सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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रमज़ान में रोज़ा तोड़ने को वैध ठहराने वाले उज़्र (कारण)

प्रश्न

वे कौन से उज़्र (कारण) हैं जो रमज़ान के महीने में रोज़ा तोड़ना वैध कर देते हैं ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला ने अपने बन्दों पर यह आसानी की है कि उसने रोज़ा को केवल उसी पर अनिवार्य किया है जो उसकी ताक़त रखता है। और जो व्यक्ति किसी शरई उज़्र (कारण) से रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखता है उसके लिए रोज़ा तोड़ देना वैध कर दिया है। वे शरई (धर्म संगत) कारण जो रोज़ा तोड़ना वैध कर देते हैं निम्न लिखित हैं :

सर्व प्रथम : बीमारी

हर वह कारण जिस से आदमी स्वास्थ्य की सीमा से बाहर निकल जाए उसे बीमारी कहते हैं। इब्ने क़ुदामा फरमाते हैं : विद्वानों ने सामान्य रूप से बीमार के लिए रोज़ा तोड़ने के जाइज़ होने पर इत्तिफाक़ किया है। और इस विषय में असल (प्रमाण) अल्लाह तआला का यह फरमान है :

وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة : 185]

"और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।" (सूरतुल बक़रा : 185)

तथा सलमा बिन अक्वा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा : जब यह आयत उतरी कि :

وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ [ البقرة : 185]

"और जो लोग इसकी ताक़त रखते हैं फिद्या में एक मिस्कीन को खाना दें।" (सूरतुल बक़रा : 184)

तो जो आदमी रोज़ा नहीं रखना चाहता था, वह रोज़ा तोड़ देता था और फिद्या देता था, यहाँ तक कि उसके बाद वाली आयत अर्थात अल्लाह तआला का यह फरमान अवतरित हुआ कि :

شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ , هُدًى لِلنَّاسِ , وَبَيِّنَاتٍ مِنْ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ , فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمْ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ , وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة: 185]

"रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुर्आन उतारा गया, जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है और जिसमें मार्गदर्शन की और सत्य तथा असत्य के बीच अंतर की निशानियाँ हैं। अत: तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे रोज़ा रखना चाहिए। और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।" (सूरतुल बक़रा : 185)

तो इस आयत ने पिछली आयत के हुक्म को मंसूख (रद्द, स्थगित) कर दिया।

अत: जो बीमार रोज़े के कारण अपनी बीमारी के बढ़ने या शिफायाबी (रोगनिवारण) के विलंब होने, या किसी अंग के नष्ट हो जाने का भय और खतरा अनुभव करता है, उसके लिए रोज़ा तोड़ना जाइज़ (वैध) है। बल्कि उसके लिए रोज़ा तोड़ना मस्नून (सुन्नत के अनुकूल) है, और रोज़ा पूरा करना घृणित (नापसंदीदा) है। क्योंकि यह उसके विनाश का कारण बन सकता है, इसलिए इस से बचना अनिवार्य है। फिर यह बात भी है कि सख्त बीमारी, बीमार आदमी के लिए रोज़ा तोड़न वैध कर देती है। किन्तु स्वस्थ आदमी यदि कष्ट या थकावट अनुभव करे, तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना जाइज़ नहीं है, यदि उसे रोज़े से मात्र सख्त थकावट ही होती है।

दूसरा : यात्रा

रोज़ा तोड़ने की रूख्सत प्रदान करने वाली यात्रा की निम्नलिखत शर्तें हैं :

(क) यात्रा इतनी लंबी हो जिसमें नमाज़ क़स्र (कम) करके पढ़ी जाती हो।

(ख) यात्री अपनी यात्रा के दौरान इक़ामत (निवास) का इरादा न करे।

(ग) जमहूर उलमा (विद्वानों की बहुमत) के निकट उसकी यात्रा अवज्ञा और पाप करने के लिए न हो, बल्कि किसी शुद्ध उद्देश्य के लिए हो। इसका तर्क यह है कि : रोज़ा तोड़ना एक रूख्सत (छूट) और आसानी है। अत: अपनी यात्रा के द्वारा अवज्ञा करने वाला उस छूट का हक़दार नहीं हो सकता। जैसेकि उसकी यात्रा किसी पाप पर आधारित हो, उदाहरण स्वरूप वह डाका डालने के लिए यात्रा करे।

(सफर की रूख्सत का समाप्त होना) : यात्रा की रूख्सत सर्वसहमति के साथ दो बातों से समाप्त हो जाती है :

प्रथम : जब यात्री अपने देश लौट आए और अपने वतन अर्थात निवास स्थान में प्रवेश कर जाए।

दूसरा : जब यात्री सामान्यत: निवास करने की नीयत कर ले। या किसी स्थान पर निवास की अवधि का इरादा कर ले और वह स्थान निवास के योग्य हो। तो वह इसके कारण मुक़ीम (निवासी) हो जायेगा। अत: वह नमाज़ पूरी पढ़ेगा, रमज़ान में रोज़ा रखेगा, रोज़ा नहीं तोड़ेगा ; क्योंकि यात्रा का हुक्म समाप्त हो गया।

तीसरा कारण : गर्भ और बच्चे को दूध पिलाना

फुक़हा (धर्म शास्त्री) इस बात पर एक मत हैं कि गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिला के लिए रमज़ान के महीने में रोज़ा तोड़ना जाइज़ है, इस शर्त के साथ कि उन दोनों को अपने ऊपर, या अपने बच्चों पर बीमारी का या बीमारी के बढ़ने का, या हानि पहुँचने का, या विनाश (हलाकत) का भय और खतरा हो। और उन दोनों के लिए रोज़ा तोड़ने की रूख्सत का प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :

وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة : 185]

"और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।" (सूरतुल बक़रा : 185)

यहाँ बीमारी से मुराद उसका रूप या स्वयं बीमारी का अस्तित्व नहीं है ; क्योंकि वह बीमार जिसको उसका रोज़ा नुक़सान नहीं पहुँचाता है उसके लिए रोज़ा तोड़ना जाइज़ नहीं है। इस से ज्ञात हुआ कि बीमारी का उल्लेख करना एक ऐसी चीज़ की ओर संकेत करना है जिसके होते हुए रोज़ा नुक़सान पहुँचाता है। और यही बीमारी का अर्थ है, और वह यहाँ मौजूद है। अत: वे दोनों (गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिला) रोज़े तोड़ने की रूख्सत के अंतर्गत आ जाती हैं। तथा उन दोनों के लिए रोज़ा तोड़ने की रूख्सत के प्रमाणों में से अनस बिन मालिक अल-का’बी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह तआला ने यात्री से रोज़ा और आधी नमाज़ को, तथा गर्भवती या दूध पिलाने वाली महिला से रोज़े को क्षमा कर दिया है।"

चौथा : बुढ़ापा और वृद्धावस्था

बुढ़ापा और वृद्धावस्था निम्न लोगों को सम्मिलित है :

नश्वर वयोवृद्ध, और यह वह आदमी है जिसकी शक्ति नष्ट हो चुकी हो, और वह नश्वरता और मरण के कगार पर पहुँच चुका हो, तथा हर दिन वह अपने मरने से क़रीब हो रहा हो। तथा वह बीमार व्यक्ति जिसके स्वस्थ और निरोग होने की आशा न हो, और उसकी स्वास्थ्य से निराशा स्पष्ट हो चुकी हो। तथा वह बूढ़ी महिला जो अपनी आयु के अंतिम चरणों को छू रही हो। उक्त लोगों के रोज़ा तोड़ने की वैधता का प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :

وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ [ البقرة : 185]

"और जो लोग इसकी ताक़त रखते हैं फिद्या में एक मिस्कीन को खाना दें।" (सूरतुल बक़रा : 184)

इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने फरमाया : यह आयत मंसूख (जिसका हुक्म निरस्त कर दिया गया हो) नहीं है, यह बूढ़े (वयोवृद्ध) पुरूष और बूढ़ी महिला के लिए है, वे दोनों रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखते हैं, अत: वे हर दिन के बदले एक मिस्कीन (गरीब) को खाना खिलायेंगे।

पाँचवां : जानलेवा भूख और प्यास

जिस आदमी को सख्त भूख या सख्त प्यास थका दे, तो वह रोज़ा तोड़ देगा और उतनी मात्रा में खाना खायेगा जिस से उसकी ज़रूरत पूरी हो जाये, और दिन के बाक़ी हिस्से में खाने पीने से रूक जायेगा,और उस दिन की क़ज़ा करेगा।

तथा सख्त भूख और प्यास ही के हुक्म के साथ, दुश्मन से संभावित या निश्चित मुठभेड़ से कमज़ोरी के खौफ को भी संबंधित किया गया है, जैसेकि वह उसका घेराव किए हुए हो। अत: यदि गाज़ी (योद्धा) इस बात को निश्चित रूप से या अधिक गुमान के द्वारा जानता हो कि दुश्मन से लड़ाई होने वाली है ; क्योंकि वह दुश्मन के मुक़ाबले में मौजूद है, और वह रोज़े के कारण लड़ाई करने से कमज़ोरी का डर अनुभव करता है और वह मुसाफिर नहीं है,तो उस के लिए युद्ध से पहले रोज़ा तोड़ना जाइज़ है।

छठा : बाध्य (मजबूर) करना

बध्य करने का मतलब यह है कि : मनुष्य का किसी दूसरे को धमकी देकर किसी ऐसी चीज़ के करने या त्यागने पर तैयार करना जिसे वह पसंद नहीं करता है।

स्रोत: अल-मौसूअतुल फिक़हिय्या (28/73)