हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम :
अगर औरत को मासिक धर्म जारी करने के लिए दवा पीने की ज़रूरत पड़ जाए, या तो इसलिए कि मूल रूप से दवा लिए बिना उसे मासिक धर्म नहीं आता है, जैसाकि प्रश्न में उल्लेख हुआ है, और या तो इसलिए कि वह नियमित रूप से नहीं आता है, जैसाकि औरतों की आदत होती है, तो इसमें उसके ऊपर कोई गुनाह नहीं है, जब वह दवा स्वयं जाइज़ हो और उसका सेवन करने पर उसे कोई नुक़सान न पहुँचता हो।
अगर दवा सेवन करने के बाद उसे मासिक धर्म आना शुरू हो जाए, तो वह अपने मासिक धर्म की अवधि भर नमाज़ और रोज़ा छोड़ देगी, फिर उसके बाद रोज़े की क़ज़ा करेगी और नमाज़ की क़ज़ा नहीं करेगी, जैसाकि अन्य सभी औरतें अपनी मासिक धर्म में करती हैं।
नववी - अल्लाह उन पर दया करे - ने फरमाया :
“ अगर औरत मासिक धर्म की दवा पी ले और उसे मासिक धर्म शुरू हो जाये तो उसके ऊपर क़ज़ा (अर्थात् नमाज़ की क़ज़ा) अनिवार्य नहीं है। इसी तरह अगर जनीन (भ्रूण) को फेंकने (गिराने) की दवा पी ले और वह उसके गर्भास्थ को गिरा दे और वह प्रसव की स्थिति में हो जाए तो उसके लिए, दो मतों में से शुद्ध कथन (मत) के अनुसार, प्रसव की अवधि की नमाज़ों की क़ज़ा करना आवश्यक नहीं है।” “अल-मजमूअ़” (3/10) से संपन्न हुआ।
दूसरा :
औरत के लिए रमज़ान के महीने में रोज़ा तोड़ने के मक़सद से जानबूझ कर रमज़ान के महीने में या उसके क़रीब इस दवा का सेवन करना हराम (निषिद्ध) है।
अल-मरदावी रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - फरमाते हैं:
“ मासिक धर्म लाने के लिए दवा पीना जाइज़ है, इसे तक़़ीयुद्दीन (अर्थात् इब्ने तैमिय्या) ने उल्लेख किया है, और 'अल-फुरूअ़' में इसी पर बस किया है, किंतु रमज़ान के क़रीब उसके अंदर रोज़ा तोड़ने के लिए (दवा सेवन करना) जाइज़ नहीं है, इसे अबू याला अस्सगीर ने वर्णन किया है।
मैं (अल-मरदावी) कहता हूँ कि : उनका कोई विरोध करने वाला (मुखालिफ) नहीं है।” किताब “अल-इंसाफ” (1/273) से समाप्त हुआ, तथा “अल-फुरूअ़” (1/393) “अल-फतावा अल-कुब्रा” (5/315).
तथा शैख मनसूर अल-बहूती रहिमुहल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - फरमाते हैं :
“ औरत के लिए मासिक धर्म लाने के लिए वैध दवा पीना जाइज़ है, परंतु रमज़ान के निकट उसमें रोज़ा तोड़ने के लिए ऐसा करना जाइज़ नहीं है, जैसेकि कोई रोज़ा तोड़ने के लिए यात्रा करे।”
किताब “कश्शाफुल किनाअ” (1/218) से समाप्त हुआ।