हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यदि क़ुर्बानी और अक़ीक़ा एकत्रित हो जाएं और कोई व्यक्ति ईदुल-अज़्हा के दिन, या तश्रीक़ के दिनों में अपने बच्चे का अक़ीक़ा करना चाहे, तो क्या क़ुर्बानी का जानवर अक़ीक़ा के लिए भी पर्याप्त होगाॽ
फ़ुक़हा (धर्म शास्त्रियों) ने इस मुद्दा में दो कथनों पर मतभेद किया है :
पहला कथनः क़ुर्बानी का जानवर अक़ीक़ा के रूप में पर्याप्त नहीं होगा। यह मालिकिय्या और शाफेइय्या का मत है और इमाम अहमद रहिमहुल्लाह से एक रिवायत है।
इस विचार को मानने वालों का तर्क यह है किः उन दोनों – अर्थात अक़ीक़ा और क़ुर्बानी – में से हर एक व्यक्तिगत रूप से अपेक्षित है, इसलिए उनमें से एक दूसरे के रूप में पर्याप्त नहीं होगा। और इसलिए कि उनमें से प्रत्येक का एक अलग कारण है जो दूसरे से भिन्न है। इसलिए उनमें से एक को दूसरे के रूप में नहीं माना जा सकता है, जैसे कि हज्ज तमत्तू का दम और फिद्या का दम (क़ुर्बानी)।
अल-हैतमी रहिमहुल्लाह “तोहफतुल-मुहताज शर्ह अल-मिनहाज” (9/371) में कहते हैं : “हमारे साथियों के शब्दों का प्रत्यक्ष अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति एक बकरी से क़ुर्बानी और अक़ीक़ा दोनों की नीयत करता है तो उसे दोनों में से कोई एक उद्देश्य भी प्राप्त नहीं होगा। यह बात स्पष्ट है क्योंकि उन दोनों में से प्रत्येक, एक अपेक्षित सुन्नत है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
अल-हत्ताब रहिमहुल्लाह ने “मवाहिबुल-जलील” (3/259) में फरमाया : “यदि उसने अपने जानवर को क़ुर्बानी और अक़ीक़ा के लिए ज़बह किया या उसे शादी की दावत के तौर पर खिला दिया, तो “अज़-ज़खीरा” में कहा गया है : अल-क़बस के लेखक ने कहा : हमारे शैख अबू बक्र अल-फ़िह्री ने कहा : यदि वह अपने बलिदान के जानवर को क़ुर्बानी और अक़ीक़ा दोनों के रूप में ज़बह करता है, तो यह उसके लिए पर्याप्त नहीं होगा। लेकिन यदि वह इसे शादी की दावत के रूप में खिला देता है तो वह उसके लिए काफी होगा। यह अंतर इसलिए है कि पहले दोनों मामलों में उद्देश्य जानवर का खून बहाना है और उस एक जानवर का खून बहाना दो खून बहाने के रूप में प्रयाप्त नहीं होगा। जबकि वलीमा का उद्देश्य खाना खिलाना है, और यह खून बहाने के विरुद्ध नहीं है, अतः इसमें संयोजन हो सकता है। अंत हुआ” उद्धरण का अंत हुआ।
दूसरा कथनः क़ुर्बानी का जानवर अक़ीक़ा के रूप में पर्याप्त होगा। यह इमाम अहमद से एक रिवायत और हनफिय्या का मत है। तथा यही हसन अल-बसरी, मुहम्मद बिन सीरीन और क़तादा रहिमहुमुल्लाह का भी कथन है।
इस विचार के मानने वाले लोगों का तर्क यह है किः उन दोनों का उद्देश्य जानवर ज़बह करके अल्लाह की निकटता प्राप्त करना है। इसलिए उनमें से एक दूसरे में शामिल हो सकता है, जैसे कि मस्जिद में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के लिए तहिय्यतुल मस्जिद फर्ज़ नमाज़ में शामिल हो जाती है।
इब्ने अबी शैबा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुसन्नफ” (5/534) में हसन से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : “यदि वे बच्चे की ओर से क़ुर्बानी करें तो यह उसकी तरफ से अक़ीक़ा के रूप में पर्याप्त हो जाएगा।”
तथा हिशाम और इब्ने सीरीन से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : उसकी ओर से क़ुर्बानी अक़ीक़ा के रूप में भी पर्याप्त होगी।
तथा क़तादा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : जब तक अक़ीक़ा नहीं किया जाता है तब तक उसकी ओर से क़ुर्बानी पर्याप्त नहीं होती है।
अल-बहूती रहिमहुल्लाह ने “शर्ह मुन्तहल इरादात” (1/617) में फरमाया : “यदि अक़ीक़ा और क़ुर्बानी का समय एक साथ हो जाए, इस प्रकार कि सातवां दिन या इसी तरह का अन्य दिन क़ुर्बानी के दिनों में पड़ जाता है, और वह अक़ीक़ा करता है तो यह क़ुर्बानी के रूप में काफ़ी होगा, या उसने क़ुर्बानी की तो यह अक़ीक़ा के रूप में पर्याप्त होगी। यह ऐसे ही है जैसे कि ईद का दिन शुक्रवार को पड़ जाए, तो वह उनमें से किसी एक के लिए स्नान करे। इसी तरह तमत्तू या क़िरान हज्ज करनेवाले का क़ुर्बानी के दिन बकरी ज़बह करना, जो कि अनिवार्य हदी के रूप में और क़ुर्बानी के रूप में भी प्रयाप्त होगा।” उद्धरण का अंत हुआ।
तथा अल-बहूती रहिमहुल्लाह ने “कश्शाफुल क़िनाअ” (3/30) में फरमाया : “यदि अक़ीक़ा और क़ुर्बानी एक साथ पड़ जाएं, और वह उन दोनों अर्थात अक़ीक़ा और क़ुर्बानी के लिए जानवर ज़बह करने का इरादा करे तो वह जानवर स्पष्ट रूप से दोनों के लिए पर्याप्त होगा [अर्थात इमाम अहमद ने इसे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है]” उद्धरण का अंत हुआ।
इस कथन (विचार) को शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम रहिमहुल्लाह ने अपनाया है, वह कहते हैं : “यदि क़ुर्बानी और अक़ीक़ा एक साथ पड़ जाएं तो घर के मालिक के लिए जो अपनी तरफ़ से क़ुर्बानी करने का इरादा रखता है एक जानवर पर्याप्त होगा। चुनांचे वह उसे क़ुर्बानी के रूप में ज़बह करेगा और अक़ीक़ा उसमें शामिल हो जाएगा।
उनमें से कुछ के शब्दों से यह मतलब निकलता है कि दोनों का एक ही व्यक्ति के लिए होना आवश्यक हैः अर्थात क़ुर्बानी और अक़ीक़ा छोटे बच्चे की तरफ से किया जाना चाहिए। जबकि दूसरों के शब्दों के अनुसार, यह शर्त (आवश्यक) नहीं है, अगर क़ुर्बानी करने वाला पिता है तो क़ुर्बानी पिता की तरफ से होगी और अक़ीक़ा बच्चे की ओर से होगा।
निष्कर्ष : यह कि यदि वह क़ुर्बानी की नीयत से जानवर को ज़बह करता है और अक़ीक़ा की भी नीयत कर लेता है तो पर्याप्त है।” उद्धरण का अंत हुआ।
“फतावा अश-शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम” (6/159).
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।