रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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हमारे ऊपर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किसी भी अन्य वयक्ति से अधिकतर महब्बत करना क्यों अनिवार्य है?

प्रश्न

हमारे ऊपर हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अंतिम स्तर तक (या किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिकतर) महब्बत करना, तथा आप का आज्ञा पालन करना, पैरवी करना और आदर-सम्मान करना क्यों अनिवार्य है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

1- अल्लाह तआला ने हमारे ऊपर पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आज्ञापालन करना अनिवार्य कर दिया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : "और अल्लाह के हुक्म की पैरवी करो और रसूल की इताअत करो और होशियार रहो और अगर तुम ने मुँह फेरा तो जान लो कि हमारे रसूल पर खुला संदेश (पैगाम) पहुँचा देना है।" (सूरतुल माईदा :92)

2- तथा अल्लाह तआला ने यह सूचना दी है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इताअत ही अल्लाह की इताअत है, अल्लाह तआला का फरमान है : "जो इस रसूल की फ़रमांबरदारी करे, उसी ने अल्लाह की फरमांबरदारी की, और जो मुँह फेर ले तो हम ने आप को कोई उन पर रक्षक बना कर नहीं भेजा।" (सूरतुन्निसा : 80)

3- अल्लाह तआला ने पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आज्ञापालन से मुँह मोड़ने से डराया और सावधान किया है, और इस बात से सचेत किया है कि ऐसा करने से मुसलमान शिर्क के फित्ने से पीड़ित हो सकता है, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने फरमाया : "तुम (अल्लाह के) रसूल के बुलावे को ऐसा आम बुलावा न समझो जैसा आपस में एक का दूसरे के साथ होता है, अल्लाह तआला तुम में उन्हें अच्छी तरह जानता है जो आँख बचाकर चुपके से निकल जाते हैं। (सुनो!) जो लोग पैग़म्बर के आदेश का विरोध करते हैं उन्हें डरते रहना चाहिए कि उन पर कोई भयंकर आफत न आ पड़े या उन्हें कष्ट दायक प्रकोप न घेर ले।" (सूरतुन-नूर : 63)

तथा अल्लाह तआला ने इस बात से सूचित किया है कि नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) का पद जिस से अल्लाह तआला ने अपने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सम्मानित किया है, वह ईमान वालों से आवश्यक रूप से यह अपेक्षा करता है कि वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदर व सम्मान करें, अल्लाह तआला का फरमान है : "नि:सन्देह हम ने आप को गवाही देने वाला और शुभ सूचना देने वाला तथा डराने वाला बनाकर भेजा है। ताकि (हे मुसलमानो!) तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसका आदर करो, और सुबह-शाम अल्लाह की पवित्रता (तस्बीह) बयान करो।" (सुरतुल फत्ह : 8-9)

4- मुसलमान का ईमान परिपूर्ण नहीं हो सकता यहाँ तक कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महब्बत करे, बल्कि यहाँ तक कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस के निकट उस के माता-पिता, उसकी औलाद, उसकी जान और सभी लोगों से अधिक प्रिय न हो जायें। अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम में से कोई आदमी उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि मैं उस के निकट उसके माँ-बाप, उस की औलाद और समस्त लोगों से अधिक प्रिय न हो जाऊँ।" (बुखारी हदीस संख्या :15, मुस्लिम हदीस संख्या :44)

अब्दुल्लाह बिन हिशाम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है वह कहते हैं कि : हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थे और आप उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ को पकड़े हुये थे, तो उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरी जान के सिवाय आप मुझे हर चीज़ से अधिक प्रिय हैं। तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "नहीं, उस हस्ती की क़सम! जिस के हाथ में मेरी जान है यहाँ तक कि मैं तुम्हारे निकट तुम्हारी जान से भी अधिक प्रिय हो जाऊँ।" उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: (यदि ऐसी बात है तो) अब आप -अल्लाह की क़सम- मुझे मेरी जान से भी अधिक प्यारे हैं। इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "ऐ उमर, अब (बात बनी)। " (बुख़ारी हदीस संखया : 6257)

