हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इसमें कोई बात नहीं है, परंतु बेहतर यह है कि आप रोज़ा न तोड़ें सिवाय इसके कि आवश्यक परिस्थिति आ जाए, और बाद में उस दिन की क़ज़ा करें। लेकिन यदि इंसान अपना रोज़ा मुकम्मल करने पर सक्षम है, तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है। किंतु अगर घटना उदाहरण के तौर पर दूर घटित हुई हो और गर्मी के मौसम में धूप बहुत तेज़ हो और आप किसी घायल के बचाव कार्य के लिए या आग बुझाने के लिए जाएं और प्यास महसूस करें और उससे आप को हानि पहुँचे तो इन शा अल्लाह रोज़ा तोड़ने में कोई हरज (गुनाह) की बात नहीं है। क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
فاتقوا الله ما استطعتم [التغابن : 16].
‘‘अतएव अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।’’ (सूरतुत्-तग़ाबुनः 16)
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
لا يكلف الله نفساً إلا وسعها [البقرة : 286]
‘‘अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं डालता।’’ (सूरतुल बक़राः 286)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ तो तुम अपनी शक्ति भर उसे करो।’’
और यह उस सूरत में है जब मामला यात्रा की सीमा तक न पहुँचा हो। परंतु अगर मामला यात्रा की सीमा तक पहुँच गया हो तो सामान्य रूप से रोज़ा तोड़ना जायज़ है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।