रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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क़ब्र वाली मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का हुक्म

प्रश्न

क्या उन मस्जिदों में नमाज़ पढ़ना शुद्ध है जिन में क़ब्रें पायी जाती हैं ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

वो मस्जिदें जिन में क़ब्रें हैं उन में नमाज़ नहीं पढ़ी जायेगी, और अनिवार्य है कि क़ब्रों को खोद कर उन के अवशेष को सार्वजनिक क़ब्रिस्तानों में हस्तांतरित कर दिया जाये और प्रत्येक क़ब्र के अवशेष को अन्य क़बों की तरह अलग-अलग गढ़े में पाट दिया जाये, और मस्जिद में क़ब्रों को बाक़ी रखना जाइज़ नहीं है, न तो किसी वली की क़ब्र को और न ही उस के अलावा किसी अन्य की क़ब्र को, क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस से रोका और सावधान किया है, और ऐसा करने पर यहूदियों और ईसाईयों को शापित किया है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमाया : "यहूदियों और ईसाईयों पर अल्लाह की फटकार (धिक्कार) हो कि उन्हों ने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिदें बना लीं। आइशा रज़ियल्लहु अन्हा फरमाती हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन के कार्यों से (लोगों को) डराते और सावधान करते थे।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 1330, सहीह मुस्लिम : 529)

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब उम्मे सलमा और उम्मे हबीबा ने आप को हबशा में गिर्जाघर में छवियों (चित्रों) के मौजूद होने की सूचना दी, तो फरमाया : ये वो लोग हैं कि जब उन में कोई नेक आदमी मर जाता था तो उस की क़ब्र पर मस्जिद (पूजा स्थल) निर्माण कर लेते थे और उस में उन छवियों को लगा देते थे, वो लोग अल्लाह के किनट सब से बुरे लोग हैं।" मुत्तफक़ अलैहि ( सहीह बुखारी : 427, सहीह मुस्लिम : 528)

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : सावधान रहो ! तुम से पहले जो लोग थे वे अपने ईश्दूतों और सदाचारियों की क़ब्रों को मस्जिदें (पूजा स्थल) बना लेते थे, सुनो! तुम क़ब्रों को मस्जिदें न बनाना, क्योंकि मैं तुम्हें इस से रोकता हूँ।" इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 532) में जुनदुब बिन अब्दुल्लाह अल-बजली से रिवायत किया है। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ब्रों को मस्जिदें बनाने से रोका है और ऐसा करने वाले पर धिक्कार (लानत) भेजी है, और सूचित किया है कि ये लोग सब से बुरे लोग हैं, अत: इस कुकर्म से बचाव करना ज़रूरी है।

और यह बात सर्वज्ञात है कि जिस ने किसी मस्जिद के पास नमाज़ पढ़ी उस ने उसे मस्जिद (पूजा स्थल) बना लिया। और जिस ने उस पर मस्जिद निर्माण की तो उस ने भी उसे मस्जिद बना लिया। अत: अनिवार्य यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आज्ञापालन करते हुये और उस श्राप से बचने के लिए जो क़ब्रों पर मस्जिदें बनाने वालों पर हमारे रब की तरफ से उतरती है, क़ब्रों को मस्जिदों से दूर रखा जाये, और उन में क़ब्रें न बनायी जायें ; क्योंकि जब वह किसी क़ब्र वाली मस्जिद में नमाज़ पढ़ेगा तो शैतान उस मृतक को पुकारने, या उस से फर्याद करने, या उस के लिए नमाज़ पढ़ने, या उस के लिए सज्दा करने पर लुभा सकता है, और इस प्रकार वह शिर्क अक्बर (बड़े शिर्क) में पड़ जायेगा, और इसलिए भी कि यह यहूदियों और ईसाईयों के कामों में से है, अत: हमारे लिए उन का विरोध करना, उनके रास्ते और उन के कुकर्म से दूर रहना अनिवार्य है। किन्तु यदि क़ब्रें ही प्राचीन और पुरानी हों फिर उन पर मस्जिद निर्माण कर ली गयी हो तो मस्जिद को ही गिराना और उसे हटाना अनिवार्य है, क्योंकि वही बाद में बनाई गई है, जैसाकि विद्वानों ने इस बात को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है ; इस का उद्देश्य शिर्क के कारणोंका निवारण औ उस के द्वार को बंद करना है। और अल्लह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है।

स्रोत: (( समाहतुश्शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह की किताब मजमुअ़ फतावा व मक़ाला मुतनिव्वआ 10/246 ))