रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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क्या वह अपनी बच्ची के रोने के कारण जमाअत की नमाज़ तोड़ सकती है?

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प्रकाशन की तिथि : 01-12-2024

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प्रश्न

मैं मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ अदा कर रही थी कि मेरी बेटी रोने लगी। वह मस्जिद के बाहर थी और लोग उस को मेरे पास लेकर आाए। वह तेज़ आवाज़ से रो रही थी, इसलिए मैं अपनी नमाज़ तोड़ने पर मजबूर हो गई। मेरे इस कार्य का क्या हुक्म है? क्या मैं इस पर गुनाहगार हो गई? यह बात ज्ञात रहे कि महिलाओं के नमाज़ पढ़ने का स्थान पुरूषों के तुरन्त पीछे है। और हमारे और उन के बीच मात्र एक आड़ का अंतर है। यदि मैं नमाज़ को जारी रखती तो उसके रोने से नमाज़ियों को परेशानी (अशांति) हो सकती थी।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्वप्रथम :

विद्वानोंका की सर्व सहमतिहै कि बिना किसीशरई कारण के जान-बूझ़करफ़र्ज़ नमाज़ को उसेशुरू करने के बादतोड़ देना वर्जितहै।

जिनशरई कारणों कीबिना पर फ़र्ज़ नमाज़को तोड़ना जायज़है, उन मेंसे कुछ सुन्नतेनबविय्या में वर्णितहुए हैं। और उन्हींपर उस कारण को भीक़ियास किया जाएगाजो उनके समान हैया उनसे सर्वोचितहै।

नमाज़को – चाहे फर्ज़ होया नफ़्ल – तोड़नेको जायज़ ठहरानेवाले उन कारणोंमें से: साँप कोमारना, अपने धन के नष्टहोने का भय, या किसी परेशानहाल(संकट ग्रस्त) कीमदद करना, या किसी ड़ूबनेवाले को बचाना, या आग बुझ़ानेके लिए, या किसी असावधानव्यक्ति को किसीहानिकारक चीज़ सेसचेत करना।

इन कारणोंका प्रश्न संख्या (65682) और (3878) के उत्तरमें उल्लेख कियाजा चुका है।

दूसरा:

यदिबच्चा रोने लगेऔर उसके माता यापिता के लिए जमाअतकी नमाज़ में उसेखा़मोश कराना दुर्लभहो जाए : तो उन दोनोंके लिए उसे चुपकराने के लिए नमाज़को तोड़ना जायज़है। क्योंकि इसबात की आशंका हैकि उसका रोना उसेपहुँचने वाली किसीहानि के कारण हो; तथा इस बात का भीडर है कि दूसरेनमाज़ियों की नमाज़,उसके उनके लिएअशांति पैदा करनेकी वजह से, नष्टहो सकती है।

यदिमामूली कर्म केद्वारा क़िबला कीदिशा से विमुखहुए बिना उसे चुपकराना संभव है, तो औरत ऐसाकर सकती है और फिरवह अपनी नमाज़ मेंलौट आएगी, चुनाँचे – उदाहरण केतौर पर – वह अपनीनमाज़ को तोड़े बिनाउसे उठाने के लिएपीछे लौट सकतीहै। लेकिन अगरवह संपूर्ण रूपसे नमाज़ तोड़े बिनाउसे खामोश करानेमें सक्षम न होसके तो वह ऐसा करसकती है (अर्थातनमाज़ तोड़ सकतीहै) और इन शा अल्लाहऐसा करने में उसकेऊपर कोई हानि (पाप)नहीं है।

‘‘मतालिबऊलिन्नुहा’’ (1/641) में आया हैकि :

“यदि कुछमुक़्तदियों कोनमाज़ के दौरानकोई ऐसी चीज़ पेशआ जाए जो उसके लिएनमाज़ से बाहर निकलनेकी अपेक्षा करतीहो जैसेकि किसीबच्चे के रोनेकी आवाज़ सुनना, तो इमाम केलिए नमाज़ को हल्कीकरना सुन्नत कातरीक़ा है, क्योंकि अल्लाहके नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमका फ़रमान हैकिः ”मैं नमाज़ मेंखड़ा होता हूँ,और मैं नमाज़ लम्बीकरना चाहता हूँ,तो बच्चे के रोनेकी आवाज़ सुनताहूँ, तो इस डर सेनमाज़ को हल्कीकर देता हूँकि कहीं बच्चेकी माँ को कष्टऔर कठिनाई मेंन डाल दूँ।”इसे अबू दाऊद नेरिवायत किया है।” अन्त हुआ।

फतावास्थायी समिति केविद्वानों से प्रश्नकिया गया कि :

जब नमाजी़अपनी ओर किसी जानवरजैसे : बिच्छू औरउसके अलावा अन्यज़हरीले जानवर कोआता देखे, तो क्यावह अपनी नमाज़ तोड़सकता है? इसी प्रकारक्या हरम में नमाज़अदा करते समय नमाज़तोड़ना जायज़ हैताकि वह अपने उसबच्चे या बच्चीको पकड़ सके जो उससेगुम हो जाने केक़रीब हो?

तो समितिके विद्वानों नेउत्तर दिया :

”यदिउसके लिए नमाज़तोड़े बिना बिच्छूआदि से छुटकारापाना आसान है, तो वह नमाज़नहीं तोड़ेगा, अन्यथा वहउसे समाप्त करसकता है। और यहीपरिस्थिति उसकेबच्चे के बारेमें भी है यदि उसकेलिए नमाज़ तोड़ेबिना अपने बच्चेकी देखभाल करनाआसान है तो वह ऐसाही करेगा, अन्यथा वहनमाज़ तोड़ देगा।’’ अन्त हुआ।

इफ्ताऔर वैज्ञानिक अनुसंधानकी स्थायी समितिका फतावा (8/36-37)

तथाप्रश्न संख्या(26230) का भी उत्तर देखें।

और अल्लाहतआला ही सबसे अधिकज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर