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एक लड़की ने इस्लाम स्वीकार कर लिया है और उसके घर वाले उसे इस्लाम धर्म से वापस लौटाने के लिए विभिन्न प्रकार से कोशिश कर रहे हैं। उसे क्या करना चाहिएॽ

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प्रकाशन की तिथि : 24-02-2019

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प्रश्न

रूस में एक लड़की ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, और शरई हिजाब पहन लिया। इसपर उसके परिवार वाले उसके ऊपर भड़क उठे। वे चाहते हैं कि वह इस्लाम धर्म से पलट जाए। उसके इस्लाम पर चर्चा करने के लिए उसे पुलिस के पास ले जाया गया। जब उसने मना कर दिया, तो उन्होंने उसके सभी शरई (इस्लामी) कपड़े जला दिए और उसके लिए छोटे कपड़े खरीद लाए। अब वह चार महीने से घर से बाहर नहीं निकलती है, वे उसे तंग करते हैं। वह अपने परिवार में एकमात्र मुसलमान है, और उसका कोई महरम नहीं है। उसकी आयु 20 साल है। अगर वह बाहर निकले तो उसके परिवार वालों की तरफ़ से हमेशा उसपर नज़र रखी जाती है, यहाँ तक कि उसके सिस्टम (कंप्यूटर) पर भी।

इस स्थिति में उसे क्या करना चाहिए, क्या उसे (वहाँ से कहीं और) यात्रा कर जाना चाहिए या (वहीं) रहना चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।   

इस लड़की के लिए इस जगह से बाहर निकलना अनिवार्य है जहाँ उसका विरोध किया जा रहा है, और उसे उसके धर्म के प्रति संकट और परीक्षण में डाला जा रहा है, और हो सकता है कि वे उसे अल्लाह के धर्म से रोकने में सफल हो जाएं, उसे निकटतम सुरक्षित स्थान पर जाना चाहि जहाँ वह खुद को और अपने धर्म को सुरक्षित रख सके।

तथा वहाँ से बाहर निकलने में वह उनके साथ कुछ चाल सकती है, या उनसे कुछ झूठ बोल सकती है, या कुछ विश्वस्त लोगों से मदद ले सकती है जो ऐसा करने में उसकी मदद कर सकते हों।

उसके लिए ऐसी जगह रहना जायज़ नहीं है जहाँ उसे अपने धर्म से हटाने के लिए दबाव बनाया जा रहा हो, सिवाय इसके कि वह भागने का कोई रास्ता न पाए।

यदि वह ऐसा करने में असमर्थ हो जाए, तो उसे चाहिए कि वह धैर्य से काम ले, और जिस कठिनाई और पीड़ा का वह अनुभव कर रही है उससे अज्र व सवाब की आशा रखे। और वह ऐसी चीज़ के साथ उनसे सामना न करे जो उन्हें उसके ऊपर भड़का दे, और उन्हें उसे कष्ट पहुँचाने और प्रताड़ित करने पर उत्तेजित करे।

तथा वह अल्लाह से दुआ करके और उसके सामने अपनी आवश्यकता व्यक्त करके मदद प्राप्त करे कि वह उसके लिए आसानी और निकलने का रास्ता बना दे, तथा अधिक से अधिक अल्लाह का ज़िक्र करे और दुआ के स्वीकार किए जाने के औक़ात में उल्लाह से विनती और विलाप करे।

जो भी व्यक्ति उसकी स्थिति से अवगत है, और उसकी मदद करने में सक्षम है : तो उसके लिए ऐसा करना अनिवार्य है। एक मुसलमान के लिए जायज़ नहीं है कि अपने भाई को उसके धर्म के विषय में संकट व परीक्षण से पीड़ित होने के लिए छोड़ दे, जबकि वह उसे रिहाई दिलाने में सक्षम है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर