सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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शरई और ग़ैर-शरई तवस्सुल

प्रश्न

मैं तवस्सुल के बारे में पूछना चाहता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि जो कोई क़ब्रों से तवस्सुल माँगता है या किसी मृत व्यक्ति से सवाल करता है, यह अल्लाह के अलावा किसी और से दुआ करना है और यह सही नहीं है। परंतु एक व्यक्ति कहता है : यदि मैं किसी नेक आदमी से उसके जीवनकाल में दुआ करने के लिए कहता हूँ, तो इसमें क्या ग़लत है? तथा उसकी मृत्यु होने के बाद उससे दुआ करने के लिए अनुरोध करने में क्या ग़लत हैॽ मैं इस भाई को कैसे उत्तर दूँॽ किस प्रकार के तवस्सुल की अनुमति है और कौन-सा तवस्सुल नाजायज़ हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अरबी भाषा में तवस्सुल का अर्थ है निकट आना। इसी से सर्वशक्तिमान अल्लाह का यह कथन है :  يبتغون إلى ربهم الوسيلة  “वे अपने पालनहार तक पहुँचने का साधन खोजते हैं।” [सूरतुल-इसरा : 57] अर्थात् : ऐसी चीज़ जो उन्हें उसके क़रीब कर दे।

तवस्सुल के दो प्रकार हैं : धर्मसंगत (शरई) तवस्सुल और निषिद्ध तवस्सुल :

धर्मसंगत तवस्सुल :

इसका अर्थ है इबादत के ऐसे अनिवार्य या वांछनीय कार्यों के माध्यम से अल्लाह के करीब आना जिन्हें वह पसंद करता और उनसे प्रसन्न होता है, चाहें वे कथन हों, या कार्य हों या आस्थाएँ हों। इसके कई प्रकार हैं :

पहला : अल्लाह के नामों और उसके गुणों के द्वारा उसके निकट आना। अल्लाह तआला का फरमान है :  ولله الأسماء الحسنى فادعوه بها وذروا الذين يلحدون في أسمائه سيجزون ما كانوا يعملون  "और सबसे अच्छे नाम अल्लाह ही के हैं। अतः उसे उन्हीं के द्वारा पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो, जो उसके नामों के बारे में सीधे रास्ते से हटते हैं। उन्हें शीघ्र ही उसका बदला दिया जाएगा, जो वे किया करते थे।” [सूरतुल-अराफ : 180]

इसलिए बंदा अल्लाह से दुआ करने के समक्ष अल्लाह का ऐसा नाम प्रस्तुत करे जो उसके उद्देश्य के सबसे उपयुक्त हो, जैसे दया माँगते समय ''अर-रहमान'' (अत्यंत दयावान) और क्षमा माँगते समय ''अल-ग़फूर'' (अत्यंत क्षमावान), इत्यादि को प्रस्तुत करे।

दूसरा : ईमान और तौहीद (विश्वास एवं एकेश्वरवाद) के द्वारा सर्वशक्तिमान अल्लाह के निकट आना। अल्लाह तआला का फरमान है :  ربنا آمنا بما أنزلت واتبعنا الرسول فاكتبنا مع الشاهدين  “ऐ हमारे पालनहार! हम उसपर ईमान लाए, जो तूने उतारा और हमने रसूल का अनुसरण किया, अतः तू हमें गवाही देने वालों के साथ लिख ले।'' [सूरत आल-इमरान : 53]

तीसरा : अच्छे कर्मों का वसीला पकड़ना, इस प्रकार कि बंदा अपने रब से ऐसे कार्य के माध्यम से प्रश्न करे जो उसके निकट सबसे शुद्ध और सबसे अधिक आशा वाला हो, जैसे कि नमाज़, रोज़ा, क़ुरआन का पाठ, हराम (निषिद्ध) से दूर रहना, इत्यादि। इसका एक उदाहरण वह हदीस है जिसके सहीह होने पर बुखारी एवं मुस्लिम सहमत हैं, जो उन तीन लोगों की कहानी के बारे में है, जो एक गुफा में प्रवेश कर गए थे और एक चट्टान उनके ऊपर बंद हो गई थी (और उनका बाहर निकलने का रास्ता अवरुद्ध हो गया था)। इसलिए उन्होंने अपने सर्वोत्तम कार्यों के माध्यम से अल्लाह से विनती की।

इसी अध्याय से यह भी है कि बंदा अल्लाह के समक्ष अपनी लाचारी को प्रकट करके विनती करे, जैसा कि अल्लाह ने क़ुरआन में अपने नबी अय्यूब के बारे में उल्लेख किया है :  أني مسني الضر وأنت أرحم الراحمين  "निःसंदेह मुझे कष्ट पहुँची है और तू दया करने वालों में सबसे अधिक दयावान् है।" [सूरतुल-अंबिया : 83], या बंदा स्वयं पर अपने अत्याचार और अल्लाह के लिए अपनी आवश्यकता को प्रस्तुत करके अल्लाह से प्रार्थना करे, जैसा कि अल्लाह तआला ने यूनुस अलैहिस्सलाम के बारे में फरमाया है :  لا إله إلا أنت سبحانك إني كنت من الظالمين  " (ऐ अल्लाह!) तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तू पवित्र है। निश्चय मैं ही अत्याचारियों में हो गया।" [सूरतुल-अंबिया : 87]

इस जायज़ तवस्सुल का हुक्म उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग होता है। कुछ प्रकार का तवस्सुल वाजिब है, जैसे कि अल्लाह के नामों और गुणों तथा तौहीद (एकेश्वरवाद) का तवस्सुल। जबकि कुछ तवस्सुल मुस्तहब है, जैसै कि शेष सभी प्रकार के नेक कामों का तवस्सुल।

जहाँ तक निषिद्ध विधर्मी तवस्सुल का प्रश्न है :

तो वह ऐसे कथनों, कार्यों और आस्थाओं के द्वारा सर्वशक्तिमान अल्लाह की निकटता प्राप्त करना है जिन्हें वह पसंद नहीं करता और उनसे खुश नहीं होता। इसका एक उदाहरण मृतकों या अनुपस्थित लोगों को पुकारकर और उनसे मदद मांगकर अल्लाह की निकटता चाहना, इत्यादि। यह एक प्रमुख शिर्क है, जो धर्म से बाहर निकालने वाला है और तौहीद (एकेश्वरवाद) के विपरीत है।  

अतः अल्लाह से दुआ करना, चाहे वह कोई चीज़ माँगने के लिए दुआ हो जैसे कि लाभ की माँग करना या हानि को दूर करने के लिए कहना, या इबादत के तौर पर दुआ हो जैसे कि अल्लाह के सामने विनम्रता और समर्पण व्यक्त करना, तो उसके साथ अल्लाह के अलावा किसी अन्य की ओर मुतवज्जेह होना जायज़ नहीं है, और उसे अल्लाह के अलावा किसी अन्य के लिए करना दुआ के अंदर शिर्क है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :  وقال ربكم ادعوني استجب لكم إن الذين يستكبرون عن عبادتي سيدخلون جهنم داخرين  "तथा तुम्हारे पालनहार ने कहा है : तुम मुझे पुकारो। मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करूँगा। निःसंदेह जो लोग मेरी इबादत से अहंकार करते हैं, वे शीघ्र ही अपमानित होकर जहन्नम में प्रवेश करेंगे।” [ग़ाफ़िर : 60]

इस आयत में, अल्लाह ने उस आदमी की सज़ा का वर्णन किया है जो अल्लाह से दुआ करने से अहंकार करता है; या तो वह अल्लाह के अलावा किसी और को पुकारता है या अहंकार के कारण उससे दुआ करना पूरी तरह से त्याग देता है, भले ही वह किसी और को न पुकारे।

तथा अल्लाह ने फरमाया :  ادعوا ربكم تضرعاً وخفية  “तुम अपने पालनहार को गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके पुकारो।" [सूरतुल-आराफ़ : 55]। अतः अल्लाह ने अपने बंदों को आदेश दिया है कि वे उसे ही पुकारें, किसी और को नहीं। अल्लाह नर्क के लोगों के बारे में फरमाता है :  تَاللَّهِ إِنْ كُنَّا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (97) إِذْ نُسَوِّيكُمْ بِرَبِّ الْعَالَمِينَ  "(वे उसमें आपस में झगड़ते हुए कहेंगे :) अल्लाह की क़सम! निःसंदेह हम निश्चय खुली गुमराही में थे। जब हम तुम्हें सारे संसारों के पालनहार के बराबर ठहराते थे।” [सूरतुश-शुअरा : 97-98]

अतः जो भी चीज़ इबादत और आज्ञाकारिता के कार्यों में अल्लाह के अलावा किसी और को अल्लाह के बराबर बनाने की अपेक्षा करती है, वह अल्लाह के साथ शिर्क है। तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :  ومن أضل ممن يدعوا من دون الله من لا يستجيب له إلى يوم القيامة وهم عن دعائهم غافلون وإذا حشر الناس كانوا لهم أعداء وكانوا بعبادتهم كافرين  " तथा उससे बढ़कर पथभ्रष्ट कौन है, जो अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारता है, जो क़ियामत के दिन तक उसकी दुआ क़बूल नहीं करेंगे, और वे उनके पुकारने से बेखबर हैं? तथा जब लोग एकत्र किए जाएँगे, तो वे उनके शत्रु होंगे और उनकी इबादत का इनकार करने वाले होंगे।" [सूरतुल-अहक़ाफ़ : 5-6]

तथा अल्लाह ने फरमाया :  ومن يدع مع الله إلهاً آخر لا برهان له به فإنما حسابه عند ربه إنه لا يفلح الكافرون  “और जो (भी) अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को पुकारे, जिसका उसके पास कोई प्रमाण नहीं, तो उसका हिसाब केवल उसके पालनहार के पास है। निःसंदेह काफ़िर लोग सफल नहीं होंगे।” [सूरतुल-मूमिनुन : 117]।

अल्लाह ने अपने साथ किसी और को पुकारने वाले को अपने अलावा किसी और को पूज्य बनाने वाला कहा है। तथा अल्लाह ने फरमाया :  وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِنْ قِطْمِيرٍ (13) إِنْ تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ  "तथा जिन्हें तुम उसके सिवा पुकारते हो, वे खजूर की गुठली के छिलके के भी मालिक नहीं हैं। यदि तुम उन्हें पुकारो, तो वे तुम्हारी पुकार नहीं सुन सकते। और यदि सुन भी लें, तो तुम्हें उत्तर नहीं दे सकते। और वे क़ियामत के दिन तुम्हारे शिर्क का इनकार कर देंगे। और (ऐ रसूल!) आपको एक सर्वज्ञाता (अल्लाह) की तरह कोई सूचना नहीं देगा।" [सूरत फ़ातिर : 13-14]।

इस आयत में, अल्लाह तआला ने स्पष्ट किया है कि वही (एकमात्र) दुआ के योग्य है, क्योंकि वही मालिक और तसर्रुफ करने वाला है, कोई और नहीं। तथा यह कि जिन चीज़ों की पूजा की जाती है, वे दुआएँ नहीं सुन सकतीं, उनका पुकारने वाले को जवाब देना तो दूर की बात है। और अगर मान लिया जाए कि वे सुन भी लें, तो वे जवाब नहीं दे सकतीं, क्योंकि उनके पास लाभ या हानि पहुँचाने की कोई शक्ति नहीं है, और न ही वे ऐसा कुछ करने में सक्षम हैं।

अरब के मुशरिकीन (बहुदेववादी), जिन्हें अल्लाह की ओर बुलाने के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा गया था, वे दुआ में इसी शिर्क के कारण काफिर घोषित हुए। क्योंकि वे संकट और कठिनाई के समय धर्म के प्रति निष्ठावान होकर केवल अल्लाह को पुकारते थे, फिर समृद्धि और नेमत के समय अल्लाह के साथ किसी और को पुकारकर उसके साथ कुफ़्र करते थे। अल्लाह तआला ने फरमाया :  فإذا ركبوا في الفلك دعوا الله مخلصين له الدين فلما نجاهم إلى البر إذا هم يشركون  "फिर जब वे नाव पर सवार होते हैं, तो अल्लाह को, उसके लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए, पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें बचाकर थल तक ले आता है, तो शिर्क करने लगते हैं।" [सूरतुल-अंकबूत : 65]

तथा अल्लाह ने फरमाया :  وإذا مسكم الضر في البحر ضل من تدعون إلا إياه فلما نجاكم إلى البر أعرضتم  “और जब समुद्र में तुमपर कोई आपदा आती है, तो अल्लाह के सिवा तुम जिन्हें पुकारते हो, गुम हो जाते हैं, फिर जब वह (अल्लाह) तुम्हें बचाकर थल तक पहुँचा देता है, तो तुम (उससे) मुँह फेर लेते हो।” [सूरतुल-इसरा : 67]

तथा अल्लाह ने फरमाय :  حتى إذا كنتم في الفلك وجرين بهم بريح طيبة وفرحوا بها جاءتهم ريح عاصف وجاءهم الموت من كل مكان وظنوا أنهم أحيط بهم دعوا الله مخلصين له الدين  “यहाँ तक कि जब तुम नावों में होते हो और वे उन्हें लेकर अच्छी (अनुकूल) हवा के सहारे चल पड़ती हैं और वे उससे प्रसन्न हो उठते हैं, कि अचानक एक तेज़ हवा उन (नावों) पर आती है और उनपर प्रत्येक स्थान से लहरें आ जाती हैं और वे समझते हैं कि निःसंदेह उन्हें घेर लिया गया है, तो वे अल्लाह को इस तरह पुकारते हैं कि उसके लिए हर इबादत को विशुद्ध करने वाले होते हैं।” [सूरत यूनुस : 22]

आजकल कुछ लोगों का शिर्क अतीत के लोगों के शिर्क से भी आगे बढ़ गया है, क्योंकि वे इबादत के कुछ कार्यों, जैसे दुआ और फर्याद को संकट के समय में भी अल्लाह के अलावा किसी और के लिए करते हैं। वला हौला व-ला कुव्वता इल्ला बिल्लाह (अल्लाह की तौफीक़ के बिना न लाभ अर्जित करने की ताक़त है और न हानि से बचने की शक्ति)। हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हमें सुरक्षित और स्वस्थ रखे।

आपके मित्र ने जो उल्लेख किया है उसके उत्तर का सारांश यह है कि : मृत व्यक्ति से कुछ भी माँगना शिर्क है, और जीवित व्यक्ति से कोई ऐसी चीज़ माँगना जिसपर केवल अल्लाह ही शक्ति रखता है, वह भी शिर्क है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद