हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
विद्वानों के यहाँ इस मुद्दे को “मसअलतुज़् ज़फर” के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में विद्वानों के बीच मतभेद पाया जाता है। कुछ विद्वानों ने अत्याचारी से अपना हक़ लेने से मना किया है। तथा कुछ अन्य विद्वानों ने इस शर्त के साथ इसकी अनुमति दी है कि वह अपने हक़ से अधिक न ले और उसे अपमान (बदनामी) और दण्डित किए जाने का खतरा न हो। और दोनों कथनों में से यही कथन सही है।
शैख़ शन्क़ीत़ी रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“यदि कोई आदमी आप पर अत्याचार करते हुए गैरकानूनी तरीके से आपके माल से कुछ ले ले, और आपके लिए उसे साबित करना संभव न हो। और आप उसी जैसी चीज़ पर जिसके द्वारा उसने आप पर अत्याचार किया है इस रूप से सक्षम हो जाते हैं कि आप उसके साथ अपमान और सज़ा से सुरक्षित रहते हैं, तो क्या आप अपने हक़ के बराबर ले सकते हैं या नहीं?
दो कथनों में से सब से सही और शरीयत के नुसूस (ग्रंथों) के प्रत्यक्ष अर्थों तथा क़यास के सबसे निकट यही है कि : आप अपने हक़ की मात्रा में बिना किसी वृद्धि के ले सकते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान हैः
فَعَاقِبُوا بِمِثْلِ مَا عُوقِبْتُم بِهِ…
“और यदि तुम लोग बदला लो, तो उतना ही लो, जितना तुम्हें कष्ट पहुँचा हो...” (सूरतुन-नह्ल :126)
और फरमाया :
فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱعۡتَدُواْ عَلَيۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡۚ
“अतःजो तुमपर अतिक्रमण (अत्याचार) करे, तो तुम भी उसपर उसी के समान (अतिक्रमण) करो।”(सूरतुल बक़रा : 194)
इस विचार के मानने वालों में : इब्ने सीरीन, इब्राहीम नख़्ई, सुफ्यान और मुजाहिद वग़ैरह शामिल हैं।
तथा विद्वानों के एक समूह – जिनमें इमाम मालिक भी शामिल हैं - का कहना है किः यह जायज़ नहीं है। इसी विचार पर चलते हुए ख़लील बिन इसहाक़ मालिकी ने अपने “मुख़्तसर” में “वदीयत” (अमानत रखी हुई चीज़) के बारे में यह बात कही है : उसके लिए उसमें से कुछ लेने का अधिकार नहीं है कि उस व्यक्ति ने उसपर उसी के समान अत्याचार किया था। इस विचार के मानने वालों ने इस हदीस को तर्क बनाया है:
“जिसने आपके पास अमानत रखी है, उसकी अमानत को वापस कर दो, और जिसने आपके साथ विश्वासघात (धोखा) किया है उसके साथ विश्वासघात न करो।” समाप्त हुआ।
इस हदीस को – यदि इसे सही मान लिया जाए - इस संदर्भ में तर्क नहीं बनाया जा सकता है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने अपने हक़ के बराबर लिया है और उससे ज़्यादा नहीं लिया है, तो वास्तव में उसने विश्वासघात करने वाले के साथ विश्वासघात नहीं किया है। बल्कि उसने अपने आपको उस व्यक्ति से न्याय दिलाया है जिसने उसपर अत्याचार किया था।”“अज़्वाउल बयान” (3/353)
यह इमाम बुख़ारी और इमाम शाफेई का कथन है, जैसा कि अबू ज़ुर्आ़ इराक़ी ने “तरहुत् तस्रीब” (8/226) में उल्लेख किया है। तथा तिर्मिज़ी ने उल्लेख किया है कि कुछ ताबेईन का भी यही कथन है, जिनमें से उन्हों ने सुफ्यान स़ौरी का नाम उल्लेख किया है।
इसकी अनुमति न देने वालों ने जिस हदीस से तर्क लिया है वह अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की यह हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“जिसने आपके पास अमानत रखी है, उसकी अमानत को वापस कर दो, और जिसने आपके साथ विश्वासघात (धोखा) किया है उसके साथ विश्वासघात न करो।” इस हदीस को तिरमिज़ी (हदीस संख्या: 1264) और अबू दाऊद (हदीस संख्या: 3535) ने रिवायत किया है तथा शैख़ अल्बानी ने “सिलसिला सहीहा” (हदीस संख्या: 423) में इसे सही क़रार दिया है।
अतः आप इस यहूदी नियोकता (काम देनेवाले) से अपना हक़ ले सकते हैं, इस शर्त के साथ कि आप अपने हक़ से ज़्यादा न लें और आपके मामले के पता चलने का कोई खतरा न हो, जो अपमान और इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि आप लोगों के सामने अपना हक़ साबित नहीं कर सकते। फिर यदि वह इसके बाद आपका हक़ या उसका कुछ हिस्सा दे दे तो आपके ऊपर अनिवार्य है कि जो आपके हक़ से अधिक है वह उसे वापस कर दें।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।