रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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जाँच के लिए रक्त का नमूना लेने से रोज़ा नहीं टूटता है

प्रश्न

क्या 5 सेमी का ब्लड सैंपल (रक्त का नमूना) लेने से रोज़े पर कोई प्रभाव पड़ता हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यह रोज़े को प्रभावित नहीं करता है, क्योंकि यह थोड़ी मात्रा में है और रोज़ेदार व्यक्ति को कमज़ोर नहीं बनाता है।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से एक ऐसे व्यक्ति के हुक्म के बारे में पूछा गया, जिसका विश्लेषण (जाँच) के उद्देश्य से रक्त लिया गया, जबकि वह रमज़ान में रोज़े की स्थिति में था।

तो उन्होंने जवाब दिया :

“इस तरह का विश्लेषण रोज़े को फ़ासिद (प्रभावित) नहीं करता है,  बल्कि यह क्षम्य है। क्योंकि यह ऐसी चीज़ों में से जिसकी आवश्यकता पड़ती है और यह उन रोज़ा तोड़ने वाली चीजों में से नहीं हैं जो पवित्र शरीयत में रोज़ा तोड़ने के लिए जानी जाती हैं।”

“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (15/274)।

शैख इब्ने उसैमीन से (फतावा अर्कानुल-इस्लाम, पृ 478) प्रश्न किया गया :

रोज़ेदार व्यक्ति के लिए खून जाँच कराने का क्या हुक्म है और क्या उससे रोज़ा टूट जाता हैॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

“विश्लेषण (जाँच) के उद्देश्य के लिए खून निकलवाने से रोज़ेदार व्यक्ति का रोज़ा नहीं टूटेगा। क्योंकि डॉक्टर को परीक्षण करने के लिए रोगी के रक्त को लेने की आवश्यकता हो सकती है। तो इससे रोज़ा नहीं टूटेगा; क्योंकि यह रक्त की एक थोड़ी मात्रा है, जो शरीर को उस तरह से प्रभावित नहीं करता है जिस तरह से सींगी (कपिंग) प्रभावित करती है। इसलिए वह रोज़ा तोड़नेवाला नहीं होगा। जबकि मूल सिद्धांत रोज़े का बाक़ी रहना है और हम उसे बिना शरई प्रमाण के फ़ासिद नहीं कर सकते। जबकि यहाँ इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इस तरह के थोड़े खून से रोज़ेदार आदमी का रोज़ा टूट जाता है।

जहाँ तक बड़ी मात्रा में खून निकालने का संबंध है, ताकि, उदाहरण के लिए, उसे किसी ऐसे व्यक्ति को चढ़ाया जाए, जिसे इसकी आवश्यकता है, तो अगर उससे बहुत सारा खून लिया गया है जो उसके शरीर पर सींगी (कपिंग) के समान प्रभाव डालता है, तो उसकी वजह से रोज़ा टूट जाएगा। इसके आधार पर, यदि अनिवार्य रोज़ा है, तो किसी (रोज़ेदार व्यक्ति) के लिए जायज़ नहीं है कि वह किसी को बड़ी मात्रा में रक्त दान करे। लेकिन अगर जिस व्यक्ति को रक्त दान किया जा रहा है, उसकी स्थिति इतनी गंभीर हो कि वह सूर्यास्त के बाद तक सब्र (इंतज़ार) न कर सकता हो और डॉक्टरों ने फैसला किया हो कि इस रोज़ेदार व्यक्ति का रक्त उसे लाभ पहुँचाएगा और उसकी आवश्यकता को पूरा कर देगा। तो ऐसी स्थिति में कोई आपत्ति की बात नहीं है कि वह रक्त दान करे, तथा अपना रोज़ा तोड़ दे और खाए और पिए यहाँ तक कि उसकी ताकत वापस लौट आए। तथा उसे इस दिन की क़ज़ा करनी होगी जिसका उसने रोज़ा तोड़ दिया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर