शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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रोज़े की वैधता की हिकमत

प्रश्न

रोज़े की वैधता की हिकमत (तत्वदर्शिता) क्या हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सबसे पहले, हमें यह पता होना चाहिए कि अल्लाह के सबसे खूबसूरत नामों में से एक 'अल-हकीम' (सबसे बुद्धिमान) है। 'हकीम' शब्द 'हुक्म' और 'हिक्मत' से लिया गया है।

अतः अकेले अल्लाह तआला ही के लिए हुक्म है, और उसके अहकाम (निर्णय) अत्यंत हिकमत वाले, परिपूर्ण और सटीक हैं।

दूसरा :

अल्लाह तआला ने जो भी हुक्म (विधान) निर्धारित किया है, उसमें उसकी बहुत बड़ी हिकमतें हैं, जिन्हें हम कभी जानते हैं, तथा कभी हमारे दिमाग वहाँ तक नहीं पहुँचते हैं। तथा कभी हम उनमें से कुछ को जानते हैं, जबकि उनमें से बहुत कुछ हमसे छिपा रहता है।

तीसरा :

अल्लाह तआला ने रोज़े की वैधता और हम पर उसे अनिवार्य करने के पीछे की हिकमत का उल्लेख अपने इस कथन में किया है :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمْ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

البقرة / 183

“ऐ ईमान वालो! तुमपर रोज़ा रखना फ़र्ज़ (अनिवार्य) कर दिया गया है, जैसे उन लोगों पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) किया गया जो तुमसे पहले थे, ताकि तुम मुत्तक़ी (परहेज़गार) बन जाओ।” (सूरतुल-बक़रह :183)

रोज़ा रखना तक़वा हासिल करने का एक ज़रिया है, और तक़वा का मतलब है अल्लाह ने जो हुक्म दिया है उसे करना और जिस चीज़ से मना किया है उसे छोड़ देना।

रोज़ा सबसे बड़ा साधन है जो एक व्यक्ति का धार्मिक आदेशों को पूरा करने में मदद करता है।

विद्वानों रहिमहुमुल्लाह ने रोज़े की वैधता की कुछ हिकमतों का उल्लेख किया है, जिनमें से सभी तक़वा (धर्मपरायणता) की विशेषताएँ हैं, लेकिन यहाँ उनका उल्लेख करने में कोई हर्ज नहीं है, ताकि रोज़ेदार को उनके बारे में पता चले और उन्हें प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहे।

रोज़े की हिकमतों में से कुछ ये हैं :

1 – रोज़ा नेमतों के प्रति आभार प्रकट करने का एक साधन है। क्योंकि रोज़ा का अर्थ है खाने, पीने और संभोग को त्याग करना, और यह सबसे बड़ी और उच्च नेमतों में से हैं। और समय की एक महत्वपूर्ण अवधि के लिए इसे त्याग देना इसके मूल्य (महत्व) की पहचान कराता है। क्योंकि नेमतें अज्ञात होती हैं (पहचानी नहीं जाती हैं), लेकिन जब वे खो जाती हैं, तो पहचानी जाने लगती हैं। इस तरह यह उसे उनके लिए आभारी होने के लिए प्रेरित करता है।

2- रोज़ा हराम चीज़ों को त्यागने का एक साधन है, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति अल्लाह को खुश करने के लिए और उसकी दर्दनाक यातना के डर से हलाल चीज़ों को छोड़ सकता है, तो अधिक योग्य है कि वह हराम चीज़ों से दूर रहे। अतः रोज़ा अल्लाह की हराम की हुई चीज़ों से बचने का एक कारण है।

3 - रोज़ा हमें वासना को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है, क्योंकि जब आत्मा तृप्त होती है तो वह वासनाओं की कामना करती है, लेकिन अगर वह भूखी होती है तो वह इच्छाओं से दूर रहती है। यही कारण है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ऐ नौजवानो! तुम में से जो कोई विवाह करने की क्षमता रखता है, वह विवाह करे, क्योंकि यह दृष्टि को नीची रखने और अपनी पवित्रता की रक्षा करने में अधिक प्रभावी है। तथा जो क्षमता न रखे, उसे रोज़ा रखना चाहिए ; क्योंकि यह उसके लिए ढाल है।”

4- रोज़ा दरिद्रों के प्रति दया और सहानुभूति की भावना पैदा करता है, क्योंकि रोज़ा रखने वाला जब कुछ समय के लिए भूख की पीड़ा का स्वाद चखता है, तो उसे उस व्यक्ति की याद आती है जिसकी हर समय यही हालत होती है। इसलिए वह उसपर दया करने में जल्दी करता है और उसके साथ भलाई का व्यवहार करता है। इसलिए रोज़ा गरीबों के साथ हमदर्दी करने का कारण है।

5- रोज़ा शैतान को वशीभूत और कमज़ोर कर देता है, इसलिए उसका मनुष्य को वसवसा में डालना कमज़ोर पड़ जाता है, जिसकी वजह से उससे पाप कम होता है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन के अनुसार, “शैतान मनुष्य के शरीर में रक्त की तरह दौड़ता है।” लेकिन रोज़ा रखने से शैतान के रास्ते संकुचित हो जाते हैं, इसलिए वह कमज़ोर हो जाता है और उसका प्रभाव कम हो जाता है।

शैखुल-इस्लाम ने “मजमूउल-फ़तावा” (25/246) में कहा :

“इसमें कोई संदेह नहीं है कि रक्त खाने और पीने से उत्पन्न होता है, और जब वह खाता है या पीता है, तो शैतानों के रास्ते – जो कि रक्त है - चौड़े हो जाते हैं। लेकिन यदि वह रोज़ा रखता है, तो शैतानों के रास्ते संकीर्ण हो जाते हैं। इसलिए दिल अच्छे कर्म करने और बुरे कामों को छोड़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

6 - रोज़ा रखने वाला अपने आप को अल्लाह के निरीक्षण पर प्रशिक्षित करता है। इसलिए वह अपने मन की इच्छा को छोड़ देता है, जबकि वह उसे करने में सक्षम होता है, क्योंकि वह जानता है कि अल्लाह उसे देख रहा है।

7 - रोज़े में इस संसार और उसकी इच्छाओं के प्रति अरूचि पैदा करना और सर्वशक्तिमान अल्लाह के पास जो कुछ है उसके प्रति रूचि पैदा करना शामिल है।

8- यह मुसलमान को बहुत अधिक इबादत के कार्य करने की आदत डालता है, क्योंकि रोज़ा रखने वाला आम तौर पर अधिक इबादत करता है, इसलिए उसकी (इबादत की) आदत पड़ जाती है।

ये रोज़े की वैधता की कुछ हिकमतें हैं। हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमें उन्हें प्राप्त करने का सामर्थ्य प्रदान करे और अपनी अच्छी तरह से इबादत करने में हमारी मदद करे।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

देखें : तफ़सीर अस-सा'दी (पृ. 116), अर-रौज़ अल-मुर्बे' पर हाशिया इब्न क़ासिम (3/344), अल-मौसूअह अल-फ़िक़हिय्यह (28/9)।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर