शुक्रवार 7 जुमादा-1 1446 - 8 नवंबर 2024
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मुसलमानों का रोज़ा रखने और तोड़ने में एकजुट होना एक शरई मांग है और इसे प्राप्त करने के तरीक़े का वर्णन

प्रश्न

मुसलमान लोग रमज़ान के महीने के प्रवेश करने और उसके समाप्त होने के बार में एकजुट क्यों नहीं होते? और इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

''इस में कोई संदेह नहीं कि मुसलमानों का रोज़ा रखने और रोज़ा तोड़ने में एकजुट होना एक अच्छी बात है और दिलों को प्रिय है और जहाँ हो सके शरई तौर पर अपेक्षित है, लेकिन इसकी ओर दो चीज़ों के द्वारा ही रास्ता संभव है :

प्रथम : सभी मुसलमान विद्वान हिसाब पर भरोसा करना रद्द कर दें जिस तरह कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे रद्द कर दिया और उम्मत के पूर्वजों ने इसे रद्द कर दिया, और वे चाँद की दृष्टि पर या संख्या पूरी करने पर अमल करें जैसाकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहीह हदीसों के अंदर इसे स्पष्ट किया है। तथा शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहुमहुल्लाह ने फतावा (25/132, 133) में इस बात पर विद्वानों की सर्वसहमति का उल्लेख किया है कि रोज़े और इफ्तार आदि को साबित करने में हिसाब पर भरोसा करना जायज़ नहीं है। तथा हाफिज़ ने फत्हुलबारी (4/127) में अल-बाजी से: (हिसाब का एतिबार न करने पर पूर्वजों की सर्वसहमति का उल्लेख किया है और यह कि उनकी सर्वसहमति उनके बाद में आने वालों पर हुज्जत (तर्क) है।)

दूसरी चीज़ : वे लोग किसी भी इस्लामी देश में जो अल्लाह की शरीअत पर अमल करता है और उसके अहकाम की पाबंदी करता है, चाँद की दृष्टि साबित हो जाने पर भरोसा करें। चुनाँचे जब भी वहाँ (यानी उस देश में) शरई सबूतों के साथ चाँद की दृष्टि साबित हो जाए, चाहे वह रमज़ान के प्रवेश करने में हो या उससे निकलने में हो, इसमें उनकी पैरवी करें। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन पर अमल करते हुए किः ''चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा रखना बंद करो, यदि तुम्हारे ऊपर बदली हो जाये तो अवधि पूरी करो।''

तथा इसी विषय में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान भी है : ''हम एक अनपढ़ (निरक्षर) लोग हैं, हम न लिखते हैं और न गणना करते हैं, महीना इतना और इतना और इतना होता है।'' और आप ने अपने हाथ से तीन बार संकेत किया और तीसरी बार अपने अंगूठे को बंद कर लिया। ''और महीना इतना और इतना और इतना होता है।'' और आप ने अपनी पूरी अंगुलियों से संकेत किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इससे मतलब यह था कि महीना उन्तीस दिनों का होता है और (कभी) तीस दिन का होता है। इस अर्थ की हदीसें बहुत हैं, जिनमें इब्ने उमर, अबू हुरैरा, और हुज़ैफा बिन अल-यमान वगैरह रज़ियल्लाहु अन्हुम की हदीसें शामिल हैं। और यह बात सर्वज्ञात है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का संबोधन मदीना वालों के लिए विशिष्ठ नहीं है। बल्कि वह परलोक के दिन तक सभी नगरों और सभी युगों में पूरी उम्मत के लिए संबोधन है। तो जब भी यह दोनों चीज़ें पाई जायेंगी तो इस्लामी राज्यों के लिए रोज़ा रखने पर और रोज़ा तोड़ने पर एकजुट होना संभव होगा। हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह उन्हें इसकी तौफीक़ प्रदान करे, और इस्लामी शरीअत को लागू करने और उसके विरूध चीज़ों को त्यागने पर मदद करे। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह उनके ऊपर अनिवार्य है। क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है :

فَلا وَرَبِّكَ لا يُؤْمِنُونَ حَتَّى يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لا يَجِدُوا فِي أَنْفُسِهِمْ حَرَجاً مِمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوا تَسْلِيماً [النساء : 65]

''(हे मुहम्मद !) सौगन्ध है आपके रब (पालनहार) की ! यह मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि आपस के समस्त विवाद (मतभेद) में आपको न्यायकर्ता न मान लें, फिर जो न्याय आप उन में कर दें उस से अपने हृदय में किसी प्रकार की तंगी और अप्रसन्नता न अनुभव करें, बल्कि सम्पूर्ण रूप से उसको स्वीकार कर लें।'' (सूरतुन-निसाः 65)

तथा इसके अर्थ में आने वाली अन्य आयतें भी हैं। तथा इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने सभी मामलों में उससे फैसला कराने में उनका कल्याण, और उनका नजात (मोक्ष), उनका एकीकरण, उनके दुश्नों पर उनकी विजय और लोक परलोक के सौभाग्य की प्राप्ति है। चुनाँचे हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके सीनों को इसके लिए खोल दे और उनकी इस पर सहायता करे। निःसंदेह वह सुननेवाला बहुत निकट है।'' अंत हुआ।

फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर