हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जिस व्यक्ति ने भी उम्रा या हज्ज का एहराम बाँध लिया है उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह अपनी उस इबादत को मुकम्मल करे, चाहे उसने फरीज़ा का एहराम बाँधा हो या नफ्ल का। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وأتموا الحج والعمرة لله [البقرة : 196]
‘‘अल्लाह के लिए हज्ज और उम्रा पूरा करो।’’ (सूरतुल बक़रा : 196)
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुललाह ने फरमाया :
‘‘जब आदमी हज्ज या उम्रा की इबादत में दाखिल हो जाए तो उसके लिए उससे बाहर निकलना जायज़ नहीं है सिवाय इसके कि कोई उज़्र हो जो उसे उसकी इबादत को पूरा करने से रोकता हो, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لله فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ [البقرة : 196]
‘‘अल्लाह के लिए हज्ज और उम्रा पूरा करो। अगर तुम रोक दिए जाओ तो जो भी हदी (क़ुर्बानी का जानवर) उपलब्ध है उसे ज़बह कर दो।’’ (सूरतुल बक़रा : 196)
तो अल्लाह का फरमान فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ : अर्थात् यदि तुम हज्ज या उम्रा के कार्य को पूरा करने से रोक दिए जाओ।’’
मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन’’ (23/438) से समाप्त हुआ।
और हज्ज में साथियों को खो देना, रोक दिए जाने में से नहीं है ; क्योंकि उनके बिना आपके लिए इबादत को पूरा करना संभव है, और आपके लिए, जबकि आप ने हज्ज का संकल्प कर लिया, अनिवार्य था कि उसके अहकाम सीखते, विशेषकर जबकि आप मक्का के हैं, और आप के लिए हज्ज के कार्यों को उन्हें करने से पहले सीखना दुश्वार था, न तो उसमें प्रवेश करने के बाद उसे पूरा करने के तरीक़े के बारे में प्रश्न करना।
अब आप के ऊपर निम्नलिखित चीज़ें अनिवार्य हैं :
सर्व प्रथम :
दीन की समझ न होने की वजह से हज्ज के मनासिक को उसके नियमानुसार अदा करने में कमी करने पर अल्लाह से क्षमायाचना करना, जबकि आपके लिए ज्ञान के कारण उपलब्ध थे और आप से क़रीब थे।
दूसरा :
चूँकि आप या तो हज्ज इफ्राद करनेवाले थे या हज्ज क़िरान करनेवाले थे, जैसाकि आप के सवाल से प्रत्यक्ष होता है, और इसलिए कि मक्का वालों के लिए हज्ज तमत्तुअ नहीं है, तो इस तरह आप के ऊपर हज्ज के अर्कान में से तवाफ इफाज़ाऔर हज्ज की सई बाक़ी है, और ये अर्कान किसी भी हालत में समाप्त नहीं होते हैं। इस आधार पर, आपके ऊपर उनकी अदायगी करना अनिवार्य है चाहे कितनी ही लंबी अवधि बीत जाए।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘तवाफ इफाज़ा हज्ज के अर्कान में से एक रूक्न (स्तंभ) है जिसके बिना हज्ज पूरा नहीं हो सकता, यदि इन्सान ने उसे छोड़ दिया तो उसका हज्ज पूरा नहीं हुआ। अतः वह वापस आयेगा चाहे अपने देश से ही क्यों न हो, और तवाफ इफाज़ा करेगा। और वह इसी हालत में रहेगा जब तक कि वह तवाफ न कर ले : उसके लिए अपनी पत्नी से संभोग करना जायज़ नहीं है ; क्योकि उसे दूसरा तहल्लुल प्राप्त नहीं हुआ है। क्योंकि दूसरा तहल्लुल तवाफ इफाज़ा और सई करने के बाद ही प्राप्त होता है यदि वह हज्ज तमत्तुअ करनेवाला है, या अगर वह हज्ज क़िरान या हज्ज इफ्राद करनेवाला है और तवाफ क़ुदूम के साथ उसने सई नहीं की है।’’ फतावा अर्कानुल इस्लाम (पृष्ठ: 541) से समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : मैं मक्का का रहने वाला हूँ। मैं ने पिछले साल हज्ज किया था और मैं ने तवाफ किया था जबकि सई नहीं की थी, तो इसका क्या हुक्म है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया : तुम्हारे ऊपर सई करना अनिवार्य था, यह तुम्हारी गलती है, चाहे आप मक्का वालों में से हों या उनके अलावा से, सई करना ज़रूरी है। तवाफ के बाद सई करना ज़रूरी है। अरफात से लौटने के बाद आप तवाफ करेंगे और सई करेंगे। जिसने सई छोड़ दी है वह अब सई करे।’’ फतावा शैख इब्ने बाज़’’ (17/341) से समाप्त हुआ।
तीसरा:
जिन वाजिबात को आप ने छोड़ दिया यहाँ तक कि उनका समय निकल गया, तो आप के लिए अनिवार्य है कि दम (जानवर की क़ुर्बानी) के द्वारा उसकी पूर्ति करें, और वे वाजिबात हैं - जमरात को कंकरी मारना, तश्रीक़ की रातों में मिना में रात गुज़ारना, क़ुर्बानी करना, यदि आप ने हज्ज क़िरान की नीयत की है।
और क्या सिर के बाल मुँडाना और छोटे करवाना भी इसी तरह है, तो आपके ऊपर उसके बदले दम अनिवार्य है, या कि आपके ऊपर अनिवार्य नहीं है, और हम आप से कहें कि अब सिर के बाल मुँडा लो और आपके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है, यह बात विद्वानों के बीच मतभेद का विषय है : हनफिय्या, मालिकिय्या और एक रिवायत में हनाबिला : इस बात की ओर गए हैं कि : जिसने सिर के बाल मुँडाने को विलंब कर दिया यहाँ तक कि क़ुर्बानी के दिन समाप्त हो गए : तो विलंब करने की वजह से उसके ऊपर दम अनिवार्य है।
तथा शाफेइय्या और एक रिवायत में हनाबिला इस बात की ओर गए हैं कि : जिसने सिर के बाल मुँडाने को विलंब कर दिया यहाँ तक कि तश्रीक़ के दिन निकल गए, तो उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है। अतः उसने जब भी उसे पूरा कर लिया तो उसके लिए काफी होगा, जैसे तवाफ ज़ियारत और सई। तथा शाफेइय्या ने उसे विलंब करने की कराहत (नापसंद होने) को स्पष्टता से वर्णन किया है। देखिए: ‘‘अल-मौसूअतुल फिक्हिय्या’’ (10/12-13).
तथा पहले कथन, दम के अनिवार्य होने का शैख उसैमीन ने भी फत्वा दिया है ; चुनाँचे शैख रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि : एक आदमी ने हज्ज या उम्रा किया, और सिर के बाल मुँडाने के समय उसने अपने पूरे सिर के बाल नहीं कटवाए, और उसके हज्ज पर व उम्रा पर कई सल बीत चुके हैं, तो इस बारे में क्या हुक्म है। तथा हम यह नियम भी जानना चाहते हैं कि हज्ज या उम्रा करने वाले को यदि वह अपने कार्यों में से कोई चीज़ छोड़ दे, तो उसको अंजाम देने के लिए उसे कब मक्का लौटने का हुक्म दिया जायेगा?
तो उन्हों ने उत्तर दिया : इस आदमी ने एक वाजिब छोड़ दिया है, और वाजिब को छोड़ने में एक फिद्या अनिवार्य है जिसे मक्का में ज़बह किया जायेगा और गरीबों में आवंटित कर दिया जायेगा। और इसी पर उसका हज्ज पूरा हो जाएगा।
रही बात हाजी के लिए जिस चीज़ को करना अनिवार्य है यदि उसने उसे छोड़ दिया है तो वह अर्कान हैं। जहाँ तक वाजिबात का संबंध है तो यदि उसका समय निकल गया तो उसे दम के द्वारा पूरा किया जायेगा।’’
मजमूओ फतावा इब्न उसैमीन’’ (22/481) से समाप्त हुआ।
चौथा :
जहाँ तक एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों के करने का संबंध है जिन्हें आप ने किया है, जैसे कि इबादत पूरी होने से पहले संभोग करना : तो आपके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि प्रत्यक्ष यही होता है कि आप ने इसे हुक्म को न जानने की वजह से किया है।
सारांश : यह कि आपके ऊपर तौबा करने के साथ ही इस इबादत के कार्यों को पूरा करने में जल्दी करना अनिवार्य है, आपके ऊपर जो अर्कान अर्थात तवाफ इफाज़ा और हज्ज की सई बाक़ी रह गए हैं उन्हें पूरा करें, तथा आपके ऊपर छूटे हुए वाजिबात की तरफ से तीन दम अनिवार्य है जो हरम में ज़बह किए जायेंगे और उसके गरीबों में आवंटित कर दि जायेंगे ; और वह सिर के बाल मुँडाना, कंकरी मारना, रात बिताना, और चौथा हदी (हज्ज की क़ुर्बानी के बदले) यदि आप हज्ज क़िरान करने वाले थे। अगर आप उसमें असमर्थ हो जायें तो दस दिन रोज़ा रखेंगे।