गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अपने साथियों के साथ व्यवहार का विवरण

प्रश्न

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों के साथ कैसे व्यवहार करते थेॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अपने साथियों के साथ व्यवहार बिल्कुल उसी के अनुसार था, जो अल्लाह तआला ने आपको आदेश दिया था, जैसा कि महिमावान् अल्लाह के इस फरमान में है :

فَبِمَا رَحْمَةٍ مِنَ اللَّهِ لِنْتَ لَهُمْ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوا مِنْ حَوْلِكَ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِي الْأَمْرِ   [ سورة آل عمران 159]

“अल्लाह की दया के कारण (ऐ नबी!) आप उनके लिए सरल स्वभाव के हैं। और यदि आप प्रखर स्वभाव और कठोर हृदय के होते, तो वे आपके पास से छट जाते। अतः आप उन्हें माफ़ कर दें और उनके लिए क्षमा याचना करें। तथा उनसे मामलों में परामर्श करें।” [सूरत आल-इमरान : 159]।

इस आयत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपने साथियों के साथ व्यवहार में तीन चीजें का आग्रह किया गया है :

पहली चीज़ :

उनपर दया व करुणा करना और उन्हें क्षमा कर देना।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अपने साथियों के साथ यही रवैया था।

अल्लाह सर्वशक्तिमान् ने फरमाया :

لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِنْ أَنْفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَاعَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُمْ بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ        [التوبة:128]

“निश्चय तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आया है। तुम्हारा कठिनाई में पड़ना उसके लिए असहनीय है। वह तुम्हारे (हित के) लिए लालायित है। वह मोमिनों पर बहुत करुणा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।” (सूरतुत-तौबा : 128).

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया व करुणा के रूपों में से यह भी है कि आप उनके साथ नरमी करने वाले थे, उन्हें सिखाने और शिक्षा देने पर या उन लोगों में से कुछ की कठोरता पर, जो इस तरह से व्यवहार करने के आदी थे, धैर्य से काम लेने वाले थे।

अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ चल रहा था और उस समय आप एक मोटी किनारी वाली नजरानी चादर ओढ़े हुए थे। तो एक देहाती आदमी आपके पास आया और उसने आपकी चादर को पकड़ कर बहुत ज़ोर से खींचा। अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गर्दन को देखा तो ज़ोर से खींचने के कारण आप की गर्दन पर चादर के निशान पड़ गए थे। फिर उसने कहा : हे मुहम्मद, तुम्हारे पास अल्लाह का जो माल है, उसमें से मुझे भी कुछ दो। आप ने उसकी ओर मुड़कर देखा और मुसकुरा दिया। फिर आप ने उसे कुछ माल देने का आदेश दिया।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 6088) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1057) ने रिवायत किया है।

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है : “एक देहाती ने मस्जिद में पेशाब कर दिया, तो लोग उसे मारने के लिए बढ़े। लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा : “उसे छोड़ दो (पेशाब कर लेने दो) और उसके मूत्र पर एक डोल (बाल्टी) पानी डाल दो। क्योंकि तुम आसानी करने वाले बनाकर भेजे गए हैं, तंगी करने वाले बनाकर नहीं भेजे गए हो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6128) ने रिवायत किया है।

तथा मुआवियह बिन अल-हकम अस-सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ रहा था। इतने में हम लोगों में से एक व्यक्ति को छींक आई। मैंने कहा : यर्हमुकल्लाह (अल्लाह तुझपर दया करे)। तो लोगों ने मुझे घूरना शुरू कर दिया। मैंने कहा : मेरी माँ मुझे गुम पाए (हाय मेरा सर्वनाश हो गया!) तुम मुझे क्यों घूर रहे होॽ यह सुनकर उन्होंने अपनी रानों पर हाथ मारना शुरू कर दिया। जब मुझे एहसास हुआ कि वे मुझे चुप रहने के लिए कह रहे हैं, तो मैं चुप हो गया। जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ पढ़ चुके, तो मेरी माता और पिता आप पर क़ुर्बान हों! मैंने आपसे पहले और आपके बाद, कोई शिक्षक नहीं देखा, जो आपसे बेहतर शिक्षा देने वाला हो। अल्लाह की क़सम! न नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे फटकार लगाई, न ही मुझे मारा और न ही मुझे गाली दी। आपने फरमाया : “नमाज़ में किसी भी प्रकार की लोगों की बातचीत सही नहीं है। वह तो केवल तस्बीह, तकबीर और क़ुरआन का पाठ करना है।” ... इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 537) ने रिवायत किया है।

उनके प्रति आपकी दया व करुणा के रूपों में से यह भी है कि आप उनका सामने होने पर बहुत मुस्कुराते थे।

जरीर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “जब से मैं इस्लाम लाया हूँ पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे अपने पास आने से नहीं रोका, और जब भी आपने मुझे देखा, तो मुस्कुरा दिए।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 6089) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2475) ने रिवायत किया है।

अब्दुल्लाह बिन अल-हारिस बिन जज़्अ रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अधिक तबस्सुम करने (मुस्कुराने) वाला किसी को नहीं देखा।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3641) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह सुनन तिर्मिज़ी” में इसे सहीह कहा है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने क्रोध और कठोरता को केवल उसी मामले में प्रकट करते थे, जिसमें अल्लाह की प्रसन्नता के लिए उसकी आवश्यकता पड़ती थी और उससे आपके साथियों के लिए उनके धर्म की रक्षा होती थी।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, वह बयान करती हैं : पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जब भी दो कामों के बीच चयन करने का अवसर दिया गया, तो आपने हमेशा उनमें आसान काम ही को चयन किया, जब तक कि उसमें कोई गुनाह का पहलू न हो। अगर उसमें कोई गुनाह का पहलू होता, तो आप उससे सबसे अधिक दूर रहते। अल्लाह की क़सम! आप ने कभी किसी चीज़ में अपने नफ़्स (स्वार्थ) के लिए बदला नहीं लिया। किन्तु अगर अल्लाह की हुर्मतों (निषेधों) को पामाल किया जाता, तो आप अल्लाह के लिए बदला लेते थे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6786) ने रिवायत किया है।

दूसरी चीज़ :

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों के लिए और उसके लिए जो आपको क्रोधित करता या गुस्सा दिलाता, क्षमा याचना करते थे।

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “ऐ अल्लाह! मुहम्मद एक मनुष्य ही है, वह क्रोधित होता है जैसे कोई भी मनुष्य क्रोधित होता है। मैंने तुझसे एक प्रतिज्ञा लिया है, जिसे तू मुझसे कभी नहीं तोड़ेगा। अतः मैं जिस मोमिन को भी कष्ट पहुँचाऊँ, या गाली दूँ, या मारूँ, तो तू इसे उसके लिए कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) और निकटता का साधन बना दे, जिसके द्वारा तू उसे क़ियामत के दिन अपने क़रीब कर दे।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 6361) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2601) ने रिवायत किया है और ये शब्द मुस्लिम के हैं।

तीसरी चीज़ :

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस मामले में अकेले निर्णय नहीं लेते थे, जिसमें अनुभव, तजरबा और विचार-विमर्श की आवश्यकता होती। आप अपने साथियों से सलाह लेते थे और उन्हें उस मामले में निर्णय लेने में शामिल करते थे, अल्लाह के इस फरमान का पालन करते हुए :

وَشَاوِرْهُمْ فِي الْأَمْرِ   [آل عمران :159]

"और उनसे मामले में परामर्श करें।" [सूरत आल-इमरान : 159]

इब्न कसीर ने कहा :

“इसी कराण अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कोई मामला पेश आने पर अपने साथियों से, उनकी दिलजोई के लिए, उसके विषय में परामर्श करते थे; ताकि वे जो कुछ करते हैं उसमें अधिक सक्रिय हो सकें। जैसा कि आपने बद्र के युद्ध के दिन कारवाँ के पीछे जाने के बारे में सहाबा से सलाह ली, तो उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यदि आप हमें लेकर इस समुद्र में कूदना चाहें, तो हम आपके साथ इसमें भी कूद जाएँगे, यदि आप हमें बर्कुल-ग़िमाद तक ले जाएँग, तो हम आपके साथ वहाँ भी जाएँगे। और हम आपसे उस तरह नहीं कहेंगे जिस तरह कि मूसा की क़ौम के लोगों ने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा था कि : “तुम और तुम्हारा रब जाओ और लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे। बल्कि हम तो यह कहेंगे : आप चलें, हम आपके साथ और आपके सामने हैं, और आपके दाहिने और बाएँ लड़ने वाले हैं।

इसी तरह आपने उनसे यह भी सलाह ली कि उन्हें कहाँ पड़ाव डालना चाहिएॽ तो अल-मुंज़िर बिन अम्र ने आगे बढ़ने का सुझाव दिया। तथा आपने उहुद के युद्ध में उनसे सलाह ली कि क्या मदीना में रहकर मुक़ाबला करना चाहिए या दुश्मन की ओर निकलकर उनका सामना करना चाहिए, तो उनमें से अधिकांश ने सुझाव दिया कि मदीना से बाहर निकलकर उनका सामना करना चाहिए। इसलिए आपने दुश्मन की ओर निकलकर सामना किया।

तथा खंदक़ के युद्ध के दिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे उस वर्ष के मदीना के फलों के एक तिहाई फल पर अहज़ाब (मुश्रिकों के जत्थों) के साथ संधि करने के बारे में परामर्श किया, लेकिन दोनों सअद : सअद बिन मुआज़ और सअद बिन उबादह ने इस विचार को खारिज कर दिया। इसलिए आपने ऐसा नहीं किया।

इसी तरह हुदैबियह के दिन, आपने उनसे मुश्रिकों के बच्चों पर हमला करने के बारे में सलाह ली, तो अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपसे कहा : “हम किसी से लड़ने के लिए नहीं आए हैं; बल्कि हम तो केवल उम्रा करने के लिए आए हैं। तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके विचार को स्वीकार किया।

तथा इफ़्क की घटना के अवसर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “मुसलमानों! मुझे उन लोगों के बारे में सलाह दो, जिन्होंने मेरे परिवार पर आरोप लगाया है। अल्लाह की क़सम! मैं अपने परिवार के बारे में कुछ भी बुरा नहीं जानता। और उन्होंने उसे एक ऐसे व्यक्ति के साथ आरोपित किया है – अल्लाह की क़सम! - जिसके बारे में मुझे भलाई के अलावा कुछ भी नहीं पता।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अली और उसामा रज़ियल्लाहु अन्हुमा से आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से अलग होने के बारे में परामर्श किया।

इस तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम युद्ध के अवसरों और अन्य मामलों के संबंध में सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से सलाह व मश्वरा किया करते थे।”

“तफ़सीर इब्ने कसीर” (2/149) से उद्धरण समाप्त हुआ।

अधिक जानकारी के लिए किताब : “कैफ़ा आमलहुम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम” निम्नलिखित लिंक पर देखे :

https://almunajjid.com/9468

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर