हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि वह पैसा इस व्यक्ति को यात्रा के उद्देश्य से दिया गया था - जैसा कि प्रश्न से प्रतीत होता है - तो उसके लिए उन लोगों की अनुमति के बिना जिन्होंने उसे यह दिया है उसके अलावा किसी और चीज़ पर खर्च करने, या उसमें से कुछ भी किसी को उपहार के रूप में देने का अधिकार नहीं है।
और यदि उसमें से कुछ बच गया है, तो उसके लिए उसे लौटाना आवश्यक है।
लेकिन अगर वह धन उसे - उपहार या अनुदान या ख़ैरात के रूप में - दिया गया था, और उसके लिए उसे ख़र्च करने के लिए कोई विशिषिट उद्देश्य निर्धारित नहीं किया गया था, या वह धन देना किसी विशिष्ट स्पष्ट कारण के लिए नहीं था, जो उसकी अपेक्षा करता था : तो उसे अपनी इच्छानुसार उसे खर्च करने का अधिकार है।
शैख़ ज़करिय्या अल-अंसारी रहिमहुल्लाह की पुस्तक “असना अल-मतालिब” (2/479) में आया है :
“(यदि वह उसे कुछ दिरहम (पैसे) देता है और कहता है कि अपने लिए) इसके द्वारा (एक पगड़ी खरीदो, या इसके द्वारा स्नानगृह में प्रवेश करो) या इसी तरह की अन्य चीज़ें, तो प्रदाता के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए (ऐसा करना निर्धारित हो जाता है)।
यह उस स्थिति में है (अगर उसका उद्देश्य) पगड़ी के द्वारा (उसके सिर को ढँकना तथा) उसके स्नानगृह में प्रवेश करने के द्वारा (उसे साफ-सुथरा करना हो) क्योंकि उस पैसे देने वाले ने उसे नंगे सिर तथा अस्वच्छ और मैले-कुचैले शरीर वाला देखा था।
(अन्यथा) अर्थात अगर उसका मतलब यह सब नहीं था, इस प्रकार कि उसने उसे सामान्य बेतकल्लुफी में कहा था : (तो ऐसा नहीं है) यानी तो उसी उद्देश्य के लिए उपयोग करना निर्धारित नहीं होगा, बल्कि वह उस धन का मालिक बन जाता है या वह अपनी इच्छानुसार उसे खर्च कर सकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख सुलैमान बिन उमर अल-जुमल रहिमहुल्लाह ने कहा : “अगर वह उसे कुछ खजूरें देता है ताकि वह उनके साथ अपना रोज़ा इफ़्तार करे, तो जो बात प्रत्यक्ष होती है उसके अनुसार उसके लिए ऐसा करना अनिवार्य हो जाता है। अतः देने वाले की मंशा को देखते हुए, उसे किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग करना जायज़ नहीं है।”
“हाशियतुल-जुमल अला शर्ह अल-मनहज” (2/328) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अद-दर्दीर रहिमहुल्लाह ने कहा : “और यदि लोगों के एक समूह या एक व्यक्ति ने उसकी मदद की। चुनाँचे उसने [अर्थात् मुकातब गुलाम ने जो कुछ उसके ऊपर अनिवार्य था] उसको चुका दिया, और कुछ पैसे बच गए, या वह अपना अनुबंध चुकाने में असमर्थ रहा : तो यदि उन लोगों ने जिससे उसकी मदद की थी उससे उनका उद्देश्य दान करना नहीं था, बल्कि उनका इरादा केवल उसे गुलामी से मुक्त करने का था, या उनके पास कोई विशेष उद्देश्य नहीं था : ऐसी स्थिति में वे गुलाम से बची हुई राशि वापस ले सकते हैं, तथा वे लोग मालिक से उस चीज़ को वापस ले सकते हैं जो उसने उनके धन में से प्राप्त किया है, यदि वह (मुकातब मालिक को अपना पैसा देने के बाद खुद को मुक्त करने में) असमर्थ रहा है ; क्योंकि उनका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।
(अन्यथा) ; अगर उनका उद्देश्य वह धन मुकातब पर दान करना था : तो वे बाक़ी बची राशि को वापस नहीं ले सकते, और न ही उस धन को वापस ले सकते हैं जिसे मालिक ने प्राप्त किया है, यदि दास खुद को मुक्त करने में असमर्थ रहा, क्योंकि दान देने का उद्देश्य गुलाम की मदद करना था और वह उसे अपने क़ब्जें में लेते ही उसका मालिक बन गया।” अद-दरदीर की “अश-शर्ह अल-कबीर” (4/404) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसके आधार पर : आपको अपने मित्र का उपहार स्वीकार करने का अधिकार नहीं है, जबकि आप स्थिति से अवगत हैं। आपको उसके पैसे लौटाने होंगे और उसे उससे सूचित करना होगा जो कुछ हमने उल्लेख किया है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।