहीं है जो शिर्क का साधन है।

विद्वानों ने रुक़्या के अनुमेय होने के लिए तीन शर्तों को निर्धारित किया है, जो उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों के ग्रंथों से निष्कर्षित किए हैं। ह़ाफ़िज़ इब्ने ह़जर की फ़त्ह़ुल-बारी (10/195) में आया है : “विद्वानों ने तीन शर्तों के पूरा होने पर रुक़्या के जायज़ होने पर सहमति व्यक्त की है : वह सर्वशक्तिमान अल्लाह के शब्दों से या उसके नामों और गुणों से हो, तथा वह अरबी भाषा में हो या किसी अन्य भाषा में ऐसे शब्दों के द्वारा हो जिनका अर्थ सर्वज्ञात हो। तथा वह यह मान्यता रखे कि रुक़्या का अपने आप में कोई प्रभाव नहीं है, बल्कि वह सर्वशक्तिमान अल्लाह की अनुमति से प्रभावित करती है। विद्वानों ने इस (अंतिम शर्त के) बारे में मतभेद किया है कि क्या यह एक शर्त है या नहीं, और राजेह (प्रबल) दृष्टिकोण यह है कि उपर्युक्त सभी शर्तों का एतिबार किया जाना आवश्यक है।”

प्रश्न संख्या : (13792) के उत्तर में, शरई रुक़्या (इस्लामिक शिक्षाओं में निर्धारित रुक़्या) की शर्तों पर पहले चर्चा की जा चुकी है।

दूसरा :

जहाँ तक उस रुक़्या का संबंध है, जिसके बारे में आपने इस प्रश्न में पूछा है, तो वह कई चीजों के कारण जायज़ नहीं है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

1- वह बिदअत (नवाचार) पर आधारित है : क्योंकि उपचार के उद्देश्य से, या शादी को आसान बनाने के लिए और क़रीन (हमज़ाद, जिन्न साथी) को नियंत्रित करने के लिए मग़रिब (सूर्यास्त) के बाद लगातार तीन दिनों तक 14 बार सूरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पाठ करना या सुनना, नवाचारित बिदअतों में से समझा जाएगा। क्योंकि विद्वानों ने इस बात को स्पष्ट रूप से बयान किया है कि किसी विशिष्ट ज़िक्र के लिए कोई विशिष्ट समय निर्धारित करना या किसी विशिष्ट ज़िक्र को एक विशिष्ट संख्या या किसी विशिष्ट तरीक़े के साथ निर्धारित करना, जिसे शरीयत ने उसके साथ निर्धारित नहीं किया है, अतिरिक्त नवाचार (बिदअतों) में से माना जाता है। इसका उल्लेख प्रश्न संख्या : (148174) और प्रश्न संख्या : (87915) के उत्तर में पहले किया जा चुका है।

2- यह रुक़्या कुछ ऐसे शब्दों पर आधारित है, जिनका अर्थ ज्ञात नहीं है। चुनाँचे उदाहरण के लिए “रक्षा करने वाली तावीज़ों” और “अल-अनहास की दुआओं” का मतलब ज्ञात नहीं है। और यह पहले उल्लेख किया जा चुका है कि रुक़्या के जायज़ होने की शर्तों में से एक यह है कि उसमें अज्ञात अर्थ वाले शब्द शामिल न हों।

तथा प्रश्न संख्या (11290) का उत्तर देखें, जिसमें इस्लामी शरीयत में बताए गए तरीक़े के अनुसार जादू का इलाज करने के बारे में बात की गई है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर