शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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किसी भी व्यक्ति के लिए यह सुनिश्चित करना संभव नहीं है कि कोई विशिष्ट रात लैलतुल क़द्र है।

प्रश्न

अन्य रातों को छोड़कर केवल क़द्र की रात (शबे-क़द्र)  में तहज्जुद की नमाज़ अदा करने का क्या हुक्म हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

लैलतुल-क़द्र (शबे-क़द्र) में इबादत करने के बारे में महान विशेषता वर्णित है। हमारे सर्वशक्तिमान पालनहार ने बयान किया है कि वह एक हज़ार महीने से उत्तम है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि जो व्यक्ति इस रात में ईमान रखते हुए और अल्लाह के लिए नीयत को खालिस करते हुए इबादत करता है उसके पहले के पापों को क्षमा कर दिया जाएगा। अल्लाह तआला ने फरमाया :

  إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ . وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ . لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ . تَنَزَّلُ الْمَلائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ . سَلامٌ هِيَ حَتَّى مَطْلَعِ الْفَجْرِ

سورة القدر:1 – 5 

“निःसंदेह हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र की रात में उतारा है। और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या हैॽ क़द्र की रात हज़ार महीने से उत्तम है। उसमें फ़रिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब की आज्ञा से उतरते हैं हर महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए। वह पूर्णतः शान्ति की रात है जो फ़ज्र (उषाकाल) के उदय होने तक रहती है।” [सूरतुल-क़द्र :1-5]

तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति क़द्र की रात में ईमान और एह्तिसाब के साथ (यानी अल्लाह के लिए नीयत को खालिस करते हुए) इबादत करेगा उसके पहले के पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1901) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 760) ने रिवायत किया है।

“ईमान के साथ” का मतलब हैः उस रात की विशेषता और उसमें अमल करने की वैधता पर विश्वास रखते हुए।

तथा “एह्तिसाब” का मतलब हैः अल्लाह तआला के लिए नीयत को ख़ालिस करते हुए।

द्वितीय :

क़द्र की रात के निर्धारण करने के बारे में विद्वानों ने कई कथनों पर मतभेद किया है, यहाँ तक कि इस विषय में उनके कथन चालीस से अधिक तक पहुँचते हैं, जैसा कि “फ़त्हुल बारी” में उल्लेख किया गया है। परन्तु सही होने के सबसे निकट कथन यह है कि वह रात रमज़ान की अंतिम दस रातों की विषम (ताक़) संख्या वाली रातों में से कोई एक है।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“क़द्र की रात को रमज़ान के महीने के अंतिम दस दिनों की विषम संख्या वाली रातों में तलाश करो।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्याः 2017) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1169) ने रिवायत किया है। (और यहाँ उल्लिखित हदीस के शब्द बुख़ारी के हैं)।

इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह ने इस हदीस को जिस अध्याय में उल्लेख किया है उसपर यह शीर्षक लगाया है : “क़द्र की रात को अंतिम की दस विषम रातों में ढूंढने का अध्याय”

इसको गुप्त रखने में यह तत्वदर्शिता पाई जाती है कि रमज़ान की सभी अंतिम दस रातों के दौरान मुसलमानों को इबादत और दुआ और अल्लाह को याद करने में कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करना है। तथा जुमा के दिन दुआ के स्वीकार किए जाने की घड़ी को निर्धारित न करने की भी यही तत्वदर्शिता है, और अल्लाह के निन्नान्वे नामों को निर्धारित न करने का भी यही कारण है, जिसके बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“जो व्यक्ति इसे याद करेगा, अल्लाह उसे जन्नत में प्रवेश करेगा।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 2736) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2677) ने रिवायत किया है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह के कथन : “क़द्र की रात को अंतिम की दस विषम रातों में ढूंढने का अध्याय” की व्याख्या करते हुए फरमाया :

“इस शीर्षक में क़द्र वाली रात के रमज़ान के महीने में, फिर उसके अंतिम दस दिनों में, फिर उसके दस दिनों की विषम रातों में सीमित होने की प्रधानता का संकेत पाया जाता है, न कि निश्चित रूप से उसकी किसी विशिष्ट रात में। और इस विषय के बारे में वर्णित सभी हदीसों से यही संकेत मिलता है।”

“फ़त्हुल बारी (4/260)”

तथा उन्होंने यह भी का :

विद्वानों का कहना है कि : क़द्र की रात को गुप्त रखने में यह तत्वदर्शिता पाई जाती है कि लोग इस रात को तलाश करने में भरपूर प्रयास करें, जबकि यदि इस रात को निर्धारित कर दिया जाता तो लोग केवल इसी रात में इबादत करने तक सीमित रहते, जैसा कि इसी प्रकार की बात जुमा की विशेष घड़ी के बारे में गुज़र चुकी है।”

“फ़त्हुल बारी (4/266)”

तृतीय :

इस आधार परः किसी भी व्यक्ति के लिए यह सुनिश्चित करना संभव नहीं है कि कोई विशिष्ट रात क़द्र की रात है, विशेषकर जब हमें यह बात मालूम है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी उम्मत को इस रात के बारे में बताना चाहते थे और फिर आपने लोगों को बताया कि अल्लाह तआला ने इसका ज्ञान उठा लिया।

उबादह बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि एक बार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़द्र की रात के बारे में बताने के लिए निकले तो इसी बीच आपने मुसलमानों में से दो लोगों को आपस में लड़ते और बहस करते हुए पाया, तो आपने फरमाया :

“मैं तुम्हें क़द्र की रात के बारे में बताने के लिए निकला था, लेकिन फलाँ और फलाँ लोग आपस में झगड़ने लगे जिससे इसका ज्ञान उठा लिया गया। और आशा है कि यह तुम्हारे लिए बेहतर हो। तुम इसे सत्ताईसवीं, उन्तीसवीं और पचीसवीं रात में खोजो।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 49) ने रिवायत किया है।

फत्वा जारी करने की स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है कि :

“रमज़ान की किसी रात के बारे में खास करना कि वह क़द्र की रात है, इसके लिए ऐसे प्रमाण की आवश्यकता है जो अन्य रातों को छोड़कर उसे ही निर्धारित कर दे, परन्तु अंतिम दस रातों की विषम संख्या वाली रातें अन्य रातों की तुलना में उसके पाए जाने के अधिक संभावित है तथा सत्ताईसवीं रात के क़द्र वाली रात होने की सबसे अधिक संभावना है; क्योंकि इस बारे में ऐसी हदीसें आई हैं जो उस चीज़ को इंगित करती हैं जो हमने उल्लेख किया है।”

“फतावा अल-लजनह अद-दाइमा लिल-बुहूस अल-इल्मिय्या” (10/413).

इसलिए मुसलमानों के लिए किसी विशिष्ट रात को क़द्र की रात मान लेना उचित नहीं है, क्योंकि इसका मतलब यह होगा कि वह एक ऐसी चीज़ को सुनिश्चित कर रहा है जिसको सुनिश्चित करना संभव नहीं है। और फिर इसमें स्वयं से भलाई को दूर करना पाया जाता है। क्योंकि यह इक्कीसवीं रात या तेईसवीं रात भी हो सकती है, और यह भी हो सकता है कि वह उन्तीसवीं रात हो। अतः यदि वह केवल सत्ताईसवीं रात को क़ियाम (इबादत) करेगा तो वह बहुत सी भलाइयों से वंचित रह जाएगा और उस मुबारक रात को नहीं पाएगा।

अतः मुसलमान को रमज़ान के पूरे महीने में आज्ञाकारिता और इबादत के कामों में भरपूर प्रयास करना चाहिए, जबकि अंतिम दस रातों में और अधिक प्रयास करना चाहिए। यही नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा (मार्गदर्शन) है।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, वह कहती हैं कि :

“जब रमज़ान के आखिरी दस दिन शुरू होते तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी कमर कस लेते, और उनकी रातों को जागते (अर्थात इबादत में बिताते) और अपने परिवार वालों को भी जगाते थे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2024) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1174) ने रिवायत किया है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर