सोमवार 29 जुमादा-2 1446 - 30 दिसंबर 2024
हिन्दी

महिला पर पुरुष के संरक्षक होने का मतलब और उसके कारण

प्रश्न

मेरा प्रश्न सूरत अन्-निसा की आयत नंबर : 34 के ऐतिहासिक संदर्भ के संबंध में है। मैंने तफ़सीर इब्ने कसीर और अन्य तफ़सीर की किताबें पढ़ीं हैं, लेकिन मुझे इसके ऐतिहासिक संदर्भ के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली। अतः क्या आप कृपया इस आयत के अवतरित होने के समय के ऐतिहासिक संदर्भ की व्याख्या कर सकते हैं? इसके अवतरित होने का कारण क्या है? और यह कब अवतरित हुई? और यह किसके संबंध में अवतरित हुई?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है :

الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاءِ بِمَا فَضَّلَ اللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَبِمَا أَنْفَقُوا مِنْ أَمْوَالِهِمْ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللَّهُ وَاللاتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُوهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوهُنَّ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلا تَبْغُوا عَلَيْهِنَّ سَبِيلاً إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيّاً كَبِيراً

النساء : ٣٤

पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है। अतः अच्छी औरतें आज्ञाकारी होती हैं तथा अपने पतियों की अनुपस्थिति में अल्लाह के संरक्षण में उनके अधिकारों की रक्षा करती हैं। फिर तुम्हें जिन औरतों की अवज्ञा का डर हो, उन्हें समझाओ और सोने के स्थानों में उनसे अलग रहो तथा उन्हें मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानें, तो उनके विरुद्ध कोई रास्ता न ढूँढो। निःसंदेह अल्लाह सर्वोच्च, सबसे बड़ा है।” (सूरत अन्-निसा : 34)

यह आयत महिला पर पुरुष की संरक्षकता को साबित करती है, और यह भी सिद्ध करती है कि यदि उसे उसकी अवज्ञा का डर हो, तो उसे उसको अनुशासित करने का अधिकार है।

और यहाँ अल्लाह तआ़ला ने इस संरक्षकता के दो कारणों का उल्लेख किया है। जिनमें से एक कारण अल्लाह तआ़ला की ओर से एक उपहार है और वह यह है कि अल्लाह ने पुरुषों को महिलाओं पर श्रेष्ठता दी है। तथा दूसरे कारण को आदमी अपनी कमाई से प्राप्त करता है और वह यह है कि पुरुष अपनी पत्नी पर धन खर्च करता है।

अल्लाह ने फ़रमाया :  بِمَا فَضَّلَ اللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَبِمَا أَنْفَقُوا مِنْ أَمْوَالِهِمْ  इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है।” (सूरत अन्-निसा : 34)

अल्लाह सुब्हानहू व तआ़ला ने इस संरक्षकता को एक दूसरे स्थान पर भी उल्लेख किया है, फ़रमाया :

وَلَهُنَّ مِثْلُ الَّذِي عَلَيْهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ وَلِلرِّجَالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

البقرة: ٢٢٨

“तथा परंपरा के अनुसार उन (स्त्रियों) के लिए उसी तरह अधिकार (हक़) है, जैसे उनके ऊपर (पुरुषों का) अधिकार है। तथा पुरुषों को उन (स्त्रियों) पर एक दर्जा प्राप्त है और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।” (सूरतुल्-बक़रा : 228)

इब्ने कस़ीर रहिमहुल्लाह अपनी तफ़सीर (1/363) में कहते हैं : “अल्लाह के फ़रमान :  وَلِلرِّجَالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ ''पुरुषों को स्त्रियों पर एक दर्जा प्राप्त है।'') अर्थात् शारीरिक रचना और नैतिकता में, स्थिति और आज्ञा का पालन करने में, खर्च करने और विभिन्न मामलों की देखभाल करने में तथा दुनिया और आख़िरत में अधिक से अधिक पुण्य प्राप्त करने में श्रेष्ठता प्रदान की है। जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया : ''पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है।” समाप्त हुआ।

इब्ने कस़ीर रहिमहुल्लाह अपनी तफ़सीर (1/653) में यह भी कहते हैं : “अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है : (पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं।) इस का मतलब यह है कि पुरुष स्त्री का संरक्षक है। यानी पुरुष ही उसका मुखिया और बड़ा है, वही उस पर शासक है, और उसके कुटिल होने पर उसे अनुशासित करने वाला है। तथा अल्लाह का फ़रमान है : (इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है) अर्थात् क्योंकि पुरुष महिलाओं की तुलना में अफ़ज़ल हैं तथा एक पुरुष एक स्त्री से बेहतर है। इसीलिए पैग़ंबरी (ईशदूतत्व) पुरुषों के लिए विशिष्ट है तथा बादशाहत भी पुरुषों के लिए आरक्षित है, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “जो क़ौम किसी औरत के हाथ में सत्ता सोंप देगी, वह कभी सफल नहीं होगी।” इस हदीस को बुख़ारी ने अब्दुर्रहमान बिन अबू बकरा के वास्ते से उनके पिता अबू बकरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है। इसी प्रकार न्यायाधीश का पद और अन्य पद भी पुरुषों के लिए विशिष्ट हैं।

तथा अल्लाह ने फ़रमाया : (तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है।) इस में मह्र, भरण-पोषण और अन्य ख़र्च भी शामिल हैं, जिन्हें अल्लाह ने अपनी पुस्तक में और उसके नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी हदीसों में स्त्रियों के लिए पुरुषों पर अनिवार्य किया है। अतः एक पुरुष अपने आप में महिला से बेहतर है और इसके अतिरिक्त उसे यह श्रेष्ठता प्राप्त है कि स्त्री पर वही ख़र्च भी करता है,  इसलिए उसका स्त्री का संरक्षक और प्रभारी होना उचित है। जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया : (तथा पुरुषों को स्त्रियों पर एक दर्जा प्राप्त है।)  

अली बिन अबू त़लह़ा रहिमहुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत करते हैं कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के इस फ़रमान : (पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं।) का मतलब है कि वे उनके शासक हैं। इसलिए महिला के लिए ज़रूरी है कि वह उसके आदेशों एवं निर्देशों का पालन करे। उसकी आज्ञा का पालन करने का मतलब है कि उसे उसके परिवार के प्रति उपकारी हो और उसकी संपत्ति की अच्छी तरह देखभाल करे।” उद्धरण समाप्त हुआ।

बैज़ावी रहिमहुल्लाह अपनी तफ़सीर (2/184) में कहते हैं :

“अल्लाह के फ़रमान : “(पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं।) यानी वे उनकी देखभाल वैसी ही करते हैं जैसे शासक अपनी प्रजा की देखभाल करते हैं।

अल्लाह ने इस इस संरक्षकता के दो कारणों का उल्लेख किया है : एक अल्लाह की ओर से प्रदान किया हुआ है, और दूसरा अपने परिश्रम से मिला है। अल्लाह ने फ़रमाया : (इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है।) अल्लाह तआ़ला ने पुरुषों को महिलाओं पर श्रेष्ठता प्रदान की है इस प्रकार कि अल्लाह तआ़ला ने उन्हें पूर्ण बुद्धि, मामलों को अच्छे तरीक़े से चलाने की क्षमता, कार्यों और आज्ञाकारिता में महिलाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति प्रदान किए हैं। इसीलिए कुछ कार्य केवल पुरुषों के लिए विशिष्ट हैं, जैसे पैग़ंबरी, इमामत, प्रशासन, अनुष्ठान करना, विभिन्न क़ानूनी मामलों में गवाही देना, जिहाद में लड़ने और जुमा के लिए उपस्थित होने की अनिवार्यता, महिलाओं की तुलना में विरासत में दुगुना हिस्सा और त़लाक़ देने का अधिकार।

दूसरे कारण के बारे में फ़रमाया : (तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है।) यानी उनसे विवाह करने में जैसे मह्र और भरण-पोषण।” साधारण परिवर्तन के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा ज़ुह़ैली रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“पुरुष स्त्री का संरक्षक है। यानी पुरुष ही उसका मुखिया और बड़ा है, वही उस पर शासक है, और उसके कुटिल होने पर उसे अनुशासित करने वाला है, वही उसकी सुरक्षा और देखभाल का ज़िम्मेदार है, तथा जिहाद औरत के बजाय पुरुष ही पर अनिवार्य है और स्त्री की तुलना में पुरुष के लिए विरासत में दुगुना हिस्सा है, क्योंकि वही उसपर खर्च करने के लिए बाध्य है।

पुरुषों के महिलाओं के संरक्षक होने के दो कारण हैं :

पहला कारण : जन्मजात शारीरिक विशेषताओं की उपस्थिति: : पुरुष शारीरिक रूप से परिपूर्ण होता है, समझ बूझ का मज़बूत होता है, बुद्धि का तेज़ होता है, भावनाओं में मध्यम, शारीरिक रूप से मज़बूत एवं स्वस्थ होता है। इस प्रकार पुरुष को सूझ-बूझ, बुद्धि, राय, दृढ़ संकल्प और शक्ति में महिलाओं पर प्राथमिकता प्राप्त होती है। इसीलिए पुरुषों को रिसालत एवं पैग़म्बरी, महान इमामत अर्थात प्रशासन पद, न्यायपालिका, तथा अज़ान, इक़ामत, ख़ुत़बा, जुमा और जिहाद जैसे अनुष्ठान करने के लिए विशिष्ट कर लिया गया है। इसी तरह त़लाक़ का अधिकार उन्हीं को दिया गया है, उन्हें कई पत्नियां रखने की अनुमति दी गई है, मार-पीट और हत्या आदि से संबंधित मुकदमों तथा धर्मानुसार दिए जाने वाले दंड के मामलों में गवाही देना पुरुषों के साथ ख़ास है, विरासत में इन्हें दुगुना हिस्सा मिलता है और यह विरासत के कुछ मामलों में “अ़सबा” होता है।

दूसरा कारण : पत्नी और अन्य रिश्तेदार महिलाओं पर खर्च करने की ज़िम्मेदारी पुरुष पर होती है, तथा वह मह्र का भुगतान करने के लिए बाध्य है, जो महिला का सम्मान करने का एक प्रतीक है।

इसके अलावा चीज़ों में, पुरुष और महिलाएँ हुक़ूक़ और वाजिबात (अधिकारों और कर्तव्यों) के मामले में एक समान हैं। और यह इस्लाम धर्म के गुणों में से एक है। अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया :

وَلَهُنَّ مِثۡلُ ٱلَّذِي عَلَيۡهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَيۡهِنَّ دَرَجَةٞۗ 

البقرة ٢/ ٢٢٨

''तथा परंपरा के अनुसार उन (स्त्रियों) के लिए उसी तरह अधिकार (हक़) है, जैसे उनके ऊपर (पुरुषों का) अधिकार है। तथा पुरुषों को उन (स्त्रियों) पर एक दर्जा प्राप्त है” (सूरतुल्-बक़रा : 228) यानी घर का प्रबंधन करने, पारिवार के मामलों की निगरानी करने, उनका मार्गदर्शन करने और उन पर नज़र रखने में पुरुषों को दर्जा प्राप्त है...'' अत-तफ़सीर अल-मुनीर (5/54) से उद्धरण समाप्त हुआ।

द्वितीय :

इस आयत के अवतरित होने के कारण से संबंधित कुछ ज़ईफ़ यानी अप्रामाणिक हदीसें बयान की गई हैं, जिनमें से एक वह है जिसे इमाम त़बरी रहिमहुल्लाह ने अपनी तफ़सीर (8/291) में हसन रहिमहुल्लाह से उल्लेख किया है कि : “एक आदमी ने अपनी पत्नी को थप्पड़ मार दिया, तो वह औरत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई और आप उसे उस आदमी से बदला दिलाना चाहते थे। इसपर अल्लाह ने यह आयत उतारी :  الرجالُ قوّامون على النساء بما فضل الله بعضهم على بعض وبما أنفقوا من أموالهم  (पुरुष स्त्रियों के संरक्षक हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है तथा इस कारण कि पुरुषों ने अपना धन ख़र्च किया है।” (सूरत अन्-निसा : 34) फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस आदमी को बुलवाया और उसे यह आयत पढ़कर सुनाई और फ़रमाया : "मैंने एक चीज़ का इरादा किया था, लेकिन अल्लाह कुछ और चाहता था।”

इस हदीस की इस्नाद (हदीस बयान करने वालों की श्रृंखला) हसन रहिमहुल्लाह तक सहीह (प्रामाणिक) है, लेकिन हसन एक ताबेई हैं। इसलिए यह हदीस "मुर्सल" है, और "मुर्सल" हदीस अप्रामाणिक हदीसों की श्रेणी में से है।

मुक़ातिल रहिमहुल्लाह कहते हैं : यह आयत सा'द बिन रबी' रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में उतरी थी, जो अंसार के सरदारों में से एक थे। उनकी पत्नी ह़बीबा बिन्त ज़ैद बिन अबी हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हा थीं और यह दोनों अंसार में से थे। दरअसल उन्होंने अपने पति की अवज्ञा की थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को थप्पड़ मार दिया...

इसके बारे में जो वर्णित हुआ है उसका वर्णन प्रश्न संख्या (220192) के उत्तर में देखें।

तीसरा:

जहाँ तक इस आयत के संदर्भ और इसके अपने से पूर्व आयत के साथ उपयुक्तता का सवाल है, तो “अल्लाह तआ़ला ने पहले विरासत में प्रत्येक के हिस्से को स्पष्ट करने के बाद, यहाँ पुरुषों को महिलाओं पर श्रेष्ठता देने के कारण का उल्लेख किया है। तथा अल्लाह ने पुरुषों और महिलाओं को उस चीज़ की कामना करने से मना किया है, जिस चीज़ के द्वारा उसने उनमें से कुछ को दूसरों पर श्रेष्ठता प्रदान की है।'' ज़ुह़ैली की "अत-तफ़सीर अल-मुनीर" (5/45) से उद्धरण समाप्त हुआ।

ज़ुह़ैली के उपर्युक्त कथन में अल्लाह तआ़ला के इस फ़रमान की तरफ़ इशारा किया गया है :

وَلَا تَتَمَنَّوۡاْ مَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بِهِۦ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبُواْۖ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبۡنَۚ وَسۡـَٔلُواْ ٱللَّهَ مِن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا 

النساء : ٣٢

“तथा अल्लाह ने जिस चीज़ के द्वारा तुममें से कुछ को दूसरों पर प्रतिष्ठा प्रदान की है, उसकी कामना न करो। पुरुषों के लिए उसमें से हिस्सा है, जो उन्होंने कमाया और स्त्रियों के लिए उसमें से हिस्सा है, जो उन्होंने कमाया है। तथा अल्लाह से उसका अनुग्रह माँगते रहो। निःसंदेह, अल्लाह सब कुछ जानने वाला है।” (अन्-निसा : 32)

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर