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तो क्या यह रिवायत सही है? क्या इस बारे में कोई सहीह हदीस है? और उसका स्रोत क्या है? और वह किस पुस्तक में वर्णित है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नमाज़ में किसी ऐसी चीज़ के बारे में सोचना, जिसका नमाज़ से कोई संबंध नहीं है, नमाज़ के अज्र व सवाब को कम कर देता है, क्योंकि उसने नमाज़ में आवश्यक खुशूअ (विनम्रता) का उल्लंघन किया है, किंतु यह उसे पूरी तरह से अमान्य नहीं करता है।शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
"मन का भटकना और उसकी गफलत (अनवधानता), वसवसा, और मन में कोई बात सोचनाः नमाज़ को अमान्य नहीं करता है, लेकिन यह उसमें बहुत बड़ी कमी पैदा कर देता है, यहाँ तक कि वह नमाज़ से इस अवस्था में पलटता है कि उसके लिए केवल उसका आधा या एक चौथाई या दसवाँ भाग लिखा गया होता है।
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस बात की शिकायत की, तो आपने उन्हें आदेश दिया कि अगर उन्हें ऐसा अनुभव हो तो वे अपने बायीं ओर तीन बार थू-थू कर दें और धुतकारे हुए शैतान से अल्लाह की शरण लें।
जिस आदमी ने इस हदीस को वर्णन किया है, जो कि स्वयं इससे पीड़ित था, उसका कहना है: मैंने ऐसा ही किया, तो अल्लाह ने मुझसे उस चीज़ को दूर कर दिया जो मैं अनुभव कर रहा था।
अतः इन वसवसों का उपचार यह है कि : आदमी अपने बाईं ओर तीन बार थू-थू कर दे और कहेः अऊज़ो बिल्लाहि मिनश शैतानिर-रजीम (मैं धुतकारे हुए शैतान से अल्लाह की शरण लेता हूं)। जब वह ऐसा करेगा तो अल्लाह उससे इस वसवसे को दूर कर देगा।” अंत हुआ।
"फतावा नूरुन अलद-दर्ब” (8/2) ()
तथा प्रश्न संख्याः (34570) और (132081) भी देखें।
दूसरा:
इस प्रश्न में जो उल्लेख किया गया है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन अपने साथियों से कहा : तुममें से जो भी अपनी नमाज़ में किसी चीज़ के बारे में सोचे हुए बिना नमाज़ पढ़ेगा, तो मैं उसे अपना चोगा प्रदान करूँगा। तो अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने नमाज़ पढ़ी। जब उन्होंने नमाज़ से सलाम फेरा, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे पूछा। तो उन्होंने कहा कि उन्होंने नमाज़ में यह सोचा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें अपना कौन सा चोगा प्रदान करेंगे?
हमें इस कहानी का कोई आधार नहीं मिला, तथा हमें विद्वानों में से कोई भी ऐसा नहीं मिला जिसने इसका उल्लेख किया हो। इसलिए यह विश्वसनीय नहीं है और इस पर भरोसा नहीं किया जाएगा और न इसपर कोई ध्यान दिया जाएगा। क्योंकि यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा पर झूठ बोलने के अंतर्गत आता है और यह एक बड़ा पाप है।
मुसलमान को चाहिए कि अपनी नमाज़ में ख़ुशू (विनम्रता) का लालायित बने और उसी के बारे में सोचे। नमाज़ के बाहर की किसी भी चीज़ के बारे में व्यस्त न हो, वह कुरआन का जो पाठ कर रहा है उसपर चिंतन करे, और मृत्यु को याद करे। तथा वह नमाज़ को उसकी सुन्नतों और वाजिबात के साथ अदा करने का इच्छुक बने, और अपनी नमाज़ में इधर-उधर न देखे। और यदि वह (नमाज़ के दौरान) शैतान के वसवसों में से किसी चीज़ से ग्रस्त हो जाए तो उसे धुतकारे हुए शैतान से अल्लाह का शरण लेना चाहिए और अपने बाईँ ओर तीन बार पर थू-थू करना चाहिए।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।