सोमवार 22 जुमादा-2 1446 - 23 दिसंबर 2024
हिन्दी

उनके माता पिता ने अपनी मृत्यु से पूर्ण एक विशिष्ट तरीक़े से मृत्यु संपत्ति को विभाजित करने की वसीयत की तो क्या उनके लिए उसका पालन करना अनिवार्य है ॽ

161164

प्रकाशन की तिथि : 22-02-2012

दृश्य : 5064

प्रश्न

पिछले वर्ष मेरी माँ का देहांत हो गया, और उस समय हमने मृत्यु संपत्ति को विभाजित करना नहीं चाहा और हमने हर चीज़ अपने पिता के अधिकार अधीन कर दिया . . किंतु मेरे पिता जी की भी 6 ज़ुलहिज्जा को मृत्यु हो गई।
हम तीन बहनें और एक भाई हैं, मेरी माँ ने आदेश दिया था कि हम लड़कियों को पूरा सोना दे दिया जाए जो उन्हों ने छोड़ा है और मेरा भाई घर ले ले, और इस तरह मृत्यु संपत्ति -उनकी समझ के अनुसार- बराबरी के साथ विभाजित हो जायेगी . . . अब हम नहीं जानते कि हम क्या करें . . . ! विरासत को शरीअत के अनुसार विभाजित करें या अपने माता पिता की इच्छा के अनुसार विभाजित करें ॽ कृप्या इस मामले को स्पष्ट करें, अल्लाह आप को अच्छा बदला दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सभी प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

अगर माता और पिता ने अपनी संपत्ति को अपने जीवन में विभाजित नहीं किया है,इस प्रकार कि हर व्यक्ति अपने हिस्से को ले ले और मालिकों के समान उसमें व्यवहार करे,तो उन्हों ने जो बात कही है वह वसीयत समझी जायेगी,और किसी वारिस के लिए वसीयत को शेष वारिसों की अनुमति के बिना लागू नहीं किया जायेगा।

यदि सभी वारिस वसीयत से सहमत हैं,और वे व्यस्क हैं और समझबूझ रखते हैं तो इसमें कोई समस्या नहीं है,और यदि आप लोग मीरास को शरीअत के अनुसार विभाजित करना चाहें तो आप लोगों को इस का अधिकार है,और आपके लिए वसीयत को लागू करना अनिवार्य नहीं है क्योंकि मौलिक रूप से किसी वारिस के लिए वसीयत जाइज़ नहीं है,और यदि ऐसा होता है तो वारिसों की सहमति के बिना वह लागू नहीं की जायेगी,क्योंकि अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2870), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2120), नसाई (हदीस संख्या : 4641) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 27137) ने अबू उमामा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लाम को फरमाते हुए सुना : “अल्लाह तआला ने हर हक़ वाले को उसका हक़ दे दिया है, अतः किसी वारिस के लिए वसीयत करना जाइज़ नहीं है।” इस हदीस को अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में सही कहा है।

तथा दारक़ुतनी ने इब्ने अब्बास की हदीस से इस शब्द के साथ रिवायत किया है : “किसी वारिस के लिए वसीयत करना जाइज़ नहीं है सिवाय इसके कि वारिस लोग चाहें।” हाफिज़ इब्ने हजर ने बुलूगुल मराम में इसे हसन कहा है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर