गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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पशुओं के सींग से लाभ उठाने का हुक्म

प्रश्न

उन सींगों का क्या हुक्म है जो जानवरों से, उनके जीवित रहते हुए या उनके मरने के बाद, काट लिया जाता है और उन्हें लाभदायक कामों के लिए उपयोग किया जाता है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

 यदि सींग ऐसे जानवरों से लिए गए हैं जिनके मांस को खाने की अनुमति है, जैसे कि गाय और भेड़-बकरी, तो इसके संबंध में विद्वानों के बीच बिना किसी मतभेद के उनसे लाभ उठाना जायज़ है।

लेकिन अगर सींग को जानवर से उसके जीवित रहते हुए ही काट लिया जाता है, या शरई तरीक़े से ज़बह किए बिना उसके मर जाने के बाद उसे निकाल लिया जाता है, तो विद्वानों ने उसके पवित्र होने के बारे में मतभेद किया है।

मालिकिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला का प्रसिद्ध मत यह है किः वे अशुद्ध (नापाक) हैं।

“अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्यह अल-कुवैतिय्यह” (39 / 391-392) में आया है :

“फ़ुक़्हा ने मांस खाए जाने वाले मुर्दा जानवरों की हड्डियों, सींगों, खुरों और नाखूनों से लाभ उठाने के हुक्म के बारे में दो कथनों पर मतभेद किया है :

पहला कथन : शाफेइय्या, मालिकिय्या और हनाबिला का है, जो कहते हैं कि वे अशुद्ध (नापाक) हैं और उनका इस्तेमाल करना जायज़ नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

उन्होंने इस तथ्य को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है कि यह मुर्दा जानवर का हिस्सा है, इसलिए वह अशुद्ध (नापाक) होगा। इसी तरह अगर उसे जानवर के जीवित रहते हुए काट लिया जाता है; तो उस समय उसका हुक्म भी मुर्दा जानवर का है।

 इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“सींग, नाखून औ खुर, हड्डियों की तरह हैं, यदि उन्हें किसी ऐसे जानवर से लिया गया है जिसे शरई तरीक़े से ज़बह किया गया है, तो वे शुद्ध (पाक) हैं, लेकिन अगर उन्हें जीवित जानवर से लिया गया है, तो वे अशुद्ध हैं, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जो जानवर से इस हाल में काट लिया जाता है कि वह जीवित होता है, तो वह मुर्दार (मृत मांस) है।” इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और कहा है कि यह हदीस हसन गरीब है।” “अल-मुग़्नी” (1/99) से उद्धरण समाप्त हुआ।

हनफिय्या और एक रिवायत के अनुसार इमाम अहमद इस बात की ओर गए हैं कि वह शुद्ध (ताहिर) है और उससे लाभ उठाना जायज़ है। शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने इस दूसरे कथन को अपनाया है और कहा है कि : यह सलफ़ की बहुमत का कथन है।

देखें : “मजमूउल-फतावा” (21/96-102)।

हमने उनके कथन को संक्षिप्त रूप में प्रश्न संख्या : (258312) के उत्तर में उद्धृत किया है।

बुखारी रहिमहुल्लाह ने कहा : ज़ुहरी ने कहा : “मृत जानवरों की हड्डियों - जैसे कि हाथी वग़ैरह – के संबंध मे : मैंने सलफ़ के विद्वानों में से कुछ लोगों को पाया कि वे उनसे कंघी करते थे और उनके बने बर्तनों में तेल लगाते थे, इसमें कोई हर्ज नहीं समझते थे।” “फत्हुल-बारी” (1/342)।

हाफिज़ इब्ने हज़र रहिमहुल्लाह ने कहा :

“उनका वाक्यांश : (उसके बने हुए बर्तनों में तेल लगाते थे) यह दर्शाता है कि वे उसके पवित्र (पाक) होने को मानते थे।” “फत्हुल-बारी” (1/343) से उद्धरण समाप्त हुआ।

 इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा :

“उनकी शुद्धता को इस तरह अर्जित किया गया है कि : मृत जानवर को अशुद्ध मानने का कारण हड्डियों के संबंध में लागू नहीं है। इसलिए उन (हड्डियों) को अपवित्र नहीं माना गया है। उन्हें मांस पर क़यास करना सही नहीं है, क्योंकि आर्द्रताओं और अशुद्ध अपशिष्ट का जमाव मांस के साथ विशिष्ट है, हड्डियों से संबंधित नहीं है। इसी तरह जिसका बहने वाला खून न हो वह मृत्यु की वजह से अशुद्ध नहीं होता है, जबकि वह संपूर्ण जानवर है, क्योंकि उसमें अशुद्ध ठहराने का कोई कारण नहीं पाया जाता है; तो हड्डी इस बात के अधक योग्य है। यह तर्क पहले की तुलना में अधिक सही और मजबूत है। इसके आधार पर, मृत जानवर की हड्डियों को बेचना जायज़ है, यदि वह एक ऐसे जानवर से है जो अपने अस्तित् में शुद्ध (पाक) है।” “ ज़ादुल-मआद” (5/674) से उद्धरण समाप्त हुआ।

अतः मृत जानवर की हड्डी और उसकी सींग के पवित्र होने का कथन एक मज़बूत कथन है, जैसाकि यह बात स्पष्ट है। इसलिए अगर कोई इसको अपनाता है तो उसपर कोई हर्ज नहीं है, लेकिन अगर कोई सावधानी का पक्ष अपनाता है और जानवर की हड्डियों या सींगों से लाभ उठाना छोड़ देता है, तो यह उसके लिए बेहतर है, वशेषकर यदि वह ऐसी चीज़ है जिसके बिना वह काम चला सकता है और उसका कोई विकल्प ढूंढ सकता है, जिससे वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। 

और अल्लाह ही सबसे अधिक जानता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर