शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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उसने अपनी त्वचा को खुजलाने के लिए सज्दा की हालत में अपना हाथ ज़मीन से उठा लिया, क्या उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगीॽ

प्रश्न

अगर कोई व्यक्ति सज्दा के दौरान अपने हाथ या पैर को (ज़मीन से) उठा ले, फिर उसे ज़मीन पर रखे और सज्दे पूरे करे, तो क्या इससे उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगीॽ उदाहरण के लिए, उसे सज्दे के दौरान अपनी त्वचा को खुजलाने की जरूरत पड़ती है, इसलिए वह अपने एक हाथ को उठा लेता है तो क्या उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगीॽ अगर उसने ऐसा भूलकर किया है, तो क्या उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगी और उसे इसे दोहराना अनिवार्य होगाॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उन सात अंगों पर सज्दा किया जाना ज़रूरी है जिन पर पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सज्दा करने का आदेश दिया है। जैसा कि बुखारी (हदीस संख्या : 812) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 490)  ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का आदेश दिया गया है : पेशानी (माथा) - और आपने अपने हाथ से अपनी नाक पर इशारा किया – दोनों हाथ, दोनों घुटने और दोनों पैरों के सिरे (यानी पैर की अंगुलियाँ)।”

नववी रहिमहुल्लाह ''शरह मुस्लिम'' (4/208) में कहते हैं :

''यदि उसने उनमें से किसी एक अंग में गड़बड़ी कर दिया, तो उसकी नमाज़ मान्य नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

विद्वानों की बहुमत ने (जिनमें इमाम मालिक, इमाम शाफ़ेई और इमाम अहमद शामिल हैं) ने इस हदीस से इस बात पर प्रमाण स्थापित किया है कि सज्दा तब तक मान्य नहीं है जब तक कि वह इन सभी अंगों पर नहीं किया जाता है। चुनाँचे यदि कोई व्यक्ति उनमें से केवल छः अंगों पर सज्दा करता है, तो उसका सज्दा सही (मान्य) नहीं है।

इब्ने रजब अल-हंबली रहिमहुल्लाह ने ''फत्हुल-बारी'' में कहा :

''इस कथन (दृष्टिकोण) का प्रमाण : ये सही (प्रमाणित) हदीसें हैं जिनमें इन सभी अंगों पर सज्दा करने का आदेश दिया गया है, और आदेश देना अनिवार्यता को इंगित करता है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने रजब की ''फत्हुल-बारी'' (5 / 114-115)।

इसके आधार पर, यदि कोई व्यक्ति सज्दे के किसी अंग को सज्दे की पूरी अवधि के दौरान ज़मीन से उठाए रखता है और उसपर सज्दा नहीं करता है, तो उसकी नमाज़ सही (मान्य) नहीं है।

परंतु जो आदमी इसे मामूली समय के लिए उठाता है तो इन शा अल्लाह उसकी नमाज़ सही (मान्य) है।

शैख़ मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

किसी मनुष्य ने सज्दे की हालत में सज्दे के किसी अंग को ज़मीन से उठा लिया, तो क्या उसकी नमाज़ अमान्य हो जाएगीॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

''ऐसा प्रत्यक्ष होता है कि अगर उसने इसे पूरे सज्दे में उठाया है – अर्थात : वह अपने एक अंग को ज़मीन से उठाए हुए सज्दा करता रहा – तो उसका सज्दा अमान्य है, और अगर सज्दा अमान्य है, तो नमाज़ भी अमान्य हो गई। लेकिन अगर उसने इसे मामूली अवधि के लिए उठाया है, जैसे कि वह अपने एक पैर को दूसरे के साथ खुजलाता है और फिर उसे उसके स्थान पर लौटा देता है, तो मुझे आशा है कि उस पर कोई आपत्ति की बात नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

''लिक़ाआत अल-बाब अल-मफ्तूह''।

उन्होंने यह भी कहा :

''इन सातों अंगो पर सज्दा करना सज्दे की संपूर्ण स्थिति में अनिवार्य है, जिसका अर्थ यह है कि सज्दा करते समय अपने अंगों में से किसी अंग को ज़मीन से उठाना जायज़ नहीं है, न तो हाथ को, और न ही पैर और न ही माथा (पेशानी) को और न ही इन सात अंगों में से किसी अन्य अंग को। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है : तो यदि वह अपने सज्दे की पूरी अवधि में ऐसा करता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसका सज्दा सही नहीं है; क्योंकि उसने उन अंगों में से एक अंग को कम कर दिया, जिन पर सज्दा करना अनिवार्य है।

लेकिन अगर यह सज्दे के दौरान हुआ है, इसका मतलब यह है कि उदाहरण के तौर पर एक आदमी के पैर में खुजली हुई, तो उसने अपने दूसरे पैर से उसे खुजला दिया, तो यह मामला विचार के अधीन है। यह कहा जा सकता है कि : उसकी नमाज़ अमान्य है, क्योंकि उसने अपने सज्दे के कुछ हिस्से के दौरान इस रुक्न (स्तंभ) को छोड़ दिया है।

तथा यह भी कहा जा सकता है कि : उसकी नमाज़ पर्याप्त है, क्योंकि सबसे सामान्य और अधिकतर चीज़ का एतिबार किया जाता है। यदि आम तौर पर और अधिकांश समय वह सात अंगों पर सज्दा करने वाला था, तो यह उसके लिए पर्याप्त है।

इसके आधार पर, एहतियात और सावधानी पक्ष यह है कि  : उसे कोई भी हिस्सा नहीं उठाना चाहिए और उसे धैर्य रखना चाहिए, भले ही उदाहरण के तौर पर उसके हाथ में, या उसकी जांघ में, या उसके पैर में खुजली अनुभव हो। अतः उसे सज्दे से उठने तक धैर्य रखना चाहिए।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

''अश-शर्हुल मुम्ते'' (3/37)।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर