हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा औ गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।इस मस्अले (मुद्दे) को फुक़हा (इस्लामी शरीअत के विद्वान) ''मस्अलतुज़-ज़फर'' के नाम से जानते हैं। जिसका आशय यह है कि यदि किसी ज़ालिम (अत्याचारी) व्यक्ति के पास आपका कोई हक़ है, जिससे आप अपना हक़ निकालने में सक्षम नहीं हैं, और आपको उसकी कोई वस्तु मिल जाती है। तो क्या आपके लिए (उस वस्तु से) अपने हक़ के बराबर राशि लेना जायज़ है या नहींॽ
यह मुद्दा विद्वानों के बीच मतभेद का विषय है : चुनांचे उनमें से कुछ विद्वान इसे जायज़ (अनुमेय) मानते हैं, और कुछ इसे हराम कहते हैं, जबकि उनमें से कुछ विद्वान कुछ शर्तों के साथ इसे जायज़ ठहराते हैं।
देखें: खरशी की ''शर्ह मुख्तसर खलील'' (7/235), ''अल-फतावा अल-कुबरा'' (5/407), ''तरहुत-तसरीब (8/226-227), ''फत्हुलबारी'' (5/109), ''अल-मौसूअतुल-फिक़्हिय्या'' (29/162)।
शैख इब्ने जिबरीन रहिमहुल्लाह कहते हैं: “इसका हुक्म अलग-अलग लोगों के लिए अलग हो सकता है: चुनाँचे उस समय लेना जायज़ है यदि यह ज्ञात है कि वह जानबूझकर हक़ का इनकार करने वाला और बिना किसी कारण (उज़्र) के टाल मटोल करने वाला है। और अगर कोई संदेह है जिसकी वजह से वह मना कर रहा है, तो यह जायज़ नहीं है। और अल्लाह ही सबसे ज़्यादा जानने वाला है।”
शैख की वेबसाइट से उद्धरण समाप्त हुआ।
http://ibn-jebreen.com/ftawa.php?view=vmasal&subid=9518&parent=786
प्रश्न संख्याः (27068) के उत्तर में : इस बात को राजेह (उचित) कहा गया है कि उत्पीड़ित व्यक्ति बिना किसी वृद्धि के अपने हक़ को ले सकता है, यदि वह अपने उत्पीड़क की संपत्ति में से किसी चीज़ को पा लेता है।
अतः यदि मालिक के किराए का हक़ बिना किसी संदेह या किरायेदार की तरफ से किसी विवाद (असहमति व विरोध) के बिना तयशुदा है, तो उसके लिए उसके धन से किराए की राशि लेने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।
लेकिन यदि किराए के साबित होने के संबंध में उन दोनों के बीच कोई विवाद है, तो इसमें काज़ी (न्यायाधीश) ही फैसला करेगा।
दूसरी बात :
यदि हम कहते हैं कि यह अनुमेय है, तो किराये पर देनेवाले (पट्टादाता) के लिए जायज़ नहीं है कि वह इस टेलीविज़न से या इस रिसीवर से हराम (निषिद्ध) तरीक़े से लाभ उठाए। जैसे कि उनका उपयोग अल्लाह तआला की अवज्ञा में करे, इस प्रकार कि ऐसी फिल्मों और नाटकों को देखे जिन्हें अल्लाह ने हराम क़रार दिया है, जिनसे अश्लीलता फैलती है, और मुसलमानों के घरों में भ्रष्टाचार का प्रसारण होता है। या इसे उन लोगों को बेचना जिनके बारे में अधिक संभावना होती है कि वे़ इसका निषिद्ध उपयोग करते हैं।
“स्थायी समिति के फतावा” (13/109) में कहा गया है किः वह सब कुछ जो हराम तरीक़े से इस्तेमाल किया जाता है या ऐसा होने की सबसे अधिक संभावना होती है तो इसे बनाना, इसका आयात करना, इसे बेचना और मुसलमानों के बीच इसे बढ़ावा देना हराम है।”
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं:
अगर वह टेलीविज़न किसी ऐसे व्यक्ति को बेचता है जो इसका उपयोग अनुमेय तरीक़े से करता है - जैसे कि वह इसे कुछ ऐेसे लोगों को बेचे जो लोगों को लाभ पहुँचाने वाली फिल्मों को दिखाते हैं - तो यह ठीक है। लेकिन अगर वह इसे आम जनता को बेचता है, तो वह इसके कारण दोषी होगा, क्योंकि अधिकांश लोग टीवी का उपयोग निषिद्ध चीजों में करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेलीविज़न पर जो देखा जाता है उनमें से कुछ अनुमेय हैं, और कुछ लाभदायक हैं, और कुछ हानिकारक व हराम हैं, और अधिकांश लोग इसके और उसके बीच अंतर नहीं करते हैं।”
शैख की बात संक्षेप के साथ समाप्त हुई।
''अल्लिकाउश-शह्री'' (1/49).
और अल्लाह ही सबसे अधिक जानने वाला है।