शनिवार 22 जुमादा-1 1446 - 23 नवंबर 2024
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ऐसे कपड़े बेचने का हुक्म जिनके बारे में ज्ञात न हो कि उनका प्रयोग ह़लाल अथवा ह़राम में किया जाएगाॽ

प्रश्न

मेरे पास कई व्यापारिक केंद्रों में पुरुषों एवं महिलाओं के कपड़े बेचने वाली कई दुकानें हैं। मैंने उन स्थितियों के बारे में पढ़ा है जिनमें महिलाओं के कपड़े बेचने की अनुमति है। इन कपड़ों को बेचने की अनुमति नहीं है यदि व्यापारी को पता है कि जो उन्हें खरीद रहा है वह उनका उपयोग उन चीज़ों में करेगा जो अल्लाह ने हराम किया है। लेकिन सवाल यह है कि एक व्यापारी या कर्मचारी को कैसे पता चलेगा कि ख़रीदार उनका उपयोग अल्लाह के हराम किए हुए कामों में करेगाॽ क्योंकि विक्रेता ऐसी स्थिति में होता है कि उसे ज्ञात नहीं हो पाता कि ख़रीदार उसका उपयोग किस चीज़ में करेगाॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

महिलाओं के कपड़े जिन्हें व्यापारी अपनी दुकानों में बेचते हैं, वे निम्नलिखित तीन स्थितियों से खाली नहीं होते :

प्रथम स्थिति :

कपड़ा बेचने वाले को मालूम हो या उसे प्रबल गुमान हो कि उन कपड़ों का उपयोग जायज़ तरीक़े से किया जाएगा और कदापि निषिद्ध तरीक़े से नहीं किया जाएगा, तो उन कपड़ों को बेचने में कोई हर्ज नहीं है।

दूसरी स्थिति :

कपड़ा बेचने वाले को मालूम हो या उसे प्रबल गुमान हो कि इन कपड़ों का उपयोग ह़राम तरीक़े से किया जाएगा, अर्थात् महिला इसे पहनकर अजनबी (जिनसे पर्दा करना अनिवार्य है।) पुरुषों के सामने अपना शृंगार दिखाएगी तो इन कपड़ों को बेचना ह़राम है। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फ़रमान है :

وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الإثْمِ وَالْعُدْوَانِ

المائدة/2

“तथा पाप और अत्याचार में एक दूसरे की सहायता न करो।” [अल-माइदा : 2]

कपड़ा बेचने वाला व्यक्ति कपड़ों के प्रकार और उन्हें खरीदने वाली महिला की स्थिति से इसका पता लगा सकता है।

अतः कुछ प्रकार के कपड़े ऐसे होते हैं जिनके बारे में रीति-रिवाज से यह पता चलता है कि एक महिला, चाहे वह कितनी ही बेपर्दा क्यों न हो, उन्हें केवल अपने पति ही के लिए पहनेगी और वह उन्हें पहन कर किसी भी अजनबी पुरुष के सामने बाहर नहीं जा सकती। ऐसे ही कुछ कपड़े ऐसे होते हैं जिनके बारे में विक्रेता को प्रबल गुमान होता है – और कभी-कभी यक़ीन होता है - कि खरीदने वाली महिला उन्हें ह़राम तरीक़े से उपयोग करेगी।

इसलिए विक्रेता को खरीदने वाली महिला की स्थिति से जो ज्ञात हो या ब्रबल गुमान हो, उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।

कभी कपड़े ऐसे होते हैं जिनका उपयोग अनुमेय तरीक़े से या निषिद्ध तरीक़े से किया जा सकता है। लेकिन हिजाब पहनने के प्रति महिलाओं की प्रतिबद्धता अथवा राज्य द्वारा हिजाब पहनने की बाध्यता उन्हें उन कपड़ों को ह़राम तरीक़े से उपयोग करने से रोकती है। इसलिए ऐसी स्थिति में इस प्रकार के कपड़े बेचने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।

तीसरी स्थिति :

विक्रेता इस बात को लेकर संदेह और संकोच में पड़ा हो कि इन कपड़ों का उपयोग अनुमेय तरीक़े से किया जाएगा या हराम तरीक़े से, क्योंकि उन कपड़ों का उपयोग दोनों तरीक़ों से किया जा सकता है और दोनों संभावनाओं में से किसी एक संभावना को प्रबल करने के लिए कोई संकेत नहीं है, तो इन कपड़ों को बेचने में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि मूल सिद्धांत यह है कि इसे बेचना जायज़ है, हराम नहीं है। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फ़रमान हैं :

وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ

البقرة/275

“अल्लाह ने क्रय-विक्रय को ह़लाल किया है।” [अल-बक़रह : 275]

तथा इन कपड़ों के खरीदने वालों को चाहिए कि वे इनका उपयोग उस चीज़ में करें जिसे अल्लाह ने हलाल ठहराया है, तथा उनके लिए इन्हें ह़राम तरीक़े से उपयोग करना जायज़ नहीं है।

ये कुछ विद्वानों के फतवे हैं जो ऊपर वर्णन की गई बातों का समर्थन करते हैं :

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से यह प्रश्न किया गया :

महिलाओं के आभूषण का व्यापार करने और उन्हें किसी ऐसी महिला से बेचने का क्या हुक्म है, जिसके बारे में विक्रेता को मालूम है कि वह उन्हें गली-सड़कों पर अजनबी अर्थात् गैर-महरम पुरुषों के सामने शृंगार-प्रदर्शन के रूप में पहनेगी। जैसा कि वह अपने सामने ही उसकी स्थिति से देख सकता है, और जैसा कि कुछ देशों में यह स्थिति आम हो चुकी हैॽ

तो स्थायी समिति के विद्वानों ने उत्तर दिया :

“यदि व्यापारी को यह मालूम हो कि खरीदार उसका उपयोग अल्लाह के हराम किए हुए काम में करेगा तो उसके लिए इन वस्तुओं को बेचना जायज़ नहीं है; क्योंकि इसमें पाप और सरकशी में सहयोग करना शामिल है। लेकिन यदि विक्रेता को यह मालूम है कि खरीदने वाली महिला उससे अपने पति के लिए शृंगार करेगी, या उसे (ख़रीदार के बारे में) किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं है, तो उसके लिए इन चीज़ों का व्यापार करना जायज़ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फतावा अल-लजना अद-दाइमह लिल-बुहूस अल-इ़लमिय्यह वल-इफ़्ता” (13/67)

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से यह प्रश्न भी किया गया :

“महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन बेचने का क्या हुक्म हैॽ यह जानते हुए कि इनका उपयोग करने वालों में से अधिकांश अनैतिक कार्य करने वाली बेपर्दा महिलाएँ होती हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करने वाली होती हैं, और इन चीजों का उपयोग अपने पतियों के अलावा अन्य लोगों के लिए शृंगार-प्रदर्शन के रूप में करती हैं। हम इससे अल्लाह की पनाह चाहते हैं।

तो स्थायी समिति के विद्वानों ने उत्तर दिया :

“यदि मामला ऐसा ही है जैसा बताया गया है, तो उसके लिए उन्हें बेचना जायज़ नहीं है, यदि वह उनकी स्थिति जानता है; क्योंकि यह पाप और अत्याचार में सहयोग करना है। जबकि अल्लाह तआ़ला ने अपने इस फ़रमान द्वारा इससे रोका है :

وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الإثْمِ وَالْعُدْوَانِ

المائدة/2

“तथा पाप और अत्याचार में एक दूसरे की सहायता न करो।” [अल-मायदा : 2]” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फतावा अल-लजना अद-दाइमह लिल-बुहूस अल-इ़लमिय्यह वल-इफ़्ता” (13/105)

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से यह प्रश्न भी किया गया :

“महिलाओं की सभी प्रकार की टाइट पैंट बेचने का क्या हुक्म है, और जिन्हें जींस और स्ट्रेच पैंट कहा जाता है, इसके अलावा पैंट सूट के सेट का क्या हुक्म है जिसमें पैंट और ब्लाउज़ शामिल होता हैॽ तथा महिलाओं के ऊँची एड़ी के जूते बेचने, तथा विभिन्न प्रकार और रंगों के हेयर डाई बेचने का क्या हुक्म, विशेष रूप से महिलाओं के, ऐसे ही महिलाओ के पारदर्शी कपड़े, या तथाकथित शिफॉन से बने कपड़े, और आधी बाजू वाली महिलाओं की पोशाकें, और छोटी पोशाकें तथा महिलाओं की छोटी स्कर्ट्स इत्यादि बेचने का क्या हुक्म हैॽ

स्थायी समिति के विद्वानों ने उत्तर दिया :

''हर वह चीज़ जिसका उपयोग हराम तरीक़े से किया जाएगा, या जिसके बारे में ऐसा किए जाने की प्रबल संभावना है; तो उसे बनाना, उसका आयात करना, उसे बेचना और मुसलमानों के बीच उसका प्रचार करना ह़राम है। उसी में से वह सब भी है जिसका आज-कल बहुत-सी महिलाएँ शिकार हैं - अल्लाह उन्हें सही रास्ते पर लाए - : पारदर्शी, चुस्त और छोटे कपड़े पहनना, और इन सब में शामिल है : अजनबी (गैर-महरम) पुरुषों के सामने अपने आकर्षण और शृंगार का प्रदर्शन करना तथा अपने अंगों का आकार दिखाना। शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं : "हर वह लिबास जिसके बारे में प्रबल संभावना है कि उसका इस्तेमाल पाप करने में मदद के लिए किया जाएगा, तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति के लिए बेचना और सिलना जायज़ नहीं है जो उसका उपयोग पाप और अन्याय करने में मदद हासिल करने के लिए करता है। यही कारण है कि किसी ऐसे व्यक्ति को रोटी और मांस बेचना मकरूह है जिसके बारे में मालूम हो कि वह उनके साथ शराब पिएगा तथा किसी ऐसे व्यक्ति से सुगंधित हर्बल औषधि बेचना भी "मकरूह" है जिसके बारे में पता हो कि वह इनके उपयोग से शराब एवं अनैतिक कार्य के लिए मदद हासिल करेगा। यही बात किसी भी अनुमेय चीज़ पर लागू होगी यदि आप जानते हैं कि उसका उपयोग पाप करने में मदद के लिए किया जाएगा।”

अतः प्रत्येक मुस्लिम व्यापारी को सर्वशक्तिमान अल्लाह से डरना चाहिए और अपने मुस्लिम भाइयों के प्रति शुभचिंतक होना चाहिए। इसलिए वह केवल वही बनाए या बेचे जो उनके लिए बेहतर और लाभदायक हो और जो उनके लिए बुरा और हानिकारक हो उसे छोड़ दे। जो चीज़ें ह़लाल हैं वे काफी एवं पर्याप्त हैं, उनके होते हुए ह़राम चीज़ों की ज़रूरत नहीं रह जाती है। अल्लाह ने फ़रमाया :

وَمَنْ يَتَّقِ اللَّهَ يَجْعَلْ لَهُ مَخْرَجاً وَيَرْزُقْهُ مِنْ حَيْثُ لا يَحْتَسِبُ

الطلاق/2،3

“और जो अल्लाह से डरेगा, वह उसके लिए निकलने का कोई रास्ता बना देगा। और उसे वहाँ से रोज़ी देगा जहाँ से वह गुमान नहीं करता।” [अत-त़लाक़ : 2-3]

मुस्लिम भाइयों के प्रति शुभचिंतक होना ईमान की अपेक्षा है। अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया :

وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۚ يَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ

التوبة/71

“तथा ईमान वाले मर्द और ईमान वाली औरतें एक-दूसरे के दोस्त हैं, वे भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से मना करते हैं।” [अत-तौबा : 71]

और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :

“धर्म शुभचिंता का नाम है।” पूछा गया : किसके लिए, ऐ अल्लाह के रसूलॽ आपने फ़रमाया : “अल्लाह के लिए, उसकी किताब के लिए, उसके रसूल के लिए, मुसलमानों के इमामों के लिए और आम मुसलमानों के लिए।” (इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में रिवायत किया है।)

तथा जरीर बिन अब्दुल्लाह अल-बजली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नमाज़ स्थापित करने, ज़कात अदा करने और तमाम मुसलमानों के लिए भलाई चाहने के प्रति निष्ठा की शपथ ली।” [बुख़ारी एवं मुस्लिम]

शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने ऊपर जो यह बात कही है : “यही कारण है कि किसी ऐसे व्यक्ति को रोटी और मांस बेचना "मकरूह" है जिसके बारे में मालूम हो कि वह उनके साथ शराब पिएगा...” इसमें मकरूह से अभिप्राय “मकरूह तहरीमी” है, जैसा कि यह अन्य स्थानों पर उनके फतवों से ज्ञात होता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फतावा अल-लजनह अद-दाइमह लिल-बुहूस अल-इ़लमिय्यह वल-इफ़्ता” (13/109)

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर