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राजेह कथन (सही राय) के अनुसार (एक ही बार में) तीन तलाक़ एक ही शुमार होगी

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प्रकाशन की तिथि : 08-11-2016

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प्रश्न

मेरे एक मित्र ने अपनी पत्नी को क्रोध (गुस्से) की स्थिति में तलाक़ दे दी। उसने एक ही बार में उसे तीन तलाक़ दी है। मैं ने इन्टरनेट पर पढ़ा है कि तीन तलाक़ें एक ही मानी जोएंगी, तो क्या यह बात सही है? तथा मैं ने पढ़ा है कि क्रोध के तीन प्रकार हैं, तो क्या यह बात भी सही है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

तीन तलाक़ के विषय में विद्वानों का मतभेद है, और राजेह (सही राय) यही है कि वह एक ही मानी जाएगी, चाहे उसने तीन तलाक़ एक ही शब्द में बोला हो, जैसे कि उसने यह कहा हो कि : ''तुझे तीन तलाक़ है'', या उसने उन्हें तीन विभिन्न शब्दों में बोला हो, जैसे कि उसने इस तरह कहा हो : ''तुझे तलाक़ है, तुझे तलाक़ है, तुझे तलाक़ है''। शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने इसी मत को अपनाया है, तथा शैख सादी रहिमहुल्लाह और शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने इसी को राजेह क़रार दिया है।

इन लोगों ने उस हदीस से दलील पकड़ी है जिसे इमाम मुस्लिम (हदीस संख्याः 1472) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है, वह कहते हैं : (अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) के समय काल में, तथा उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की खिलाफत (उत्तराधिकार) के पहले दो वर्षों में तीन तलाक़ एक मानी जाती थी। तो उमर बिन ख़त्ताब ने कहा कि लोगों ने एक ऐसे विषय में जल्दबाज़ी से काम लिया है जिस में उनके लिए विस्तार था, अतः यदि हम उसे उन पर लागू कर दें। चुनाँचे उन्होंने उसे उन पर लागू कर दिया।)

दूसरा :

क्रोध की अवस्था में तलाक़ देनेवाले की तीन हालतें हैं :

1- यदि उसका क्रोध हल्का है, इस प्रकार कि वह उसकी इच्छा और पसंद को प्रभावित नहीं करता है तो उसकी तलाक़ सही होगी और मानी जाएगी।

2- यदि उसका क्रोध इतना तीव्र है कि उसे पता ही नहीं होता कि वह क्या कह रहा है और न उसे इसका एहसास होता है। तो उसकी दी हुई तलाक़ नहीं पड़ेगी। क्योंकि वह पागल व्यक्ति के समान है जिसकी बातों पर उसकी पकड़ नहीं होती है।

गुस्से (क्रोध) की इन दोनों हालतों के हुक्म के विषय में उलमा के मध्य कोई मतभेद नहीं है। गुस्से और क्रोध की एक तीसरी हालत बाक़ी रह गई और वह यह हैः

3- ऐसा तीव्र क्रोध जो आदमी के इरादे को प्रभावित करता है और उसके लिए इस प्रकार की बातें करने का कारण बनता है कि मानो वह ऐसा कहने के लिए मजबूर और विवश है, फिर वह शीघ्र ही मात्र क्रोध समाप्त होते ही पश्चाताप करता है। परंतु वह क्रोध समझबूझ को खत्म करने और शब्दों व कार्यों को नियंत्रित न कर पाने की सीमा तक नहीं पहुँचता है। तो इस प्रकार के क्रोध के हुक्म के बारे में उलमा का मतभेद है। मगर राजेह (सही राय) यही है - जैसा कि शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा है - कि यह तलाक़ भी नहीं पड़ेगी। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''इग़लाक़ (विवशता) की स्थिति में न तो तलाक़ है और न तो दासता से मुक्ति।'' इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2046) ने रिवायत किया है, और शैख अल्बानी ने ''इर्वाउल-गलील'' (हदीस संख्या : 2047) में इसे सहीह क़रार दिया है। ''इग़लाक़'' की व्याख्या उलमा ने मजबूरी और तीव्र क्रोध से की है।

इसी कथन को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह और उनके शिष्य इब्ने क़ैयिम ने अपनाया है, और इब्नुल क़ैयिम ने इस विषय में एक प्रसिद्ध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम ''इग़ासतुल-लह्फान फी हुक्म तलाक़िल-ग़ज़बान'' है।

तथा प्रश्न संख्या (45174 ) का उत्तर देखें।

इस कथन के आधार पर, यदि आपके मित्र ने तीव्र क्रोध की स्थिति में तलाक़ का शब्द बोला है, तो यह तलाक़ नहीं पड़ेगी, और यदि उसका क्रोध हल्का था तो एक तलाक़ पड़ जाएगी।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर