शुक्रवार 19 रमज़ान 1445 - 29 मार्च 2024
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जिन परिस्थितियों में क़िब्ला की ओर मुँह करने की शर्त समाप्त हो जाती है

प्रश्न

वे कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें हमारे लिए क़िब्ला की दिशा को बदलना संभव है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शायद प्रश्नकर्ता उन परिस्थितियों के बारे में जानना चाहता है जिनमें नमाज़ पढ़ते समय क़िबला की ओर मुंह करने की अनिवार्यता समाप्त हो जाती है और क़िबला के अलावा किसी अन्य दिशा की ओर नमाज़ सही हो जाती है।

“नमाज़ के सही होने की शर्तों में से एकः क़िब्ला की ओर मुँह करना है, और उसके बिना नमाज़ सही (मान्य) नहीं होती है, क्योंकि अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में इसका आदेश दिया है और बार-बार आदेश दिया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

  وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ

[البقرة: 144]

“और आप जहाँ से भी निकलें अपने चेहरे को अल-मस्जिदुल-हराम (मक्का में) की दिशा में फेर लें। और तुम लोग जहाँ भी रहो, अपने चेहरों को उसी दिशा में कर लो।” (सूरतुल बक़राः 144).

जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पहले पहल मदीना आए थे, तो आप बैतुल-मक़दिस (यरुशलम) की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ते थे। चुनांचे आप काबा को अपनी पीठ के पीछे और शाम को अपने चेहरे की दिशा में कर लेते थे। लेकिन उसके बाद आप यह उम्मीद लगाते थे कि अल्लाह तआला आपके लिए इसके विपरीत चीज़ निर्धारित कर दे। अतः आप अपना चेहरा आसमान की ओर उठाने लगे यह प्रतीक्षा करते हुए कि जिबरील आप पर क़िब्ला की ओर मुंह करने की वह्य लेकर कब उतरते हैं। जैसा कि अल्लाह का फरमान है :

  قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ

البقرة/144

"वास्तव में, हमने आपके चेहरे को आकाश की ओर उठते हुए देखा है। सो निश्चित रूप से, हम आपको एक क़िबला (प्रार्थना की दिशा) की ओर फेर देंगे जिसे आप पसंद करते हैं। इसलिए आप अपने चेहरे को अल-मस्जिदुल-हराम (मक्का) की दिशा में फेर लें।” (सूरतुल बक़राः 144).

इस आयत में अल्लाह तआला ने आपको अल-मस्जिदुल हराम की ओर अर्थात उसकी दिशा में मुंह करने का आदेश दिया है, लेकिन तीन मसायल (मुद्दे) इससे अपवाद रखते हैं :

पहला मुद्दाः यदि कोई व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ है, जैसे कि वह बीमार जिसका चेहरा क़िबला के अलावा किसी अन्य दिशा में है, और वह क़िबला की ओर मुंह करने में सक्षम नहीं है। तो ऐसी अवस्था में क़िबला की ओर मुंह करने की अनिवार्यता उससे समाप्त हो जाती है, क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

   فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُم

[التغابن:16]

‘‘अतएव तुम अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।’’ (सूरतुत्-तग़ाबुनः 16)

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

 لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْساً إِلا وُسْعَهَا

[البقرة: 286]

‘‘अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं डालता।’’ (सूरतुल बक़राः 286)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ तो तुम अपनी शक्ति भर उसे करो।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्याः 7288) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1337) ने रिवायत किया है।

दूसरा मुद्दाः यदि कोई व्यक्ति तीव्र भय की स्थिति में है, जैसे कि कोई मनुष्य दुश्मन से भाग रहा है, या जंगली जानवर से भाग रहा है, या ऐसे बाढ़ से भाग रहा है जो उसे डुबा सकता है। तो इस स्थिति में वह नमाज़ पढ़ेगा चाहे उसका चेहरा किसी भी दिशा में हो। इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह कथन है :

  فَإِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالاً أَوْ رُكْبَاناً فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ

[البقرة: 239]

“और यदि तुम्हें (दुश्मन का) डर है, तो पैदल या सवारी करके नमाज़ पढ़ो। फिर जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो अल्लाह को याद करो जिस तरह कि उसने तुम्हें उस चीज़ की शिक्षा दी है, जिसे तुम नहीं जानते थे।” (सूरतुल-बक़रा : 239)

क्योंकि अल्लाह का फरमानः "यदि तुम्हें डर है" का अर्थ सामान्य है जो किसी भी प्रकार के भय को शामिल है। और अल्लाह का फरमानः "फिर जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो अल्लाह को याद करो जिस तरह कि उसने तुम्हें उस चीज़ की शिक्षा दी है, जिसे तुम नहीं जानते थे।" इंगित करता है कि कोई भी ज़िक्र जिसे मनुष्य ने डर के कारण छोड़ दिया है, तो इस बारे में उसपर कोई भी आपत्ति नहीं है। और उसी में सेः क़िबला की ओर मुंह करना भी है।

इसी तरह ऊपर वर्णित दोनों आयतें और हदीसे नबवी जिसमें यह वर्णन किया गया है कि अनिवार्यता क्षमता पर लंबति है, इस बात को दर्शाती है।

तीसरा मुद्दाः यात्रा करते समय नफ़्ल (स्वेच्छिक) नमाज़ में, चाहे वह विमान पर हो, या कार में हो, या ऊंट के ऊपर हो, तो नफ़्ल नमाज़ में उसका चेहरा जिस तरफ़ भी हो वह नमाज़ पढ़ सकता है। जैसेः वित्र, रात की नमाज़, चाश्त की नमाज़ और इसके समान नमाज़ें।

यात्री के लिए उचित है कि वह निवासी व्यक्ति की तरह समस्त नफ़्ल नमाज़ों को अदा करे, सिवाय नियमित सुन्नतों के जैसे ज़ुहर, मग़रिब और इशा की नियमति सुन्नतें, क्योंकि इनके बारे में सुन्नत यह है कि उन्हें छोड़ दिया जाए।

चुनांचे यदि वह यात्रा करते समय नफ़्ल नमाज़ अदा करना चाहता है, तो वह नफ़्ल नमाज़ पढ़ सकता चाहे उसका मुंह किसी भी दिशा में हो। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम यही बात प्रमाणित है।

इस तरह ये तीन मसायल (मुद्दे) हैं जिनमें क़िबला की ओर मुंह करना अनिवार्य नहीं है।

जहाँ तक अज्ञानी (जाहिल) व्यक्ति का संबंध है, तो उस पर क़िबला की ओर मुंह करना अनिवार्य है। लेकिन अगर उसने इजतिहाद और कोशिश किया, फिर उसे पता चला कि उससे गलती हो गई है, तो उसके लिए नमाज़ दोहराना ज़रूरी नहीं है। हम यह नहीं कहते हैं किः उससे क़िबला की ओर मुंह करने की बाध्यता समाप्त हो जाएगी, बल्कि उसके लिए क़िबला की ओर मुंह करना और अपनी यथा शक्ति कोशिश करना ज़रूरी है। यदि उसने अपनी शक्ति के अनुसार कोशिश की फिर उसे गल्ती का पता चला तो वह अपनी नमाज़ को नहीं दोहराएगा। इस बात का प्रमाण यह है कि वे सहाबा जो इस बात से अनजान थे कि क़िबला को काबा की ओर बदल दिया गया है, एक दिन क़ुबा की मस्जिद में फज्र की नमाज़ अदा कर रहे थे, तो उनके पास एक आदमी आया और बताया : आज रात को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर कुरआन अवतरित हुआ है, और आपको काबा की ओर मुंह करने का आदेश दिया गया है। तो उन्होंने उसकी ओर मुंह कर लिया, उनके चेहरे शाम (बैतुल-मक़दिस) की ओर थे तो वे काबा की ओर घूम गए। इसे बुखारी (हदीस संख्याः 403) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 526) ने रिवायत किया है।

जबकि काबा उनके पीछे था उन्होंने उसे अपने सामने कर लिया। चुनाँचे वे घूम गए और अपनी नमाज़ को जारी रखा। यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में हुआ था, और आप ने इसका खण्डन नहीं किया। इसलिए यह धर्मसंगत हो गया। अर्थात यदि कोई व्यक्ति अज्ञानता के कारण क़िबला की दिशा के संबंध में गलती कर जाता है, तो उसके लिए नमाज़ को दोहराना अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर उसे इसका पता चल जाता है, भले ही वह नमाज़ के दरमियान हो, तो उसके लिए क़िबला की ओर मुंह करना अनिवार्य हो जाता है।

अतः क़िबला की ओर मुख करना नमाज़ की शर्तों में से एक शर्त है जिसके बिना नमाज़ सही (मान्य) नहीं होती है, सिवाय ऊपर वर्णित तीन मुद्दों के, तथा उस समय जब कोई व्यक्ति इजतिहाद और पूरी कोशिश के बाद भी गलती कर जाता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“मजमूओ फतावा इब्न उसैमीन” (12/433-435)

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर