हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
جدول المحتويات
मोक्ष का अर्थ :
ईसाइयों के निकट मोक्ष का सिद्धांत और इस सिद्धांत का मूल आधार, जो कि उनका यह कहना है कि ईसा मसीह अलैहिस्सलाम को सूली पर चढ़ाया गया था, ईसाइयों के मौलिक सिद्धांतों (मान्यताओं) में से एक है; यहाँ तक कि यदि यह मान्यता सत्य न हो तो वे पूरे धर्म को दांव पर लगा देंगे। अंग्रेज ‘कार्डिनल मैनिंग’ अपनी पुस्तक “द इटरनल प्रीस्टहुड” (शाश्वत पुरोहिताई) में कहता है : "इस भ्रम पैदा करने वाले शोध का महत्व छिपा नहीं है, क्योंकि यदि सूली पर चढ़ाए जाने से ईसा मसीह की मृत्यु वास्तविक नहीं है, तो ऐसी स्थिति में चर्च के सिद्धांत की इमारत नींव से ढह जाएगी, क्योंकि यदि ईसा मसीह की मृत्यु सूली पर नहीं हुई, तो फिर न बलिदान होगा, न मोक्ष होगा, और न त्रिमूर्ति होगी... अतः पॉल, हवारी गण और सभी चर्च सब इसका दावा करते हैं, जिसका अर्थ यह है कि यदि ईसा मसीह नहीं मरे, तो कोई पुनरुत्थान भी नहीं होगा।)
यह वही है जो पॉल (पौलुस) कहता है : "और यदि मसीह भी नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है।" (1कुरिन्थियों 15:14)
जिस तरह वे अपने त्रिमूर्ति के कथन के बारे में उलझाव में हैं, और इसका अर्थ क्या है, और वे इसे पुराने नियम में स्थापित एकेश्वरवाद के साथ कैसे जोड़ते हैं, प्रश्न संख्या : [12628] देखें, और जैसे वे सूली पर चढ़ने से संबंधित सभी विवरणों के बारे में उलझाव के शिकार हैं, जो मोक्ष के बारे में उनके कथन का आधार है, जिसे वे इस सूली पर चढ़ने का कारण मानते हैं, प्रश्न संख्या : [12615] भी देखें, हम कहते हैं : जिस तरह से यह उलझाव हर उस व्यक्ति के लिए अपरिहार्य होता है जो अल्लाह के पास से उतारी गई वह़्य के प्रकाश से भटक जाता है, उसी तरह वे मोक्ष के सिद्धांत के बारे में उलझाव के शिकार हैं।
क्या बलिदान पूरी मानवजाति को बचाने के लिए है?
क्या बलिदान पूरी मानवजाति को बचाने के लिए है, जैसा कि यूहन्ना कहता है : “(पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात) धार्मिक यीशु मसीह। और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी।” [1 यूहन्ना 2:2], या यह उन लोगों के लिए विशिष्ट है जो विश्वास करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं : “जो विश्वास करता है और बपतिस्मा लेता है वह बच जाएगा, लेकिन जो विश्वास नहीं करता है वह दोषी ठहराया जाएगा [मरकुस 16:16]।
जो व्यक्ति मसीह के जीवन और कथनों पर विचार करता है, वह स्पष्ट रूप से देखेगा कि मसीह का आह्वान इस्राइल के बच्चों के लिए था, और अपने आह्वान के वर्षों के दौरान उसने अपने शिष्यों को दूसरों को बुलाने से मना किया था। इसलिए, उद्धार भी उनके लिए विशिष्ट होना चाहिए, इस तथ्य को हम कनानी महिला की कहानी में देखते हैं जिसने मसीह से कहा : “हे प्रभु दाऊद के संतान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है। पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उससे बिनती कर कहा ; इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है। उसने उत्तर दिया, कि इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया। पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी; हे प्रभु, मेरी सहायता कर। उसने उत्तर दिया, कि लड़कों की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” [मत्ती 15:22-26] मसीह ने कनानी स्त्री की बेटी को ठीक नहीं किया, हालाँकि वह ऐसा करने में सक्षम थे, तो वह पूरी मानवजाति को कैसे छुड़ा सकते थे?
क्या यह उद्धार केवल आदम के पहले पाप से ही था?
क्या यह उद्धार और प्रायश्चित केवल आदम के प्रथम पाप से है, या यह हमारे सभी पापों के लिए सामान्य है?
कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के पाप को नहीं उठा सकता, न ही वह उसे छुड़ाने के लिए खुद को बलिदान कर सकता है, जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने अपनी पवित्र पुस्तक में फरमाया है :
وَلا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَإِنْ تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَى حِمْلِهَا لا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى إِنَّمَا تُنْذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلاةَ وَمَنْ تَزَكَّى فَإِنَّمَا يَتَزَكَّى لِنَفْسِهِ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ
سورة فاطر: 18
“और कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और अगर कोई बोझ से दबा हुआ व्यक्ति (किसी को) बोझ उठाने के लिए पुकारेगा, तो उसका तनिक भी बोझ नहीं उठाया जाएगा, यद्यपि वह निकट का संबंधी ही क्यों न हो। आप तो केवल उन्हीं लोगों को सचेत करते हैं, जो अपने पालनहार से बिन देखे डरते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। तथा जो पवित्र हुआ, वह अपने ही लाभ के लिए पवित्र होता है। और (सबको) अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है। ” [सूरत फ़ातिर :18]
यही उनके पवित्र ग्रंथ (बाइबिल) के पाठ भी कहते हैं : “जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का; धर्मी को अपने ही धर्म का फल, और दुष्ट को अपनी ही दुष्टता का फल मिलेगा।” (यहेजकेल 18:20)
क्या कोई विरासत में मिला पाप है?
कोई विरासत में मिला पाप नहीं है: “22 यदि मैं न आता और उन से बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते, परन्तु अब उन्हें उन के पाप के लिये कोई बहाना नहीं। 23 जो मुझ से बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है।
24 यदि मैं उन में वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया।” (यूहन्ना 15:22-24)
जब कोई पाप होता है, चाहे उसे किसी बंदे ने किया हो, या उसे आदम से विरासत में मिला हो, या उसके अलावा किसी दूसरे पूर्वजों से विरासत में मिला हो (?!!), तो यह पाप तौबा (पश्चाताप) के ज़रिए क्यों नहीं मिटाया जाता?!
स्वर्ग के लोग तौबा (पश्चाताप) करने वाले पर वैसे ही आनंदित होते हैं जैसे चरवाहा अपनी खोई हुई भेड़ को पाकर आनंदित होता है, और स्त्री अपने खोए हुए पैसे को पाकर आनंदित होती है, और एक पिता अपने भटके हुए बेटे के वापस आ जाने पर आनंदित होता है :
“मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी तरह एक पापी के पश्चाताप करने पर स्वर्ग में इतनी ज़्यादा खुशियाँ मनायी जाएँगी, जितनी कि ऐसे निनानवे नेक लोगों के लिए नहीं मनायी जातीं, जिन्हें पश्चाताप की ज़रूरत नहीं।” (लूका 15:7)
क्या अल्लाह तौबा करने वालों की तौबा स्वीकार करता है?
अल्लाह ने पश्चाताप करने वालों से वादा किया है कि उनका पश्चाताप स्वीकार किया जाएगा :
“21 परन्तु यदि दुष्ट जन अपने सब पापों से फिर कर, मेरी सब विधियों का पालन करे और न्याय और धर्म के काम करे, तो वह न मरेगा; वरन जीवित ही रहेगा। 22 उसने जितने अपराध किए हों, उन में से किसी का स्मरण उसके विरुद्ध न किया जाएगा; जो धर्म का काम उसने किया हो, उसके कारण वह जीवित रहेगा।” (यहेजकेल 18:21-22), तथा (यशायाह 55:7) भी देखें।
पश्चाताप और अच्छे कर्म किए बिना वंश पर भरोसा करना एक प्रकार का पागलपन है; क्योंकि जिस व्यक्ति को उसके कर्म ने धीमा (पीछे) कर दिया, तो उसका वंश उसे गति नहीं देगा (आगे नहीं बढ़ाएगा), जैसा कि हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है। [सहीह मुस्लिम : 2699], इसी प्रकार जॉन बैपटिस्ट (यह्या अलैहिस्सलाम) ने तुम्हें यही बातें सिखाईं : “(7 जब उस ने बहुतेरे फरीसियों और सदूकियों को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उन से कहा, कि:) हे सांपों के बच्चो! तुम्हें किस ने जता दिया, कि आने वाले क्रोध से भागो? 8 सो मन फिराव के योग्य फल लाओ। 9 और अपने अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता इब्राहीम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि परमेश्वर इन पत्थरों से इब्राहीम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिये जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।” [मत्ती 3:7-10]
पापी के पश्चाताप के माध्यम ही से पापों की क्षमा धर्मी और दयालु अल्लाह के लिए उपयुक्त है, न कि बलिदान और सूली पर चढ़ना और खून बहाना। यही पवित्र बाइबल भी कहती है :
“13 सो तुम जाकर इस का अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं, परन्तु दया चाहता हूं; क्योंकि मैं धमिर्यों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूं।” [मत्ती 9:13]
इसीलिए पौलुस (पॉल) कहता है : “धन्य हैं वे जिनके अपराध क्षमा हुए और जिनके पाप ढाँपे गए। धन्य है वह मनुष्य जिसे प्रभु पाप का दोषी नहीं ठहराता।” [रोमियों 4:7-8]।
यह हमारे इस विश्वास के बावजूद है कि अगर सर्वशक्तिमान अल्लाह ने अपने कुछ बंदों को अपने पापों के पश्चाताप में खुद को मारने का आदेश दिया होता, तो यह उनके लिए बहुत ज़्यादा नहीं होता और न ही यह उस महिमावान के धर्मी और दयालु होने के विपरीत होता। उसने इस्राएल के बच्चों को ऐसा करने का आदेश दिया था जब उन्होंने खुले तौर पर अल्लाह को देखने की मांग की थी। लेकिन तब भी किसी को किसी और के बदले नहीं मारा जाएगा। बल्कि, एक व्यक्ति को उसके अपने पाप के लिए मारा जाएगा, दूसरों के पापों के लिए नहीं। यह उन बोझों और बेड़ियों में से है जिन्हें अल्लाह ने इस धन्य उम्मत से हटा दिया।
पाप की विरासत के सिद्धांत को अमान्य करने वाली बातों में से, वे पाठ भी हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके कार्यों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने अपनी पवित्र पुस्तक में फरमाया है :
مَنْ عَمِلَ صَالِحاً فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا وَمَا رَبُّكَ بِظَلامٍ لِلْعَبِيدِ
فصلت:46
“जो व्यक्ति अच्छा कर्म करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो बुरा कार्य करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसी पर होगा और आपका पालनहार बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।” [फ़ुस्सिलात 41 : 46]
तथा फरमाया :
كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ رَهِينَةٌ
المدثر:38
“प्रत्येक व्यक्ति उसके बदले जो उसने कमाया, गिरवी रखा हुआ है।” [अल-मुद्दस्सिर 74 : 38]
इसी तरह तुम्हारी पवित्र पुस्तक (बाइबल) में भी कहा गया है :
“दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।” [मत्ती 7:1-2]
“(क्योंकि) मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।” [मत्ती 16:27]
क्या मसीह ने अच्छे कामों और धार्मिकता के महत्व पर ज़ोर दिया?
मसीह ने अच्छे कर्मों और धार्मिकता के महत्व पर जोर देते हुए शिष्यों से कहा : “21 जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।
22 उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? 23 तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ।” [मत्ती 7:21-23]
इसी तरह, उसने कहा :
“41 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करने वालों को इकट्ठा करेंगे। 42 और उन्हें आग के कुंड में डालेंगे।” [मत्ती 13:41-42]।
चुनाँचे उसने उन्हें उस बलिदान के बारे में नहीं बताया जिसके द्वारा वे हिसाब से बच जाएँगे।
जो लोग नेक काम करते हैं, केवल वही लोग क़ियामत के दिन हिसाब से बच जाएँगे, जबकि जो लोग बुरे काम करते हैं, उन्हें नर्क में ले जाया जाएगा, उन्हें मसीह या किसी और के द्वारा उद्धार प्राप्त नहीं होगा :
“…वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। 29 जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।” [यूहन्ना 5:28-29]
“31 जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिहांसन पर विराजमान होगा... 41 तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, हे स्रापित लोगो, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है।” (मत्ती 25:31, 42)।
मसीह ने उनसे कहेगा :
“33 हे सांपो, हे करैतों के बच्चो, तुम नरक के दण्ड से क्योंकर बचोगे?” (मत्ती 23:33)
एडोल्फ हर्नैक ने उल्लेख किया है कि शिष्यों के पत्रों में बलिदान द्वारा मोक्ष का विचार शामिल नहीं था, बल्कि कर्मों के माध्यम से मुक्ति की बात कही गई थी, जैसा कि जेम्स के पत्र में कहा गया है : “14 हे मेरे भाइयों, यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो उस से क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास कभी उसका उद्धार कर सकता है? … 17 वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।… कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है।” [याकूब 2:14-20 और देखें : 1:22, 1:27]।
पतरस कहता है : “35 अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, वरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” [प्रेरितों के काम 10:34-35]
मसीह और शिष्यों के शब्दों में इसके समान बहुत सी बातें हैं।
सर्वशक्तिमान अल्लाह ने सच फरमाया है :
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُمْ مِنْ ذَكَرٍ وَأُنْثَى وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوباً وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِنْدَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ
الحجرات:13
“ऐ मनुष्यो! हमने तुम्हें एक नर और एक मादा से पैदा किया तथा हमने तुम्हें जातियों और क़बीलों में कर दिए, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। निःसंदेह अल्लाह के निकट तुममें सबसे अधिक सम्मान वाला वह है, जो तुममें सबसे अधिक तक़्वा वाला है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूरी ख़बर रखने वाला है।” [अल-हुजुरात 49:13]
आश्चर्य की बात यह है कि स्वयं पौलुस, जिसने व्यवस्था के उन्मूलन और कार्यों की निरर्थकता की घोषणा की, और यह कि उद्धार केवल विश्वास के माध्यम से ही मिलता है, ने स्वयं अन्य अवसरों पर अच्छे कार्यों के महत्व पर जोर दिया, जिसमें उसका यह कथन भी शामिल है : “ मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा... हम भले काम करने में हियाव (हिम्मत) न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (गलातियों 6:7,9)।
तथा वह कहता है : “...हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा।” (1कुरिन्थियों 3:8)
[इस मुद्दे पर विस्तार के साथ देखें : डॉ. मुन्ज़िर अस-सक़्क़ार : हल इफ़्तदाना अल-मसीह अलस-सलीब]
इस प्रकार, इस विरोधाभास के सामने, आपके पास अपनी समझ और तर्क को रद्द करने और झूठी आशाओं के साथ खुद को सही ठहराने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जैसा कि आपने त्रिदेव और एकेश्वरवाद के सिद्धांत के साथ किया था, जो कि जॉन आर स्टॉट आपको अपनी पुस्तक " बेसिक क्रिश्चियनिटी" में करने की सलाह देता है : (मैं इस विषय पर चर्चा करने की हिम्मत नहीं करता, इससे पहले कि मैं स्पष्ट रूप से स्वीकार करूँ कि इसका एक बड़ा हिस्सा एक गुप्त रहस्य बना रहेगा... यह आश्चर्यजनक है कि हमारे कमजोर दिमाग इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं। लेकिन वह दिन अवश्य आएगा जब पर्दा उठ जाएगा, सभी रहस्यों को सुलझा लिया जाएगा, और आप मसीह को वैसे ही देखेंगे जैसे वह वास्तव में है!!
... यह कैसे संभव है कि अल्लाह मसीह में प्रवेश कर गया, जबकि मसीह को हमारे पापों के लिए बलिदान बनाया गया? मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता, लेकिन रसूल स्वयं इन दोनों तथ्यों को एक साथ रखते हैं और मैं इस विचार को पूरी तरह से स्वीकार करता हूँ, जैसे मैंने यह स्वीकार किया था कि यीशु नासरी एक ही रूप में मनुष्य और परमेश्वर दोनों है... भले ही हम इस विरोधाभास को हल न कर सकें, या इस रहस्य को न समझ सकें, हमें मसीह और उनके शिष्यों द्वारा घोषित सत्य को स्वीकार करना होगा, कि उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया।) [बेसिक क्रिश्चियनिटी, पृष्ठ : 110, 121, डॉ. सऊद अल-खलफ की पुस्तक ‘अल-यहूदिय्यह वन-नस्रानिय्यह’ पृष्ठ : 238 से उद्धृत)
हाँ, हम और आप मसीह को वैसे ही देखेंगे जैसे वह वास्तव में है; अल्लाह के निकटवर्ती बंदों और उसके भेजे हुए नबियों में से एक। इस दिन जब पर्दा उठ जाएगा तो वह उन सब से विमुख हो जाएगा जिन्होंने उसे अल्लाह के अतिरिक्त पूज्य बनाया, या उस पर ऐसी बातें आरोपित कीं जो उसने नहीं कही थीं। ताकि तुम उस समय जान लो कि इसमें कोई पहेली या रहस्य नहीं थे :
وَإِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّي إِلَهَيْنِ مِنْ دُونِ اللَّهِ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ إِنْ كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ إِنَّكَ أَنْتَ عَلامُ الْغُيُوبِ (116) مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلا مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنْ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَا دُمْتُ فِيهِمْ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنْتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ وَأَنْتَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ (117) إِنْ تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ وَإِنْ تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنْتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (118) قَالَ اللَّهُ هَذَا يَوْمُ يَنفَعُ الصَّادِقِينَ صِدْقُهُمْ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الأَنهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (119) لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (120)
سورة المائدة: 116-120
“तथा जब अल्लाह (क़ियामत के दिन) कहेगा : ऐ मरयम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि मुझे तथा मेरी माँ को अल्लाह के अलावा दो पूज्य बना लो? वह कहेगा : तू पवित्र है, मुझसे यह कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने यह बात कही थी, तो निश्चय तूने उसे जान लिया। तू जानता है, जो मेरे मन में है और मैं नहीं जानता जो तेरे मन में है। निश्चय तू ही सब छिपी बातों (परोक्ष) को बहुत ख़ूब जानने वाला है। मैंने उनसे उसके सिवा कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है। और मैं उनपर गवाह था, जब तक उनमें रहा, फिर जब तूने मुझे उठा लिया, तो तू ही उनपर निरीक्षक था और तू हर चीज़ पर गवाह है। यदि तू उन्हें दंड दे, तो निःसंदेह वे तेरे बंदे हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो निःसंदेह तू ही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है। अल्लाह कहेगा : यह वह दिन है कि सच्चों को उनका सच ही लाभ देगा। उन के लिए ऐसे बाग़ हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, उनमें हमेशा-हमेशा के लिए रहने वाले हैं। अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गए, यही बहुत बड़ी सफलता है। आकाशों और धरती तथा जो कुछ उनमें है, उन सबका राज्य अल्लाह ही के लिए है और वह हर चीज़ पर शक्ति रखने वाला है।” (सूरतुल मायदा : 116-120).
क्या इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, आप इसके बारे में सोचेंगे? तथा एक सामान्य शब्द की ओर लौटेंगेॽ जिसमें कोई पहेली (रहस्य) या पर्दा नहीं है :
قُلْ يا أهل الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَى كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلا نَعْبُدَ إِلا اللَّهَ وَلا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِنْ دُونِ اللَّهِ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَقُولُوا اشْهَدُوا بِأَنَّا مُسْلِمُونَ
سورة آل عمران :64
“(ऐ नबी!) कह दीजिए : ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे बीच और तुम्हारे बीच समान (बराबर) है; यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न बनाएँ तथा हममें से कोई किसी को अल्लाह के सिवा रब न बनाए। फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी हैं।” (सूरत आल-इमरान : 64).
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।