हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम:
जहाँ तक इबलीस के सदैव के लिए जहन्नम में प्रवेष करने का प्रश्न है : तो इस में कोई सन्देह नहीं है, और अल्लाह तअला ने परलोक में उसके अंजाम (अंतिम फल) का क़ुर्आन की कई आयतों में उल्लेख किया है, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं:
1- अल्लाह तआला का फरमान है:
"(अल्लाह ने) कहा कि जब मैं ने तुझे सज्दा करने का हुक्म दिया तो किस चीज़ ने तुझे सज्दा करने से रोक दिया ?उस ने कहा मैं इस से अच्छा हूँ, तू ने मुझे आग से पैदा किया और इसे मिट्टी से पैदा किया है। (अल्लाह तआला ने) हुक्म दिया कि तू आकाश से उतर, तुझे कोई हक़ नहीं कि आकाश में रह कर घमंड करे, इसलिए निकल, नि:सन्देह तू अपमानितों में से है। उस (इबलीस) ने कहा कि मुझे उस दिन तक मोहलत दीजिये जब लोग दुबारा ज़िन्दा किये जायेंगे। (अल्लाह ने) कहा कि तुझे मोहलत दे दी गयी। उस (इबलीस) ने कहा तेरे मुझे धिक्कारने के कारण मैं उनके लिए तेरे सीधे रास्ते पर बैठूँगा। फिर उनके सामने से और पीछे से और दायें और बायें से हमला करूँगा और आप इन में से अधिकतर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेंगे। (अल्लाह ने) कहा, तू इस से (यहाँ से) अपमानित होकर निकल जा, जो उन में से तेरी पैरवी करेगा, मैं तुम सभी से जहन्नम को अवश्य भर दूँगा।" (सूरतुल आराफ: 12-18)
तबरी कहते हैं:
"यह महान प्रशंसा और स्तुति वाले अल्लाह की तरफ से क़सम है, उसने यह क़सम खाई है कि आदम की संतान (मनुष्यों) में से जिस ने अल्लाह के दुश्मन इबलीस का आज्ञा पालन किया और उसकी पैरवी की, जहन्नम को उन से भर देगा, अर्थात् आदम की संतान में से इबलीस की पैरवी करने वाले काफिरों से, तथा इबलीस और उसकी संतान से (जहन्नम को भर देगा)।" संछेप और कुछ परिवर्तन के साथ समाप्त हुआ। (तफसीर तबरी 8/139)
2- तथा अल्लाह तआला ने फरमाया:
"(अल्लाह तआला ने) कहा, हे इब्लीस! तुझे क्या हुआ कि तू सज्दा करने वालों में शामिल न हुआ ? वह बोला कि मैं ऐसा नहीं कि इस इंसान को सज्दा करूँ जिसे तू ने काली और सड़ी हुई खनखनाती मिट्टी से पैदा किया है। (अल्लाह ने) कहा कि अब तू जन्नत से निकल जा क्योंकि तू धिक्कारा हुआ है। और तुझ पर मेरी ला'नत (धिक्कार) है क़ियामत के दिन तक। कहने लगा, हे मेरे रब! मुझे उस दिन तक मौक़ा प्रदान कर दे जब लोग दुबारा जीवित करके उठाये जायेंगे। कहा कि (ठीक है) तू उन में से है जिन्हें मौक़ा दिया गया है। मुक़र्रर (नियत) दिन के वक़्त तक का। (इब्लीस ने) कहा कि हे मेरे रब! तू ने मुझे भटकाया है, मुझे भी क़सम है कि मैं भी धरती में उनके लिए मोह पैदा करूँगा और उन सब को भटकाऊँगा, सिवाय तेरे उन बन्दों के जो चयन कर लिये गये हैं। (अल्लाह ने) कहा कि हाँ यही मुझ तक पहुँचने का सीधा रास्ता है। मेरे बन्दों पर तेरा कोई प्रभाव नहीं, लेकिन हाँ जो भटके हुए लोग तेरी पैरवी करेंगे। और बेशक उन सब के वादे का स्थान जहन्नम है। जिसके सात दरवाज़े हैं, हर दरवाज़े के लिए उनका एक हिस्सा बँटा हुआ है।" (सूरतुल हिज्र: 33-44)
शंक़ीती रहिमहुल्लाह फरमाते हैं:
"हर आयत जिस में इब्लीस के आदम के बेटों को पथभ्रष्ट करने का उल्लेख किया गया है, उस में यह स्पष्ट किया गया है कि इब्लीस और उसके सभी पैरवी करने वाले लोग सब के सब जहन्नम में होंगे, जैसाकि यहाँ फरमाया कि : "और बेशक उन सब के वादे का स्थान जहन्नम है, जिसके सात दरवाज़े हैं।" (अज़्वाउल बयान 3/131)
3- तथा अल्लाह तआला का फरमान है:
"कहा कि सच तो यह है, और मैं सच ही कहा करता हूँ कि तुझ से और तेरे सभी पैरोकारों से मै (भी) नरक को भर दूँगा।" (सूरत साद्: 84-85)
4- तथा अल्लाह तआला ने जिन्नों के कथन का वर्णन करते हुये फरमाया:
"और हम में से कुछ मुसलमान हैं और कुछ बेइंसाफ हैं, तो जो मुसलमान हो गये उन्हों ने सीधे रास्ते की खोज कर ली। और जो ज़ालिम हैं वे नरक का ईंधन बन गये।" (सूरतुल जिन्न: 14-15)
दूसरी बात:
जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि इब्लीस को आग में कैसे दंडित किया जायेगा जबकि वह आग ही से पैदा किया गया है, तो इस का उत्तर यह है कि:
जिन्नों के आग से पैदा किये जाने से यह आवश्यक नहीं हो जात है कि वे अब भी आग ही हैं, जैसाकि मनुष्य मिट्टी से पैदा किये गये हैं और वे अब मिट्टी नहीं हैं।
अबुल वफा बिन अक़ील कहते हैं : "शैतानों और जिन्नों की निस्बत आग की ओर की गई है जिस प्रकार की मनुष्यों की निस्बत मिट्टी, खनखनाती हुई मिट्टी या ठीकरी की तरफ की गई है, और मनुष्य के संबंध में उस का मतलब यह है कि मनुष्य की असलियत मिट्टी है, यह नहीं कि मनुष्य वास्तव में मिट्टी है, बल्कि वह मिट्टी था, इसी प्रकार जिन्न भी असल में आग थे।" ("लक्तुल मर्जान फी अहकामिल जान्न" पृ0 33, "आलमुल जिन्न वश्शयातीन" पृ0 58 से उद्धृत)
जब इंसान मिट्टी से पैदा किये गये हैं और थोड़ी सी मिट्टी उन्हें कष्ट पहुँचाती है, और अगर वे उसके नीचे गाड़ दिये जायें तो मर जायें, और अगर उन्हें उस से (उदाहरण के तौर पर ठीकरी से) मारा जाये तो घायल हो जायें या मर जायें, तो इसी प्रकार इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जिन्नात आग से पैदा किये गये हैं और जहन्नम की आग से उन्हें दंडित किया जाये।
जिन्नात आग से पैदा किये गये हैं, किन्तु इस समय वे आग नहीं हैं, इसके बहुत से प्रमाण हैं, जिन में से कुछ यह हैं:
1- आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे कि आप के पास शैतान आया, तो आप ने उसे पकड़ कर पछाड़ा और उसका गला घूँट दिया, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "यहाँ तक कि उसके ज़ुबान की ठंडक मैं ने अपने हाथ पर अनुभव किया, और अगर मेरे भाई सुलैमान अलैहिस्सलाम की दुआ रूकावट न होती तो वह बंधा हुआ होता ताकि लोग उसे देखें।" (इस हदीस को नसाई ने अस्सुनन अल-कुब्रा (6/442) में रिवायत किया है और इब्ने हिब्बान (6/115) ने सहीह कहा है)
2- अबुद्दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खड़े हुये तो हम ने आप को फरमाते हुये सुना : "मैं तुझ से अल्लाह की पनाह में आता हूँ", फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीन बार फरमाया कि : "मैं तुझ पर अल्लाह के अभिशाप के साथ शाप करता (ला'नत भेजता) हूँ", और आप ने अपना हाथ इस तरह फैलाया जैसे आप कोई चीज़ पकड़ रहे हों, जब आप नमाज़ से फारिग़ हुये तो हम ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हम ने आप को नमाज़ के अंदर एक ऐसी चीज़ कहते हुये सुना है जिसे हम ने इस से पहले आप को कहते हुये नहीं सुना, तथा हम ने आप को अपना हाथ फैलाते हुये देखा, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह का दुश्मन इब्लीस आग का एक अंगारा (शो'ला) लेकर आया ताकि उसे मेरे चेहरे पर फेंक दे तो मैं ने तीन बार कहा कि मैं तुझ से अल्लाह की पनाह में आता हूँ", फिर मैं ने कहा: "मैं तुझ पर अल्लाह की सम्पूर्ण ला'नत भेजता (शाप करता) हूँ, (तीन बार) पर वह पीछे नहीं हटा, तो मैं ने उसे पकड़ने का इरादा किया, और अल्लाह की क़सम! अगर हमारे भाई सुलैमान अलैहिस्सलाम की दुआ न होती तो सुबह वह बंधा हुआ होता मदीना के बच्चे उस से खेलते।" (मुस्लिम हदीस संख्या: 542)
इन दोनों हदीसों से हमारे लिये यह स्पष्ट हो गया कि इस समय जिन्नात आग नहीं हैं, इस पर यह बात तर्क है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शैतान की ज़ुबान की ठंडक का अनुभव किया, जैसाकि पहली हदीस में है, तथा अगर शैतान अपने आग होने की स्थिति पर बाक़ी होता तो उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चेहरे पर डालने के लिए आग का अंगारा लाने की आवश्यकता न पड़ती, और मदीना के बच्चे उस से खेलने पर सक्षम न होते।
3-इसी तरह इसके प्रमाणों में से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : "शैतान इंसान के शरीर में खून के समान दौड़ता है।" (बुखारी हदीस संख्या: 1933, मुस्लिम हदीस संख्या: 2175)
और यदि शैतान आग ही होता तो इंसान जल जाता ; क्योंकि शैतान उसके अंदर होता है, अत: शैतान के आग होने और उसके आग से पैदा होने के बीच अंतर स्पष्ट हो गया।
और यदि -मान लिया जाये कि- शैतान इस समय आग ही है और अल्लाह तआला उसे जहन्नम की आग से सज़ा देना चाहे, तो नि:सन्दे अल्लाह तआला हर चीज़ पर शक्तिवान और सक्षम है, अल्लाह सुब्हानहु व तआला को कोई चीज़ बेबस नहीं कर सकती।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है।