हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
चारों मतों में से जम्हूर फुक़हा (धर्म ज्ञानियों की बहुमत) इस बात की ओर गए हैं कि मासिक धर्म वाली महिला के लिए मस्जिद में ठहरना जाइज़ नहीं है,इस पर उन्हों ने उस हदीस से दलील पकड़ी है जिसे बुखारी (हदीस संख्याः 974) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 890) ने उम्मे अतीयह से रिवायत किया कि उन्हों ने कहा : हमें आदेश किया - अर्थात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने - कि हम ईदुल फित्र और ईदुल अज़्हा में किशोरियों,मासिक धर्म वाली औरतों तथा कुंवारी महिलाओं को बाहर निकालें। तथा मासिक धर्म वाली औरतें को मुसलमानों के नमाज़ स्थल से अलग रहने का आदेश दिया।”
तो इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मासिक धर्म वाली महिला को ईदगाह से रोक दिया हैऔर उसे उससे अलग थलग रहने का हुक्म दिया है, क्योंकि उसका हुक्म मस्जिद का है, इससे पता चला कि उसके लिए मस्जिद में दाखिल होना मना है।
तथा उन्हों ने अन्य हदीसों से भी दलील पकड़ी है लेकिन वे ज़ईफ हैं उनसे दलील पकड़ना सही नहीं है, उन्हीं में से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : “मैं मासिक धर्म वाली औरत और जनाबत (वह अपवित्रता जो स्वपनदोष या पत्नी के साथ सहवास से होती है) वाले के लिए मस्जिद को हलाल नहीं ठहराता हूँ।” इस हदीस को अल्बानी ने ज़ईफ अबू दाऊद (हदीस संख्याः 232) में ज़ईफ ठहराया है।
तथा इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों (6/272) से प्रश्न किया गया कि :
उस महिला के बारे में शरीअत का हुक्म क्या है जो केवल खुत्बा सुनने के लिए मासिक धर्म की अवस्था में मस्जिद में दाखिल होती है ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया : महिला के लिए मस्जिद में प्रवेश करना जाइज़ नहीं है जबकि वह मासिक धर्म वाली या प्रसुता हो . . .
रही बात गुज़रने की, तो यदि उसकी आवश्यकता है और उसके मस्जिद को गंदा करने का भय नहीं है तो इसमें कोई हर्ज की बात नहीं है, क्योंकि अल्लाह का फरमान है :
وَلا جُنُباً إِلا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّى تَغْتَسِلُوا [النساء : 43]
“और जनाबत की हालत में (नमाज़ न पढ़ो) ज तक स्नान न कर लो, हाँ, अगर राह चलते गुज़र जाने वाले हो और बात है।” (सूरतुन निसा : 43).
और मासिक धर्म वाली महिला जनाबत वाली महिला के समान है,और इसलिए कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा को हुक्म दिया कि वह आपको मस्जिद से ज़रूरत की चीज़ उठाकर दे दें जबकि वह मासिक धर्म की स्थिति में थीं।”
“फतावा स्थायी समिति” (6/272) से समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : क्या मासिक धर्म वाली औरत के लिए मस्जिदों में ज़िक्र की सभाओं में उपस्थित होना जाइज़ हैॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया : “मासिक धर्म वाली महिला के लिए मस्जिद में ठहरना जाइज़ नहीं है, रही बात उसके मस्जिद से गुज़रने की तो इसमें कोई बात नहीं है, इस शर्त के साथ कि उससे निकलने वाले खून से मस्जिद को दूषित करने का भय न हो, और जब उसके लिए मस्जिद में रहना जाइज़ नहीं है, तो उसके लिए क़ुर्आन के पाठ और ज़िक्र की सभाओं को सुनने के लिए जाना भी जाइज़ नहीं है, सिवाय इसके कि वहाँ मस्जिद के बाहर कोई स्थान हो जहाँ लॉउडस्पीकर के माध्यम से आवाज़ पहुँचती हो,तो ज़िक्र सुनने के लिए उसमें बैठने में कोई हर्ज नहीं है क्योंकि महिला के लिए ज़िक्र और क़ुर्आन के पाठ को सुनने में कोई हर्ज नहीं है जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित है कि आप आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की गोद में टेक लगा लेते थे और क़ुरआन पढ़ते थे, जबकि वह मासिक धर्म की अवस्था में होती थीं। रही बात इसकी कि वह मस्जिद में जाए ताकि ज़िक्र या क़ुरआन सुनने के लिए उसमें ठहरी रहे तो यह जाइज़ नहीं है, इसीलिए जब हज्जतुल वदाअ के अवसर पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सूचित किया गया कि सफीया रज़ियल्लाहु अन्हा मासिक धर्म की अवस्था में हैं तो आप ने कहा : “क्या यह हमें रोकने वाली हैं ॽ”
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह गुमान किया कि उन्हों ने तवाफ इफाज़ा नहीं किया है, तो लोगों ने कहा कि वह तवाफ इफाज़ा कर चुकी हैं, इससे पता चलता है कि महिला के लिए मासिक धर्म की अवस्था में मस्जिद में रहना जाइज़ नहीं है, चाहे वह इबादत के लिए ही क्यों न हो। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने महिलाओं को नमाज़ और ज़िक्र के लिए ईदगाह जाने का आदेश किया, और मासिक धर्म वाली महिलाओं को नमाज़ पढ़ने की जगह से अलग रहने का आदेश दिया।”
“फतावा अत्तहारह” (पृष्ठः 273) से समाप्त हुआ।
तथा फुक़हा के मत “अल-मबसूत” (3/153), “हाशियतुद दसूक़ी” (1/173), “अल-मजमूअ” (2/388), “अल-मुग़नी” (1/195) में देखे जा सकते हैं।
दूसरा :
मासिक धर्म वाली औरत के लिए मुसहफ को छुए बिना क़ुर्आन पढ़ना जाइज़ है, जैसाकि प्रश्न संख्या (2564) के उत्तर में वर्णित है।