गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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सामूहिक नमाज़ निवासी और यात्री दोनों के लिए अनिवार्य है।

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प्रकाशन की तिथि : 02-03-2014

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प्रश्न

हम एक समूह हैं जो अपने घरों और परिवारों से दूर एक स्थान पर काम करते हैं। एक ऐसी जगह पर जो वासियों, सुविधाओं और मस्जिदों से खाली है। जो अवधि हम काम मे बिताते हैं वह उस अवधि के बराबर है जो हम अपने घरों में बिताते हैं। अर्थात् हम 28 दिन छुट्टी के मुक़ाबले में 28 दिन काम करते हैं। इसी तरह साल भर चलता है। तथा हम प्रति दिन 12 घण्टे काम करते हैं।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इस जगह नमाज़ स्थापित करने के बारे में, तथा उसके अनिवार्य होने या अनिवार्य न होने की बाबत क्या प्रावधान है?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सामूहिक नमाज़ (यानी जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना) यात्री और मुसाफिर दोनों के लिए अनिवार्य है।

तथा प्रश्न संख्या (120) के उत्तर में इसके अनिवार्य होने के प्रमाणों का उल्लेख किया जा चुका है।

अतः आप लोगों पर उसे क़ायम करना वाजिब (अनिवार्य) है। चुनाँचे आप लोगों में से कोई एक अज़ान दे फिर आप लोग जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ें।

बुखारी (हदीस संख्या : 628) ने मालिक बिन अल-हुवैरिस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं अपनी क़ौम के एक समूह में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया। हम आप के पास बीस रात ठहरे। आप एक दयालु विनम्र व्यक्ति थे। जब आप ने हमारी अपने परिवार के लिए चाह (लालसा) को देखा, तो फरमाया :

''वापस जाकर उनके बीच रहो और उन्हें शिक्षा दो और उसी तरह नमाज़ पढ़ो जैसा कि तुम ने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है। जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से कोई एक तुम्हारे लिए अज़ान दे और तुम में से सबसे बड़ा व्यक्ति तुम्हारी इमामत कराए।''

तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 547) ने अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : ''किसी गाँव या दीहात (जंगल) में तीन लोग मौजूद हों जिनके बीच नमाज़ न क़ायम की जाती हो तो उनके ऊपर शैतान गालिब आ जाता है। अतः तुम जमाअत (के साथ नमाज़) को लाज़िम पकड़ो, क्योंकि भेड़िया रेवड़ से अलग-थलग रहने वाली बकरी को खाता है।'' साइब (हदीस के एक वक्ता) कहते हैं : जमाअत से अभिप्राय जमाअत के साथ नमाज़ है। इसे अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए यात्रा करने वाले समूह के बारे में पूछा गया कि क्या उनके लिए मस्जिदों के अंदर नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है या नहीं? तो उन्हों ने उत्तर दिया :

''मूल सिद्धांत यह है कि आप लोगों पर जमाअत की नमाज़ मस्जिदों में लोगों के साथ अदा करना ज़रूरी है यदि आप लोग ऐसी जगह पर हैं जहाँ बिना लाउडस्पीकर के मस्जिद से क़रीब होने की वजह से अज़ान सुनते हैं। यदि आप लोग किसी दूर स्थान पर हैं जहाँ बिना लाउडस्पीकर के अज़ान नहीं सुनते हैं, तो आप लोग अपने स्थान पर ही जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ें। इसी तरह यदि आप लोगों के मस्जिद की ओर जाने में आपके उस काम में कमी आती हो जिसकी वजह से आप लोग आए हैं तो आप अपने स्थानों पर ही जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ लें।'' अंत हुआ।

फतावा शैख इब्ने उसैमीन (15/381).

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर