बुधवार 13 रबीउस्सानी 1446 - 16 अक्टूबर 2024
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उस व्यक्ति का खंडन जो यह दावा करता है कि अल्लाह लोगों को यातना देना पसंद करता है

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प्रकाशन की तिथि : 01-06-2024

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प्रश्न

मैं उन लोगों को कैसे जवाब दूँ, जो कहते हैं कि : अल्लाह - वह महिमामंडित और सर्वोच्च है अत्याचारियों की बातों से - परपीड़क है और लोगों को यातना देना पसंद करता है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

यह एक घृणित कथन है जिसे वही कह सकता है, जो पथभ्रष्ट, सत्य-धर्म से पलट जाने वाला, अपने पालनहार की नेमतों और अपने ऊपर उसके अनुग्रह का इनकार करने वाला है।

यह अल्लाह पर एक झूठ और मिथ्यारोपण है और उसे बुरी विशेषताओं से वर्णन करना है, जो एक सामान्य मख़्लूक़ (प्राणी) के योग्य नहीं हैं, तो फिर दानशील, उपकारी और दयालु ख़ालिक़ (स्रष्टा) के योग्य कैसे हो सकता हैॽ अल्लाह इससे सर्वोच्च और पवित्र है।

अल्लाह सर्वशक्तिमान अपने बंदों को यातना देना पसंद नहीं करता है, बल्कि वह उनपर दया और उनके मार्गदर्शन को पसंद करता है और वह उनपर स्वयं उनसे और उनकी माताओं से अधिक दयालु है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

مَا يَفْعَلُ اللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِنْ شَكَرْتُمْ وَآمَنْتُمْ وَكَانَ اللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمًا   

[النساء: 147].

“अगर तुम (अल्लाह के प्रति) कृतज्ञ रहो और (उसपर) ईमान ले आओ, तो अल्लाह तुम्हें सज़ा देकर क्या करेगाॽ और अल्लाह गुणग्राही, सब कुछ जानने वाला है।” (सूरतुन-निसा : 147)

अल्लामा अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“फिर अल्लाह तआला ने अपनी निस्पृहता (बेनियाज़ी) की पूर्णता, तथा अपनी सहिष्णुता, दया और उपकार की विशालता के बारे में बताते हुए फरमाया :  مَا يَفْعَلُ اللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِنْ شَكَرْتُمْ وَآمَنْتُمْ  “अगर तुम कृतज्ञ रहो और ईमान ले आओ, तो अल्लाह तुम्हें सज़ा देकर क्या करेगाॽ” जबकि स्थिति यह है कि अल्लाह गुणग्राही और सब कुछ जानने वाला है। वह उन लोगों को, जो उसकी ख़ातिर भारी बोझ उठाने वाले और नेक कार्यों में कठिन परिश्रम करने वालो हैं, भरपूर प्रतिफल और व्यापक उपकार प्रदान करने वाला है। और जो कोई अल्लाह की ख़ातिर कुछ छोड़ देता है, अल्लाह उसे उससे बेहतर चीज़ प्रदान करता है।

इसके साथ-साथ, वह तुम्हारे प्रोक्ष व प्रत्यक्ष और तुम्हारे कार्यों को जानता है, तथा वह यह भी जानता है कि उसमें कौन-सा काम इख़्लास (निष्ठा) और ईमानदारी व सच्चाई पर आधारित है और कौन उसके विपरीत है। वह चाहता है कि तुम उसके समक्ष तौबा व पश्चाताप करो और उसकी ओर पलट आओ। यदि तुम उसकी ओर पलट आए, तो वह तुम्हें दंडित करके क्या करेगाॽ उसे तुम्हें दंड देने में कोई आनंद नहीं मिलता और न ही वह तुम्हें दंड देने से कोई लाभ उठाता है। बल्कि, अवज्ञाकारी केवल खुद को नुक़सान पहुँचाता है, जिस तरह कि आज्ञाकारी का कार्य खुद उसी के फायदे के लिए है।

तफ़सीर अस-सा’दी (211) से उद्धरण समाप्त हुआ है।

अल्लामा ताहिर इब्ने आशूर रहिमहुल्लाह ने कहा :

“इस (आयत) में संबोधन पूरी उम्मत के लिए अभिप्रेत हो सकता है, और यह भी तात्पर्य हो सकता है कि इसमें मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) को संबोधित किया गया है। और यह उनके साथ दयालुता के तौर पर, अन्य पुरुष से मध्यम पुरुष की ओर मुड़ने के तरीक़े पर है (अर्थात् पहले मुनाफ़िक़ों के बारे में अन्य पुरुष के रूप में बात की गई है, फिर सीधे तौर पर उन्हें संबोधित किया है)।

अल्लाह के फरमान :  مَا يَفْعَلُ اللَّهُ بِعَذَابِكُمْ  “अल्लाह तुम्हें सज़ा देकर क्या करेगाॽ” में प्रश्न से अभिप्राय : इनकार में उत्तर देना है, इसलिए यह प्रश्न इनकार के लिए है; अर्थात् : अल्लाह तुम्हें सज़ा देकर कुछ नहीं करेगा (अल्लाह को तुम्हें सज़ा देने की ज़रूरत नहीं है), दूसरे शब्दों में : अल्लाह तुम्हें सज़ा नहीं देगा।

आयत का मतलब यह है कि : मुनाफ़िक़ों को जिस सज़ा की चेतावनी दी गई है, वह केवल कुफ़्र और निफ़ाक़ (पाखंड) पर है। इसलिए अगर वे पश्चाताप कर लें, अपने आपको सुधार लें और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लें, तो वह उनके लिए सज़ा को माफ़ कर देगा। इसलिए उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि अल्लाह उन्हें दंडित करेगा, क्योंकि वह उनसे व्यक्तिगत रूप से नफ़रत करता है, या इसलिए कि वह उन्हें दंडित करने में खुशी पाता है। बल्कि यह बुराई का प्रतिफल है, क्योंकि बुद्धिमान चीजों को उनके स्थानों पर रखता है। इसलिए वह अच्छाई करने का अच्छा बदला और बुराई करने पर बुरा बदला देता है। अगर बुराई करने वाला अपने बुरे कामों को छोड़ देता है, तो अल्लाह उसके बुरे कामों की सज़ा को निरस्त कर देता है; क्योंकि उसे यातना या प्रतिफल से कोई लाभ नहीं होता। लेकिन यह ईशवरीय व्यवस्था है कि परिणाम, कारणों के अनुसार सामने आते हैं। यदि ईमान वाले लोग अपने ईमान पर और अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दिखाने पर जमे रहते हैं, तथा वे पाखंडियों और काफ़िरों को सहयोगी और मित्र बनाने से बचते हैं, तो अल्लाह उन्हें सज़ा नहीं देगा, क्योंकि उन्हें दंडित करने का कोई कारण नहीं है।”

“अत्-तह़रीर वत्-तनवीर” (5/245) से उद्धरण समाप्त हुआ।

उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास कुछ क़ैदियों को लाया गया। क़ैदियों में एक महिला थी जो किसी को खोज रही थी। जब उसे क़ैदियों के बीच एक छोटा लड़का मिला, तो उसने उसे उठाकर अपने पेट से लगा लिया और उसे स्तनपान कराने लगी। इसपर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमसे कहा : “क्या तुम्हें लगता है कि यह महिला अपने बच्चे को आग में फेंक देगीॽ” हमने कहा : नहीं, अल्लाह की क़सम, वह कभी ऐसा नहीं करेगी, यदि वह उसे न फेंकने में सक्षम है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह अपने बंदों के प्रति इससे कहीं अधिक दयालु है जितना कि यह महिला अपने बच्चे के प्रति है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5999) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2754) ने रिवायत किया है।

तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब अल्लाह ने मख़लूक़ की रचना का निर्णय लिया, तो उसने अपने पास अपने अर्श (सिंहासन) के ऊपर लिखा :  “मेरी दया, मेरे क्रोध से बढ़कर और आगे है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 7453) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2751) ने रिवायत किया है।

तथा सलमान रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस दिन अल्लाह ने आकाश और पृथ्वी का निर्माण किया, उसने एक सौ दया पैदा की, जिनमें से प्रत्येक दया आकाश और पृथ्वी के बीच की दूरी के समान विस्तृत है। उसने उनमें से एक दया पृथ्वी पर डाल दी। चुनाँचे उसी (एक दया) के कारण माँ अपने बच्चे पर करुणा करती है और पशु तथा पक्षी एक दूसरे के प्रति दया दिखाते हैं। फिर जब क़ियामत का दिन होगा, तो अल्लाह तआला उस (दया की संख्या) को इस (एक) दया के साथ पूरा करे देगा।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2753) ने रिवायत किया है।

अल्लाह तआला अपनी परिपूर्ण दया व करुणा, तथा अपने बंदों पर उपकार करने और उनके प्रति दया व करुणा दिखाने के बावजूद, वह महिमावान् हिकमत वाला, सब कुछ जानने वाला, सृष्टिकर्ता और हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है, वह इस बात को पसंद नहीं करता कि उसकी अवज्ञा कि जाए या उसका इनकार किया जाए, या उसके नबियों (पैगंबरों) को झुठलाया जाए, या उसके बंदों पर अत्याचार किया जाए। इसीलिए उसने ऐसे व्यक्ति को सख़्त दर्दनाक यातना की चेतावनी दी है, जिसने उसके साथ कुफ़्र किया, उसके खिलाफ विद्रोह (सरकशी) किया, उसके रसूलों को झुठलाया और उसके बंदों पर अत्याचार किया।

यह उसके परिपूर्ण न्याय और शक्ति का प्रतीक है, जैसा कि उसने फरमाया है :

نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (49) وَأَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الْأَلِيمُ    

[الحجر: 49، 50] .

“(ऐ नबी,) मेरे बंदों को सूचित कर दें कि मैं अत्यंत क्षमाशील, दयावान् हूँ और यह कि मेरी यातना भी बहुत दर्दनाक यातना है।” (सूरतुल हिज्र : 49-50)

बल्कि, वास्तव में जो लोगों को प्रताड़ित करना और यातना देना पसंद करता है, वह निम्न प्रकार की प्रवृत्ति वाला होगा :

1- जो अपने बंदों को दंडित करता है, भले ही वे आज्ञाकारी और उसके आदेशों का पालन करने वाले हों। लेकिन अल्लाह अपने बारे में फरमाता है :

إِنَّ اللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وَإِنْ تَكُ حَسَنَةً يُضَاعِفْهَا وَيُؤْتِ مِنْ لَدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا 

[النساء: 40]

“निःसंदेह अल्लाह ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता और यदि कोई नेकी हो, तो वह उसे कई गुना बढ़ा देगा और अपनी ओर से महान प्रतिफल प्रदान करेगा।” (सूरतुन-निसा : 40)

2- जो मोहलत (अवकाश) नहीं देता, उज़्र (बहाना) स्वीकार नहीं करता और अपने बंदों को तौबा करने का अवसर नहीं देता है। लेकिन अल्लाह दानशील और सहिष्णु है, अपने बंदों को मोहलत देता है, उनके उज़्र को स्वीकार करता है, उन्हें याद दिलाने के लिए उनकी ओर रसूलों को भेजता है और इस दुनिया में उनका ऐसी चीज़ के द्वारा परीक्षण करता है, जो उन्हें डराती है और उन्हें अल्लाह के क़रीब लाती है।

3- जिसके यहाँ यातना व प्रताड़ना का बाहुल्य है और दया के दृश्यों की कमी है। लेकिन अल्लाह तआला तो दया दिखाने वालों में सबसे अधिक दयालु है और उसकी दया उसके क्रोध से बढ़कर और आगे है।

ज़रा सोचिए.. आज अरबों लोग ऐसे हैं जो अल्लाह को गाली देते हैं और उसकी ओर संतान की निस्बत करते हैं, या उसका इनकार करते हैं, या उसके अलावा दूसरों की पूजा करते हैं, फिर भी : वह उन्हें जीविका देता है, उनके शरीर को स्वस्थ रखता है और उन्हें अनगिनत नेमतें प्रदान करता है। वह उन्हें सज़ा देने में जल्दी नहीं करता है और उनमें से जो तौबा करता है, उसकी तौबा को स्वीकार करता है, भले ही वह जीवन भर कुफ़्र और सरकशी में जिया हो। वह उस तौबा पर खुश होता है और तौबा करने वाले को सम्मानित करता है और उसके पिछले बुरे कर्मों (पापों) को नेकियों में बदल देता है!

तो इससे बढ़कर कौन-सी दया, सहनशीलता और उदारता हो सकती है?!

बुख़ारी (हदीस संख्या : 6099) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2804) ने अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “कोई भी किसी कष्ट को सुनकर उसपर अल्लाह सर्वशक्तिमान से अधिक सहन करने वाला नहीं है। उसके साथ दूसरों को साझी ठहराया जाता है, उसके लिए बेटा (संतान) ठहराया जाता है, लेकिन फिर भी वह उन्हें स्वास्थ्य देता और जीविका प्रदान करता है।”

सारांश यह कि : इस बात को कहने वाला (इस दृष्टिकोण का व्यक्ति) अल्लाह को बिल्कुल जानता ही नहीं है! और वह नहीं जानता कि वह अल्लाह ही है जो जीविका प्रदान करता है और अनुदान देता है और यह कि वह सब कुछ जो किसी व्यक्ति के पास : धन, स्वास्थ्य, सौभाग्य, बुद्धि, सोचने की क्षमता, दूसरों के प्रति दया और अच्छे काम करने का सामर्थ्य, यह सब अल्लाह की ओर से है। और अगर वह उस पर विश्वास करे, तो उसे अवश्य पता चलेगा कि अल्लाह सबसे अधिक दया दिखाने वालों में सबसे अधिक दया करने वाला और सबसे अधिक उदारता दिखाने वालों में सबसे अधिक उदार है।

इसलिए इन लोगों का इलाज - अगर वे वास्तव में भलाई चाहते हैं – यह है कि वे अल्लाह के बारे में जानें और उसकी दया के आसार से अवगत हों। यह उनके लिए उन इनकार करने वाले लोगों के शब्दों को दोहराने से बेहतर है, जिनके बारे में अल्लाह ने फरमाया है :

يَعْرِفُونَ نِعْمَتَ اللَّهِ ثُمَّ يُنْكِرُونَهَا وَأَكْثَرُهُمُ الْكَافِرُونَ   

[النحل: 83]

“वे अल्लाह के अनुग्रह को पहचानते हैं, फिर भी वे उसका इनकार करते हैं और उनमें से अधिकांश काफ़िर हैं।” (सूरतुन-नह्ल : 83)।

दूसरी बात :

जो व्यक्ति स्वयं के प्रति शुभचिंतक, अपने धर्म के लिए उत्सुक और उसके बारे में चिंतित है : उसे इनकार करने वालों और संदेह पैदा करने वालों के संदेहों को नहीं सुनना चाहिए। क्योंकि यह हृदय को बीमार कर सकता है और दिल में कुछ संदेह और शंका डाल सकता है।

संदेहों पर केवल उन्हीं लोगों को विचार करना चाहिए, जो ज्ञान में दृढ़ और परिपक्व है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَإِذَا جَاءَهُمْ أَمْرٌ مِنَ الْأَمْنِ أَوِ الْخَوْفِ أَذَاعُوا بِهِ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى الرَّسُولِ وَإِلَى أُولِي الْأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِينَ يَسْتَنْبِطُونَهُ مِنْهُمْ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لَاتَّبَعْتُمُ الشَّيْطَانَ إِلَّا قَلِيلًا

[النساء: 83].

“और जब उनके पास सुरक्षा या भय से संबंधित कोई बात पहुँचती है, तो वे उसे चारों ओर फैला देते हैं। हालाँकि अगर वे उसे रसूल की ओर और अपने बीच के प्राधिकारी लोगों (विद्वानों व शास्त्रियों) की ओर लौटा देते, तो उसे वे लोग जान लेते जो उनमें उससे सही निष्कर्ष निकाल सकते हैं। और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे चलने लग जाते।” (सूरतुन्-निसा : 83)।

हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमें और आपको प्रोक्ष एवं प्रत्यक्ष फ़ित्नों (प्रलोभन) से बचाए।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर