हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जिस व्यक्ति ने 'पहले तहल्लुल' (एहराम से बाहर निकलने के पहले चरण) के बाद और तवाफ़े इफ़ाज़ा करने से पहले अपनी पत्नी के साथ संभोग कर लिया, तो इसके कारण उसका हज्ज खराब (अमान्य) नहीं होगा। लेकिन उसने ऐसा करके पाप किया है। उसके लिए अनिवार्य है कि उससे पश्चाताप करे और माफी मांगे। तथा वह हरम की सीमा से बाहर निकल कर हिल्ल के क्षेत्र में जाए, ताकि नए सिरे से एहराम बाँधे और तवाफ़े इफ़ाज़ा करे।
इसी तरह उसके लिए एक बकरी ज़बह करना भी अनिवार्य है, जिसे हरम के गरीबों में वितरित कर दिया जाएगा, और वह स्वयं उसमें से कुछ नहीं खाएगा।
यदि उसकी पत्नी भी (हज्ज के) एहराम में थी और संभोग करने में उसका साथ दी थी, तो उसके ऊपर भी उसके जैसा ही करना अनिवार्य है। लेकिन अगर पति ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया है, तो उसकी पत्नी पर कुछ भी अनिवार्य नहीं है।
''अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या (2/192)'' में आया है :
विद्वानों की इस बात पर सर्वसहमति है कि पहले तहल्लुल (एहराम से बाहर निकलने के पहले चरण) के बाद संभोग करना हज्ज को फ़ासिद (अमान्य) नहीं करता है ... लेकिन आवश्यक दंड के बारे में मतभेद हुआ हैः हनफिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला इस बात की ओर गए हैं कि उस पर एक बकरी अनिवार्य है। उन्होंने इस तथ्य को तर्क बनाया है कि उसका अपराध हल्का है, क्योंकि वह औरतों के अलावा चीज़ों के संबंध में एहराम की पाबंदी से बाहर निकल चुका था।''
इमाम मालिक ने कहा - और यही शाफेइय्या और हनाबिला के यहाँ भी एक कथन है - : उसपर एक ऊँट का बलिदान अनिवार्य है। अल-बाजी ने इसका यह कारण बताया है कि उसने एहराम के प्रति गंभीर अपराध किया है।
तथा इमाम मालिक और हनाबिला ने पहले तहल्लुल के बाद और तवाफ़े इफ़ाज़ा करने से पहले इस अपराध को करने वाले व्यक्ति पर यह अनिवार्य करार दिया है कि वह हरम की सीमा से बाहर निकलकर हिल्ल के क्षेत्र में जाए और एक उम्रा करे, क्योंकि इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने ऐसा ही कहा है... जबकि हनफिय्या और शाफेइय्या ने इसे अनिवार्य नहीं किया है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख़ मुहम्मद बिन इब्राहीम रहिमहुल्लाह ने कहा:
एहराम से बाहर निकलने के बाद संभोग करना हज्ज को फासिद (अमान्य) नहीं करता है, चाहे वह इफ्राद हज्ज करनेवाला हो या क़िरान हज्ज करनेवाला हो, बल्कि वह केवल एहराम को फ़ासिद (अमान्य) करता है, इसका अर्थ यह है कि उसका तवाफ़े इफाज़ा करना सही (मान्य) नहीं होगा यहाँ तक कि वह हिल्ल के क्षेत्र में बाहर जाकर एहराम बाँधे फिर मक्का में प्रवेश करे और सही एहराम की अवस्था में तवाफ़े इफ़ाज़ा करे, ताकि वह हिल्ल और हरम दोनों एकत्र कर ले।
तथा उसपर एक बकरी का फिद्या (बलिदान) अनिवार्य है जिसे हरम में ज़बह किया जाएगा और गरीबों को खिला दिया जाएगा, और वह स्वयं उससे कुछ भी नहीं खाएगा, तथा उसकी पत्नी पर एक अन्य बकरी अनिवार्य है, अगर उसने ऐसा करने में अपने पति का साथ दिया था, लेकिन अगर उसे मजबूर किया गया था, तो उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
''फ़तावा व रसाइल मुहम्मद बिन इब्राहीम (5/203-204) ''
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
एक आदमी ने तवाफ़े इफ़ाज़ा से पहले संभोग कर लिया, जबकि वह जमरात को कंकड़ी मार चुका था और अपना सिर मुँडा चुका था, तो उसे क्या करना चाहिए?
तो उन्हों ने जवाब दिया:
''उस पर कुछ भी अनिवार्य नहीं है, सिवाय इसके कि वह एक फ़िद्या ज़बह करके गरीबों को दान कर दे... तथा उसे चाहिए कि (हरम की सीमा से बाहर) हिल्ल के क्षेत्र से फिर से एहराम बाँधे ताकि वह एहराम की अवस्था में तवाफ़ कर सके।''
“लिक़ाउल बाबिल मफ्तूह (90/17)”
अगर वह अपने एहराम को नवीनीकृत करने के लिए हरम के क्षेत्र से बाहर नहीं गया, तो भी हमें उम्मीद है कि उसका तवाफ सही है। शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया:
एक व्यक्ति ने तवाफ़े इफ़ाज़ा नहीं किया और वह अपने देश वापस चला गया और अपनी पत्नी के साथ संभोग किया। तो उसे क्या करना होगा?
तो उन्हों ने जवाब दिया:
''उसे महिमावान अल्लाह के समक्ष पश्चाताप करना होगा, और उसपर एक बलिदान अनिवार्य है जो मक्का में गरीबों के लिए ज़बह किया जाएगा। तथा उसके लिए ज़रूरी है कि वह (मक्का) वापस आए और तवाफे इफ़ाज़ा करे; क्योंकि तवाफे इफ़ाज़ा करने से पहले अपनी पत्नी के साथ संभोग करना जायज़ नहीं है और ऐसा करने पर एक बलिदान देना ज़रूरी है। सही दृष्टिकोण यह है कि उसके लिए एक बकरी, या एक ऊँट का सातवां हिस्सा, या एक गाय का सातवां भाग पर्याप्त है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
''मजमूओ फ़तावा इब्ने बाज़ (17/180) ''
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।