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिकतर महब्बत और सम्मान करने के अनिवार्य होने का कारण यह है कि लोक और परलोक में सब से महान भलाई और अच्छाई हमें केवल नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथों, आप पर ईमान रखने और आप के आज्ञापालन के द्वारा ही प्राप्त होती है, क्योंकि किसी भी आदमी को अल्लाह के अज़ाब से मुक्ति और अल्लाह की दया तह पहुँच पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के माध्यम से ही ; आप पर ईमान, आप की महब्बत, आप की मैत्री और सम्मान और आप के आज्ञापालन के द्वारा ही संभव है, और आप के कारण ही अल्लाह तआला आदमी को दुनिया और आखिरत के अज़ाब से छुटकारा देगा, और आप ही उसे दुनिया व आखिरत की भलाई और कल्याण तह पहुँचाने वाले हैं। चुनाँचि सबसे बड़ा और सब से लाभप्रद उपहार और अनुकम्पा ईमान का उपहार है, और वह केवल आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक व्यक्ति के लिए उस की जान व माल से भी अधिक लाभप्रद और शुभचिंतक (खैरख्वाह) हैं ; क्योंकि अल्लाह तआला आप ही के द्वारा अंधेरों से उजाले की ओर निकालता है, इस के अलावा मनुष्य के लिए कोई अन्य रास्ता नहीं, जहाँ तक उसकी जान व माल का संबंध है तो ये उसे अल्लह के अज़ाब से कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकते ..." (मज्मूउल फतावा 27/246)

कुछ विद्वानों का कहना है कि : जब बन्दा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की ओर से प्राप्त होने वाले लाभ में विचार करता है जिन के द्वारा अल्लाह तआला ने कुफ्र के अंधेरों से इस्लाम के प्रकाश की ओर निकाल खड़ा किया है, तो उसे पता चलता है कि उसके अनांत नेमतों में सर्वदा के लिए बाक़ी रहने का कारण आप ही हैं, तथा उसे पता चलेगा कि आप के द्वारा उसका लाभान्वित होना लाभ उठाने के सभी साधनों और स्वरूपों से बढ़कर है, इसीलिए आप इस बात का अधिकार रखते हैं कि उसकी महब्बत से आप का अंश सब से अधिक हो, किन्तु लोग इसको याद रखने और इस से गफलत करने के हिसाब से इस में विभिन्न प्रकार के हैं, और प्रत्येक व्यक्ति जो शुद्ध रूप से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ईमान लाया है वह उस व्यापक महब्बत को कुछ न कुछ अपने अंदर अनुभव करने से खाली नहीं होता है, हाँ यह और बात है कि इस में लोग भिन्न-भिन्न होते हैं, उन में से कुछ ऐसे हैं जिन्हें उस मर्तबे का उच्चतम अंश प्राप्त हुआ और कुछ लोगों को उसका न्यूनतम हिस्सा मिला, जैसे कि वह आदमी जो अधिकतर समय शह्वतों में डूबा और गफलतों में लिप्त हो, किन्तु उन में से अधिकांश लोग ऐसे हैं कि जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का चर्चा किया जाता है तो आप का दीदार करने के लिए लालायित हो जाता है, इस प्रकार कि वह अपने बीवी बच्चों, माता-पिता और धन-सम्पत्ति को उस पर प्राथमिकता देता है, लेकिन निरंतर गफलतों के आक्रमण से यह स्थिति शीघ्र ही समाप्त हो जाती है, और अल्लाह ही से मदद मांगी जा सकती है।" (देखिए : फत्हुलबारी 1/59)

इसी अर्थ की ओर सूरतुल अह्ज़ाब में अल्लाह तआला का यह फरमान संकेत करता है: "पैग़ंबर ईमान वालों पर खुद उन से भी अधिक हक़ रखने वाले हैं।" (सूरतुल अह्ज़ाब :6)

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह कहते हैं : अल्लाह तआला को अपने पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अपनी उम्मत पर दया और करूणा और आप की शुभचिन्ता का ज्ञान था, इसलिए आप को उन पर स्वयं उनके प्राणों से भी अधिक हक़दार बना दिया, और उन के बारे में आप का फैसला उन के अपने विकल्प पर प्राथमिकता और प्रधानता रखता है।" (6/380)

शैख अब्दुर्रहमान बिन नासिर अस-सा´दी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

"अल्लाह तआला मोमिनों को एक सूचना दे रहा है जिस के द्वारा वे पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की स्थिति और आप के पद को जान लें ; फिर उस स्थिति के अनुरूप आप के साथ व्यवहार करें, चुनाँचि अल्लाह तआला ने फरमाया : "पैग़ंबर ईमान वालों पर खुद उन से भी अधिक हक़ रखने वाले हैं।" इंसान के लिए सब से निकट और उसके लिए सब से योग्य उसका नफ्स (प्राण) होता है, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसके नफ्स से भी अधिक योग्य और हक़दार हैं, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके लिए ऐसी खैरख्वाही (शुभचिन्ता), प्यार व शफ्क़त, दया व करूणा का प्रदर्शन किया है जिसके कारण आप सृष्टि में सब से अधिक दयावान और सबसे अधिक करूणामई होगये, अत: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों पर सब से अधिक एहसान और उपकार वाले हैं,क्योंकि उन्हें एक कण के बराबर भी भलाई पहुँची है और एक कण के बराबर बुराई उन से दूर हुई है तो वह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथों पर और आप के कारण हुई है। इसीलिए आदमी पर अनिवार्य है कि जब उसके मन की इच्छा, या किसी भी मनुष्य की इच्छा पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इच्छा से टकरा जाये तो वह पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इच्छा और आशय को प्राथमिकता और वरीयता दे, और पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन को किसी भी आदमी के कथन से न टकराये चाहे वह कोई भी हो, और अपनी जानों, अपने मालों, और अपने बाल-बच्चों को आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर न्यौछावर और क़ुर्बान कर दें, आप की महब्बत को सर्वसृष्टि की महब्बत पर आगे रखें, और कोई बात न कहें यहाँ तक आप अपनी बात कह लें, और आप के आगे न बढ़ें।"

इस के उल्लेख में अह्ले इल्म (विद्वानों) ने जो कुछ ज़िक्र किया है उसका सारांश यह है कि अल्लाह का क्रोध और आग दो ऐसी चीज़ें हैं जो बन्दे के लिए सब से अधिक डरने की चीज़ें है, और उन से मुक्ति केवल अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथ पर ही संभव है, और अल्लाह की प्रसन्नता और जन्नत दो ऐसी चीज़ें हैं जो बन्दे का सब से बड़ा उद्देश्य हैं, और उन से आदमी केवल पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथ ही पर सफल हो सकता है।

पहली बात की ओर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस कथन के द्वारा संकेत किया है, "मेरा उदाहरण और तुम्हारा उदाहरण उस आदमी की तरह है जिस ने आग रौशन किया, तो पतिंगे और झींगर उस में गिरने लगे, और वह उन्हें उस से हटा रहा है, और मैं तुम्हारी कमर (तहबंद और पैजामा बांधने की जगह) पकड़ कर आग से दूर कर रहा हूँ और तुम मेरे हाथ से छूट कर भाग रहे हो।" (मुस्लिम हदीस संख्या :2285, जाबिर की हदीस से और इसी के समान बुखारी में अबू हुरैरा से हदीस संख्या :3427 है।)

हदीस का अभिप्राय यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जाहिलों और विरोधकों के अपनी नाफरमानी और शह्वतों की वजह से आखिरत की आग में गिरने, और उसमें पड़ने के लिये लालायित होने को, पतिंगों के अपनी इच्छा और समझबूझ की कमी के कारण दुनिया की आग में गिरने के समान बताया है, दोनों के दोनों अपनी नादानी और अज्ञानता के कारणवश अपने आप को नष्ट करने के लिये लालायित और उसके लिए प्रयासरत हैं।" (शर्ह मुस्लिम लिन्-नववी)

और दूसरी बात की ओर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने इस कथन के द्वारा संकेत किया है : "मेरी उम्मत का प्रत्येक व्यक्ति स्वर्ग में जाए गा, सिवाय उस आदमी के जो अस्वीकार कर दे, पूछा गया कि स्वर्ग में प्रवेष करना कौन अस्वीकार कर देगा? आप ने फरमाया: "जिस ने मेरा आज्ञा पालन किया वह स्वर्ग में प्रवेष करेगा, और जिस ने मेरी अवज्ञा की उस ने (स्वर्ग में जाना) अस्वीकार किया।" (बुखारी हदीस संख्या :7280)

और अल्लाह ही तौफीक़ देने वाला है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर