रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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नवजात शिशु के स्वागत के लिए इस्लामी प्रक्रिया

प्रश्न

एक या दो दिन बाद आने वाले नवजात शिशु के स्वागत के लिए मुझे क्या करना चाहिए या मुझे क्या तैयारी करनी चाहिएॽ क्या कोई सुन्नत है जिसका मुझे पालन करना चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तरः

हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह आनेवाले नवजात शिशु में आप को बरकत प्रदान करे तथा उसे सदाचारी और धार्मिक लोगों में से बनाये ताकि आप के अच्छे कार्यों में उस की गिनती हो। क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह कथन वर्णित हैः ''जब इब्ने आदम (इंसान) का निधन हो जाता है तो उसके कार्य का क्रम रुक जाता है, सिवाय तीन चीज़ों केः सदक़ा जारिया (जारी रहने वाला दान), या ऐसा ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाए, या नेक बेटा जो उसके लिए दुआ करे।'' इसे मुस्लिम (हजीस संख्याः 1631) ने रिवयात किया है।

दूसराः

जहाँ तक हम जानते हैं, एक या दो दिन अथवा उस से कम या अधिक समय पूर्व नवजात शिशु का स्वागत करने के लिए शरीअत द्वारा निर्धारित कोई ऐसी कार्रवाई (प्रक्रिया) नहीं है जिसकी आप तैयारी करें। हाँ पर आप सामान्यअच्छी दुआऐं कर सकते हैं जैसे शिशु की सुरक्षा, उसके कल्याण तथा मार्गदर्शन इत्यादि की प्रार्थना करें।

अल्लाह तआला ने अपनी किताब में नेक औरत, इम्रान की पत्नी की दुआओं का उल्लेख किया है :

 إِذْ قَالَتِ امْرَأَةُ عِمْرَانَ رَبِّ إِنِّي نَذَرْتُ لَكَ مَا فِي بَطْنِي مُحَرَّرًا فَتَقَبَّلْ مِنِّي إِنَّكَ أَنْتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ إِنِّي وَضَعْتُهَا أُنْثَى وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ وَلَيْسَ الذَّكَرُ كَالْأُنْثَى وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وَإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ   [سورة آل عمران : 35-36)

और उस समय को याद करो, "जब इम्रान की पत्नी ने कहाः ऐ मेरे पालनहार, जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से आज़ादकर भेंट स्वरूप तुझे अर्पित किया।अत: तू मुझ से स्वीकार कर, निःसन्देह तू सुनने वाला जानने वाला है। फिर जब उसने उसे जन्म दिया तो कहा ऐ मेरे पालनहार मैंने तो बेटी जन्म दिया है और अल्लाह भली-भाँति जानता है कि उसने क्या जन्म दिया है, और लड़का लड़की की तरह नहीं होता। और मैंने उसका नाम मरियम रखा है और मैं इसको और इसकी सन्तान को फटकारे हुए शैतान से तेरी शरण में देती हूँ।" (सूरत आल-इमरानः 35-36)

बच्चे के जन्म दिन पर और उसके बाद क्या किया जाना चाहिए उसकी एक रूपरेखा इस प्रकार है:

1- नवजात शिशु की तहनीक करना तथा उस के लिए दुआ करना ऐच्छिक है

अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैः मेरे यहाँ एक बच्चा पैदा हुआ तो मैं उसे लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया तो आप ने उस का नाम इब्राहीम रखा और खजूर से उसका तहनीक किया (चबाकर खिलाया) और उस के लिए बरकत की दुआ की, फिर उसे मेरे हवाले कर दिया।''इसे बुखारी (हदीस संख्याः 5150) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 2145) ने रिवायत किया है।

तहनीक : बच्चे के पैदा होते ही उसके मुँह में कोई मीठा वस्तु जैसे खजूर या शहद डालने को तहनीक कहते हैं।

2- पहले दिन या सातवें दिन नवजात शिशु का नाम रखना जायज़ है

- अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "आज रात मेरे यहाँ एक बच्चे का जन्म हुआ तो मैंने उस का नाम अपने पिता इब्राहीम के नाम पर (इब्राहीम) रखा है .." इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 3126) ने रिवायत किया है।

- आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं किः ''पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा का सातवें दिन अक़ीक़ा किया और उनका नाम रखा।'' इसे इब्न हिब्बान (12/127) और हाकिम (4/264) ने रिवायत किया है। और हाफिज़ इब्न हजर ने फतहुल्बारी (9/589) में इस हदीस को सहीह कहा है।

3- अक़ीक़ा और खतना

(क)- सलमान बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "बच्चे के लिए अक़ीक़ा है। अतः उसकी तरफ से खून बहाओ तथा उससे गन्दगी को दूर करो।" इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 1515), नसाई (हदीस संख्याः 4214), अबू दाऊद (हदीस संख्याः 2839) और इब्ने माजा (हदीस संख्याः 3164) ने रिवायत किया है। इमाम अल्बानी ने इस हदीस कोइर्वाउल-ग़लील (4/396 ) में सहीह कहा है ।

(ख)- समुरह बिन जुनदुब रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः

''हर बच्चा अपने अक़ीक़ा का बंधक होता है, जिसे उसके जन्म के सातवें दिन ज़ब्ह किया जायेगा, उसका नाम रखा जायेगा और उसका सिर मूँडा जायेगा।'' इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1522), नसाई ( हदीस संख्या : 4220), अबूदऊद ( हदीस संख्या : 2838) ने रिवायत किया है। इमाम अल्बानी ने इर्वाउल-ग़लील (4/385) में इसे सहीह कहा है।

इमाम इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह का कहना है जिसका सारांश यह है किः

अक़ीक़ा के लाभों में सेः यह है कि यह एक बलिदान है जिसे नवजात शिशु की ओर से उसके संसार में आते ही भेंट किया जाता है ...

उसके लाभों में सेः एक यह है कि वह नवजात शिशु के बंधन को खोल देता है ताकि वह अपने माता-पिता के लिए सिफारिश करे, क्योंकि वह अपने अक़ीक़ा का बंधक होता है ।

उसके लाभों में से हैः यह भी है कि वह एक फिद्या (फिरौती) है जिसके द्वारा नवजात को छुड़ाया जाता है जैसे अल्लाह ने इस्माईल अलैहिस्सलाम को मेंढे के फिद्या द्वारा छुड़ाया।

''तोहफतुल-मौलूद'' (पृष्ठः 69).

शायद अक़ीक़ा का एक अन्य लाभ रिश्तेदारों और दोस्तों का भोज (दावत) में इकट्ठा होना भी है।

(ग)- खतना कराना प्राकृतिक सुन्नतों (पैगंबरों की सुन्नतों) में से है। यह बच्चे के लिए अनिवार्य है क्योंकि इस का संबंध त़हारत (पवित्रता) से भी होता है जो नमाज़ के सही होने के लिए शर्त है।

अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है किः पाँच चीज़ें प्राकृतिक सुन्नतों में से हैः खतना करना, नाफ के नीचे के बाल काटना, बगल के बाल उखाड़ना, नाखून काटना, मूंछें कतरना।'' इसे बुखारी (हदीस संख्याः 5550)और मुस्लिम (हदीस संख्याः 257) ने रिवायत किया है।

तीसराः

इस्लामी विद्वानों नें नवजात के दाहिने कान में अज़ान देने को सुन्नत कहा है। ताकि इस संसार में जब उसके कान खुलें तो सब से पहले तौहीद का कलिमा सुनें। इसका बच्चे पर एक महान और धन्य प्रभाव पड़ेगा।परन्तु बायें कान में इक़ामत का सबूत नहीं है। देखिएः अस्सिल्सिलतुज़्ज़ईफा (1/491).

चौथाः

नवजात के बाल मूंडना और उस के बाद सिर पर ज़ाफरान (केसर) लगाना, इस में बहुत चिकित्सा लाभ है। फिर बालों के वज़न बराबर सोना अथवा चाँदी दान करना धर्मसंगत है। मूँडे गए बालों को वज़न करना शर्त नहीं है। यदि यह कठिन है तो बालों के वज़न के बराबर जो सोना या चाँदी है उसकी क़ीमत का नकद मुद्रा से अनुमान लगाना काफी है। फिर उस राशि को धर्मार्थ कारणों में दान कर दिया जाए।

हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारी और हमारे बच्चों की हर तरह की बुराई से रक्षा करे और हमें उनके प्रति इस दुनिया में और परलोक में कुशल मंगल रखे। तथा अल्लाह हमारे पैगंबर मुहम्मद पर दया अवतरित करे।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद