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काफिर का अंतिम संस्कार करना

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प्रकाशन की तिथि : 10-12-2012

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प्रश्न

प्रश्न : काफिरों के क्रिया कर्म में उपस्थित होने का बारे में अल्लाह का हुक्म क्या है, जो कि एक राजनीतिक परंपरा और सर्वसम्मत रिवाज बन गया है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यदि काफिरों में से ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने मृतकों के क्रिया कर्म कर सकते हैं तो मुसलमानों के लिए उनका क्रिया कर्म करने की अनुमति नहीं है, तथा उनके लिए काफिरों के क्रिया कर्म में भाग लेने और उसमें उनका सहयोग करने, या राजनीतिक परंपरा का पालन करते हुए सद्व्यवहार दिखाने के तौर पर उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इस तरह की चीज़ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम या खुलफाये-राशिदीन (मार्गदर्शन-प्राप्त उत्तराधिकारियों) से प्रमाणित नहीं है, बल्कि अल्लाह ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अब्दुल्लाह बिन उबै बिन सलूल की क़ब्र पर खड़ा होने से मना कर दिया और इसका कारण उसका कुफ्र बयान किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया :

ولا تصل على أحد منهم مات أبداً ولا تقم على قبره إنهم كفروا بالله ورسوله وماتوا وهم فاسقون [التوبة : 84]

“और इन में से कोई मर जाए तो आप उस पर कभी भी जनाज़ा न पढ़ें और न ही उसकी क़ब्र पर खड़े हों, ये अल्लाह और उसके रसूल के इन्कार करने वाले हैं और मरते दम तक फासिक़ ही रहे हैं।” (सूरतुत तौबा : 84)

परंतु यदि उनमें से कोई व्यक्ति नहीं है जो उसे दफना सके तो मुसलमान लोग उसे दफनायें गे, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बद्र की लड़ाई में मारे गये लोगों के साथ, और अपने चचा अबू तालिब के साथ किया था, जब उनकी मृत्यु हुई तो आप ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : “जाओ और उसे पाट दो।”

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, आपकी संतान और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

स्रोत: इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति 9/10