रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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समलैंगिकों का समर्थन करने वाली कंपनियों और ऐप्स के साथ लेन-देन करने का हुक्म

प्रश्न

समलैंगिकों का समर्थन करने वाली कंपनियों, प्रोग्रामों और ऐप्स के साथ लेन-देन करने का क्या हुक्म हैॽ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

समलैंगिकता महा अपराध और बड़ा पाप है

इसमें कोई संदेह नहीं कि लूत की जाति के लोगों का काम एक जघन्य अपराध और सबसे बड़े पापों में से एक बड़ा पाप, तथा सबसे घृणित पापों में से एक है। अल्लाह ने लूत अलैहिस्सलाम की जाति के लोगों को विभिन्न प्रकार की भयानक सज़ाओं से नष्ट कर दिया, जब वे अपनी पथ-भ्रष्टा पर क़ायम रहे और इस घृणित कार्य को अच्छा समझ लिया।

इस गंभीर कुकर्म में मदद करना, या इसे फैलाने में योगदान देना, या ऐसा करने वालों की भौतिक या नैतिक समर्थन करना हराम एवं निषिद्ध है; क्योंकि यह धर्ती पर भ्रष्टाचार, कुकर्म और अनैतिकता फैलाने की श्रेणी में आता है, जो कि क़ौमों, समुदायों और व्यक्तियों के विनाश, पीड़ा और बर्बादी के कारणों में से है।

अल्लाह तआला ने बुराई में सहयोग करने से मना किया है, जैसा कि उसका फरमान है :

وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ

المائدة :2

”तथा नेकी और परहेज़गारी पर एक-दूसरे का सहयोग करो और पाप तथा अत्याचार पर एक-दूसरे की सहायता न करो। और अल्लाह से डरो। निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।” [सूरतुल-मायदा : 2]

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्पष्ट कर दिया है कि जो व्यक्ति लोगों को गुमराही का रास्ता दिखाता है, उसपर उस पाप का बोझ और उसपर अमल करने वालों का बोझ होगा। अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "...और जिस व्यक्ति ने दूसरों को गुमराही की ओर बुलाया, उस पर उन लोगों की तरह पाप का बोझ पड़ेगा जो उसका अनुपालन करेंगे, इससे उनके पाप के बोझ में कुछ भी कमी नहीं आएगी।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2647) ने रिवायत किया है।

दूसरा :

समलैंगिकों का समर्थन करने वाली कंपनियों और ऐप्स के साथ लेन-देन करना

जहाँ तक उन कंपनियों और ऐप्स के साथ लेन-देन करने के हुक्म का संबंध है, जो समलैंगिकों का समर्थन करती हैं और उनके मुद्दों में उनकी मदद करती हैं, तो यह ''भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने'' के सिद्धांतों के अधीन आता है। इसलिए यहाँ कहा जाएगा :

यदि उनके साथ लेन-देन न करना, इन कंपनियों को बुराई का समर्थन करने से रोकने, या उनकी विशिष्ट बुराई, यानी समलैंगिकों के समर्थन, को उजागर करने और उनका खंडन करने और लोगों से उनकी स्थिति को बयान करने के हित को पूरा करता है ; तो फिर इन कंपनियों से खरीदारी बंद कर देना और इनके साथ लेन-देन करने से बाज़ रहना अनिवार्य है; एक तरफ बुराई से रोकने के कर्तव्य को पूरा करते हुए, तथा दूसरी तरफ समलैंगिकों की बुराइयों से बरी होने का प्रदर्शन करते हुए, जो व्यापक रूप से फैल चुकी है। साथ ही उन कंपनियों की बुराइयों से भी अलगाव प्रकट करते हुए जो शरीयत के दुश्मनों के साथ मिलीभगत करने वाली और उनकी मदद करने वाली हैं, तथा अल्लाह की शरीयत का समर्थन करने में योगदान देने और उसके जो विपरीत चीज़ें हैं उनको रोकने पर खुद को प्रशिक्षित करना।

अबुल-वफ़ा इब्ने अक़ील अल-हंबली रहिमहुल्लाह ने कहा :

“यदि आप जानना चाहते हैं कि एक निश्चित युग के लोगों के निकट इस्लाम का क्या स्थान है, तो मस्जिदों के दरवाज़ों पर उनकी भीड़, या अरफात में ठहरने के दौरान उनके लबैक की आवाज़ के शोर को न देखें; बल्कि शरीयत (इस्लाम) के दुश्मनों के साथ उनकी मिलीभगत को देखें। इब्ने रावंदी और अल-मअर्री (उन पर अल्लाह का शाप हो) ने अपना सारा जीवन [इस्लाम की आलोचना में] गद्य और कविता लिखते हुए बिताया। इब्ने रावंदी ने इस्लाम को एक मिथक के रूप में वर्णित किया, और अल-मअर्री (अपनी कविता में) कहता है :

“उन्होंने झूठ का पाठ किया और अपनी तलवारें खोल दीं ... उन्होंने कहा : हम सच कह रहे हैं। तो हमने कहा : हाँ सचमुच।''

"झूठ" से उसका तात्पर्य अल्लाह तआला की किताब है। वे कई वर्षों तक जीवित रहे, उनकी क़ब्रों का सम्मान किया गया और उनकी किताबें व्यापक रूप से खरीदी गईं। इससे इंगित होता है कि लोगों के दिलों में धर्म के प्रति कितना निरुत्साह था।'' इब्ने मुफ़लेह की किताब ''अल-आदाब अश-शरईय्यह'' (1/237) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इन कंपनियों से लेन-देन करने का निषेध और प्रबल हो जाता है, यदि इन कंपनियों के उत्पादों के अन्य विकल्प उपलब्ध हैं, जो ऐसी कंपनियों के हैं जिन्हें समलैंगिकों का समर्थन करने के लिए नहीं जाना जाता है। इस स्थिति में उनका बहिष्कार करने में एक स्पष्ट हित पाया जाता है, जबकि ऐसा करने में कोई नुकसान और ख़राबी (दुष्परिणाम) न हो।

तथा ऐसा करना और भी अधिक प्रबल और निश्चिचत हो जाता है, यदि उनके उत्पाद तुच्छ हैं ... तो उनके बारे में चिंता करने या उनमें रूचि दिखाने का कोई मतलब नहीं है.. और ऐसे तुच्छ उत्पादों की भरमार हैं... बल्कि उनके अधिकांश उत्पाद शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं; फिर भी लोग उन्हें खरीदने के लिए पतिंगों के आग पर गिरने की तरह टूट पड़ते हैं!!

लेकिन, यदि मुसलमान को उनके उत्पादों की आवश्यकता है और बिना नुकसान उठाए हुए उनके बिना उसका काम नहीं चल सकता है, या उसके लिए ऐसा करना सख्त कष्ट का कारण है जिससे उसे परेशानी होगी, तथा उस सामान का और कोई विकल्प उत्पाद नहीं है; तो ऐसी स्थिति में उनसे खरीदारी करना छोड़ देना, या उनके सॉफ़्टवेयर का उपयोग न करना अनिवार्य नहीं है, जब तक कि वह सामान अपने आप में अनुमेय है। स्वयं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यहूदियों के साथ खरीद-फरोख्त किया है और आपने अपनी ढाल एक यहूदी व्यक्ति के पास गिरवी रखी हुई थी, हालाँकि कुफ़्र से बढ़कर कोई पाप नहीं है।

इस स्थिति में जो करना चाहिए, वह यह है कि जिस माध्यम से भी संभव हो उनकी निंदा करना जारी रखना चाहिए। तथा जब भी उनके उत्पादों और सॉफ़्टवेयर के अन्य विकल्प उपलब्ध हों, तो उन विकल्पों को खरीदना चाहिए और उनके उत्पादों को त्याग कर देना चाहिए, और दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह देनी चाहिए, क्योंकि उनका बहिष्कार करने से तभी लाभ होगा जब सामूहिक प्रयास किया जाएगा। क्योंकि ऐसा करने से उन्हें वित्तीय नुकसान पहुँचेगा जिसके चलते वे इस गलत काम से पीछे हटने के लिए मजबूर हो जाएँगे, अगर उन्हें पता चलेगा कि उनका बहिष्कार उनके बुरे कार्यों से जुड़ा है। इसी तरह यह दूसरों को भी ऐसा करने से रोकेगा।

तथा अपने धन के साथ समलैंगिकों का समर्थन करने वाली और उस प्रवृत्ति के विचारों का प्रचार करने वाली कंपनियों का, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, बहिष्कार करना तथा उसमें योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना, उन कंपनियो की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जो केवल उनके प्रतीकों (लोगो) को प्रदर्शित करती हैं और उनके झंडे का प्रसार करती है, लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं देती हैं।

काफ़िरों और उनमें से सक्रिय रूप से मुसलमानों के प्रति शत्रुता रखने वाले लोगों के साथ खरीद-फरोख्त करने के हुक्म के बारे में अधिक जानकारी के लिए, प्रश्न संख्या : (20732) का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर