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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यदि आदमी को शादी की ज़रूरत है और उसे विलंब करना उसके लिए कठिन है तो वह शादी को हज्ज पर प्राथमिकता देगा।
लेकिन यदि वह शादी की आवश्यकता नहीं रखता है तो वह हज्ज को प्राथमिकता देगा।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुग्नी” (5/12) में फरमाया :
और यदि वह निकाह का ज़रूरतमंद है और अपने ऊपर कठिनाई का भय अनुभव करता है,तो शादी करने को प्राथमिकता देगा,क्योंकि वह उसके ऊपर वाजिब है और वह उस से बेनियाज़ नहीं हो सकता है,अतः वह उसके खर्च के समान है,और यदि वह भय अनुभव नहीं करता है तो हज्ज को प्राथमिकता देगा,क्योंकि निकाह ऐच्छिक है,इसलिए अनिवार्य हज्ज पर उसे प्राथमिकता नही देगा। (अंत) तथा नववी की किताब “अल-मजमूअ” (7/71) देखिए।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
क्या सक्षम व्यक्ति के लिए शादी के बाद तक हज्ज को विलंब करना जाइज़ है,क्योंकि इस ज़माने में युवाओं को बहकाने व भटकाने वाली चीज़ों और फित्नों (प्रलोभनों) का सामना है चाहे वे छोटी हों या बड़ी ॽ
ते उन्हों ने उत्तर दिया :
इस में कोई शक नहीं कि कामुकता और अत्यावश्यकता के साथ शादी करना हज्ज करने पर प्राथमिकता रखता है, क्योंकि यदि मनुष्य के अंदर कठोर कामुकता पाई जाती है तो उस समय उसका शादी करना उसके जीवन की आवश्यकताओं में से है,अतः वह खाने और पीने के समान है,इसीलिए जिस आदमी को शादी की ज़रूरत है और उसके पास धन नहीं है उसे ज़कात के माल से इतना भुगतान करना जाइज़ है जिस से उसकी शादी हो जाए,जिस प्रकार कि निर्धन आदमी को ज़कात से इतना दिया जाता है जिस से उसकी जीविका,उसके पहनने और अपनी शर्मगाह को छिपाने का प्रबंध हो सके।
और इस आधार पर हम कहते हैं कि : यदि वह व्यक्ति निकाह का ज़रूरतमंद है तो वह निकाह को हज्ज पर प्राथमिकता देगा,इसलिए कि अल्लाह तआला ने हज्ज के अनिवार्य होने में सक्षम होने (ताक़त) की शर्त लगाई है,चुनांचे फरमाया :
وَلِلَّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنْ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلا [آل عمران : 97].
“अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है।” (सूरत आल-इम्रान : 97)
किंतु जो व्यक्ति युवा है और उसके लिए इस बात का कोई महत्व नहीं है कि वह इस वर्ष शादी करे या उसके बाद वाले वर्ष शादी करे तो ऐसा व्यक्ति हज्ज को प्राथमिकता देगा, क्योंकि उसे शादी को प्राथमिकता देने की ज़रूरत नहीं है।” (अंत)
फतावा मनारूल इस्लाम (2/375).