गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
हिन्दी

बैंक के माध्यम से ऋण प्राप्त करने या संपत्ति खरीदने के लिए ब्रोकरेज कंपनी को राशि का भुगतान करने का क्या नियम है?

333357

प्रकाशन की तिथि : 26-12-2021

दृश्य : 1648

प्रश्न

क्या किसी ब्रोकरेज कंपनी को एक इस्लामिक बैंक के माध्यम से ऋण प्राप्त करने या अचल संपत्ति खरीदने के लिए राशि का भुगतान करना जायज़ है, यह जानते हुए कि ब्रोकरेज कंपनी जो राशि लेगी वह उस ऋण या अचल संपत्ति के मूल्य का एक निर्धारित प्रतिशत है, जिसके लिए उसने मध्यस्थता की है ताकि मैं उसे प्राप्त कर सकूँ। अल्लाह आपको अच्छा प्रतिफल प्रदान करे।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

प्रथम :

ऋण प्राप्त करने के लिए मध्यस्थता

अच्छा ऋण (क़र्ज़-ए-हसन) प्राप्त करने, या बैंक के माध्यम से अचल संपत्ति खरीदने में मध्यस्थता करना जायज़ है, अगर खरीद शरई नियमों द्वारा नियंत्रित है।

ब्याज-आधारित ऋण को प्राप्त करने, या निषिद्ध तरीक़े से अचल संपत्ति खरीदने में मध्यस्थता करना जायज़ नहीं है; क्योंकि इसमें पाप पर सहायता करना पाया जाता है।

दूसरा :

ऋण में ब्रोकरेज (मध्यस्थता) के प्रकार

ऋण या अचल संपत्ति की खरीद में ब्रोकरेज कंपनी का हस्तक्षेप, केवल ऋणदाता और विक्रेता की तरफ़ रहनुमाई हो सकती है, तथा अपनी प्रतिष्ठा और सिफ़ारिश के साथ मध्यस्थता हो सकती है और इसी तरह यह उधारकर्ता (क़र्ज़ लेने वाले) और खरीदार की गारंटी के बदले में भी हो सकता है। ये उसकी तीन स्थितियाँ हैं :

1- यदि उसकी भूमिका केवल रहनुमाई है, तो यह एक अनुमेय दलाली है और राजेह (प्रबल) कथन के अनुसार, इसमें कमीशन एकमुश्त राशि, या ऋण का या संपत्ति की क़ीमत का कुछ प्रतिशत हो सकता है।

2- यदि वह अपनी प्रतिष्ठा और सिफ़ारिश के साथ मध्यस्थता करती है, तो उसके प्रतिष्ठा के बदले में कमीशन लेने के बारे में मतभेद है, और राजेह (प्रबल) कथन उसकी अनुमेयता है। और यही शाफेइय्या, हनाबिला और कुछ मालिकिय्या का मत है।

(शाफ़ेई मत की पुस्तक) ‘मुग़नी अल-मुहताज’ (3/35) में आया है : “अल-मावर्दी ने कहा : यदि वह किसी और से कहे : मेरे लिए सौ उधार लो, और तुम्हारे लिए मुझ पर दस है : तो यह मेहनताना (पारिश्रमिक) है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

(हंबली मत की पुस्तक) “अर-रौज़ुल मुरबे” में ऋण के अध्याय में कहा : यदि वह कहता है : मेरे लिए एक सौ उधार लो, और तुम्हारे लिए दस है, तो यह सही (मान्य) है, क्योंकि यह उसके बदले में है जो उसने अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा (हंबली मत की पुस्तक) "अल-इनसाफ़" (5/134) में कहा : “यदि वह उसके अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर उसके लिए क़र्ज लेने पर पारिश्रमिक निर्धारित कर दे : तो ऐसा करना सही है। क्योंकि यह उसके बदले में है जो उसने केवल अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

3- अगर कंपनी उधारकर्ता या खरीदार को गारंटी देगी, तो उसके लिए गारंटी के बदले में कमीशन लेना जायज़ नहीं है; क्योंकि गारंटी एक दान अनुबंध है, जिसपर मुआवज़ा लेना जायज़ नहीं है।

इब्नुल-मुंज़िर रहिमहुल्लाह ने कहा : “जिन विद्वानों से हम (ज्ञान को) याद रखते हैं, वे सर्वसम्मति से सहमत हैं कि एक कमीशन (पारिश्रमिक) के साथ गारंटी देना, जिसे गारंटी देने वाला लेता है, हलाल और जायज़ नहीं है।” “अल-इशराफ अला मज़ाहिबि अह्लिल-इल्म” (6/230) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने जरीर अत-तबरी ने ”इख़्तिलाफ़ुल-फुक़हा” (पृष्ठ : 9) में कहा : “यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति की कुछ धन राशि के साथ गारंटी लेता है जो उसके ऊपर किसी दूसरे व्यक्ति का अनिवार्य है, इस आधार पर कि गारंटीकृत व्यक्ति उसके लिए कुछ पारिश्रमिक निर्धारित करता है, तो इस आधार पर गारंटी लेना अमान्य है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा ‘अल-मआईर अश-शरइय्यह’, पृष्ठ २५१ में आया है : ”चारों मतों के विद्वानों ने गारंटी पर मुआवज़ा लेने के निषेध पर सहमति व्यक्त की है, और इस संबंध में इस्लामिक फ़िक़्ह काउंसिल का एक निर्णय जारी हुआ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है। 

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर