हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सुन्नत (हदीस) से शादी की वैधता (धर्मसंगत होने) का पता चलता है और यह कि शादी अल्लाह के संदेशवाहकों की सुन्नतों (परंपराओं) में से एक सुन्नत (परंपरा) है। अल्लाह तआला की मदद से शादी के द्वारा एक व्यक्ति बुराई की बहुत सारी प्रवृत्तियों को दूर कर सकता है। क्योंकि शादी उसकी निगाह को नीची रखने और उसकी शर्मगाह (सतीत्व) की रक्षा करने में मददगार है, जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस कथन के द्वारा इसे स्पष्ट किया है : “ऐ युवागण, तुम में से जो भी शादी करने में सक्षम है, उसे शादी कर लेनी चाहिए। क्योंकि यह निगाह को नीची करने वाली और शर्मगाह (सतीत्व) की रक्षा करने वाली है ...” (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)
तथा हाकिम ने “अल-मुस्तदरक” में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से एक मर्फू हदीस रिवायत की है : “जिसे अल्लाह ने एक सदाचारी पत्नी प्रदान किया, तो वास्तव में उसने उसके धर्म के आधे हिस्से पर उसकी मदद की। इसलिए उसे शेष आधे हिस्से के संबंध में अल्लाह से डरना चाहिए।”
तथा बैहक़ी ने अर्-रक़ाशी से “शुअबुल-ईमान” में ये शब्द रिवायत किए हैं : “जब बंदा शादी कर लेता है तो उसके धर्म का आधा हिस्सा पूरा हो जाता है, इसलिए उसे दूसरे आधे हिस्से के संबंध में अल्लाह से डरना चाहिए।” (अलबानी ने उपर्युक्त दोनों हदीसों के बारे में “सहीहुत-तर्गीब वत-तर्हीब” (हदीस संख्या : 1916) कहा है कि वे “हसन लि-ग़ैरिही” हैं।)
और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ प्रदान करने वाला है।