हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ईमान के विषय में आदमी पर सबसे पहले यह अनिवार्य है कि वहः अल्लाह महिमावान पर ईमान लाए; क्योंकि जब तक वह यह साबित नहीं करता है कि दुनिया में एक पूज्य है, उस समय तक अंबिया अलैहिमुस्सलाम की सच्चाई को जानना असंभव है। इसलिए अल्लाह तआला का ज्ञान ही मूलाधार है। इसी कारण अल्लाह तआला ने इसे सबसे पहले उल्लेख किया है।
फिर बहुत से ग्रंथों में सर्वशक्तिमान अल्लाह पर ईमान के बाद, अल्लाह के सम्मानित फरिश्तों (स्वर्गदूतों) पर ईमान का उल्लेख हुआ है। इसकी हिकमत (तत्वदर्शिता) यह है कि : अल्लाह तआला अंबिया अलैहिमुस्सलाम की ओर फरिश्तों ही के माध्यम से वह्य करता है, अल्लाह ने फरमायाः
يُنَزِّلُ الْمَلَائِكَةَ بِالرُّوحِ مِنْ أَمْرِهِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ
النحل: 2
“वह फ़रिश्तों को अपने हुक्म की वह्य के साथ अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है उतारता है।” (सूरतुन नह्लः 2).
तथा फरमाया :
نَزَلَ بِهِ الرُّوحُ الْأَمِينُ عَلَى قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ الْمُنْذِرِينَ
الشعراء: 193-194
“इसे विश्वसनीय फ़रिश्ता (जिब्रील) लेकर उतरा है, आपके हृदय पर ताकि आप सावधान करनेवालों में से हो जाएँ।” (सूरतुश शोअराः 193-194).
जब यह सिद्ध हो गया कि अल्लाह की वह्य मनुष्यों तक फरिश्तों के माध्यम ही से पहुँचती है, तो फरिश्ते ही अल्लाह तआला और मनुष्यों के बीच माध्यम हैं। इसी कारण फरिश्तों का उल्लेख दूसरे स्थान पर किया गया है।
और इसी रहस्य के कारण अल्लाह ने यह भी फरमाया :
شَهِدَ اللَّهُ أَنَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ وَالْمَلَائِكَةُ وَأُولُو الْعِلْمِ قَائِمًا بِالْقِسْطِ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
آل عمران: 18
“अल्लाह तआला और फरिश्ते और ज्ञानी लोग इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह तआला के अतिरिक्त कोई उपास्य (मा´बूद) नहीं और वह न्याय को स्थापित करने वाला है, उस प्रभुत्वशाली और सर्वबुद्धिमान के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं।” (सूरत आल-इम्रान: 18)
तीसरे स्थान: पर किताबों पर ईमान का उल्लेख किया गया है। इससे अभिप्राय वह “वह्य” है जिसे फरिश्ता अल्लाह तआला से प्राप्त करता है और उसे मनुष्यों तक पहुँचाता है। अतः इसी कारण फरिश्ते का उल्लेख पुस्तकों के उल्लेख से पहले किया गया है, और पुस्तकों का उल्लेख बाद में किया गया है।
चौथे स्थान : पर रसूलों का उल्लेख किया गया है, जो कि वे लोग हैं जो फरिश्तों से वह्य की रोशनी को ग्रहण करते हैं; इसी कराण रसूलों का उल्लेख चौथे स्थान पर किया गया है।
इसका उल्लेख इमाम राज़ी ने अपनी तफ़सीर (7/108) में किया है। तथा देखें : हाशिया ज़ादह अलल-बैज़ावी (2/694)।
अत-तीबी ने कहा : “फरिश्ते का उल्लेख किताब और रसूलों से पहले किया गया हैः वस्तुस्थिति के क्रम का पालन करते हुए, क्योंकि अल्लाह (सर्वशक्तिमान) ने फरिश्ते को किताब के साथ रसूल की ओर भेजा।” ”शर्ह अल-मिशकात” (2 425) से उद्धरण समाप्त हुआ।
बहर हाल, यह केवल ज्ञान की रोचक व चित्ताकर्षक, तथा कोमल व सूक्ष्म बातों में से है, यह उसके स्तंभों में से या उसकी ठोस व मजबूत बातों में से नहीं है, जिन पर कोई अक़ीदा या हुक्म आधारित होता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।