हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यदि पति नमाज़ नहीं पढ़ता है तो आप की बहन के लिए उसके साथ बने रहना जाइज़ नहीं है,क्योंकि नमाज़ छोड़ने वाला विद्वानों के दो कथनों में से सही राय के अनुसार काफिर (नास्तिक) है,तथा प्रश्न संख्या (5208)और (6257) का उत्तर देखें।
और यदि वह निकाह के अनुबंध के दौरान नमाज़ नहीं पढ़ता था तो वह अनुबंध (निकाह) ही शुद्ध नहीं है,और बच्ची उस पति की ओर मंसूब की जायेगी क्योंकि वह एक ऐसे निकाह के परिणाम स्वरूप पैदा हुई है वे दोनों जिसके शुद्ध होने का अक़ीदा रखते थे।
और यदि उसका नमाज़ छोड़ना निकाह के अनुबंध के बाद आरंभ हुआ है,और वह उसकी इद्दत समाप्त होने तक निरंतर उसे छोड़ता रहा है तो निकाह टूट गया,फिर अगर उसने तौबा कर लिया और नमाज़ पढ़ने लगा तो वह पत्नी उसकी ओर एक नये अनुबंध के द्वारा वापस लौट सकती है यदि वह उस से संतुष्ट है।
तथा कुछ विद्वानों का कहना है कि : यदि उसने तौबा कर लिया और नामज़ पढ़ने लगा,तो पत्नी उसकी ओर वापस लौट आयेगी,चाहे इद्दत समाप्त होने के बाद ही क्यों न हो,बशर्ते कि उसने किसी दूसरे आदमी से शादी न कर ली हो।
इस से आपको पता चल सकता है कि उसे शरीअत के दृष्टिकोण से उस से तलाक लेने की आवश्यकता नहीं है, किंतु इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वह सरकारी कागज़ात में उसकी पत्नी समझी जाती है और इसके आधार पर उन दोनों के बीच विरासत और उसे दूसरे आदमी से शादी करने से रोकना निष्कर्षित होता है, उसे चाहिए कि तलाक़ लेने का प्रयास करे,चाहे उसे कुछ पैसा ही देना पड़े ताकि वह उसे तलाक़ दे दे।
जहाँ तक बच्ची का संबंध है तो उसके पालन पोषण का अधिकार उसकी माँ के लिए है।
तथा पति को अल्लाह सर्वशक्तिमान से तौबा (पश्चाताप) करने और नमाज़ पढ़ने की नसीहत करनी चाहिए, और उसे सूचित करना चाहिए कि उसकी पत्नी उसके लिए हलाल नहीं है यहाँ तक कि वह नमाज़ पढ़ने लगे। यदि वह तौबा कर ले और अल्लाह की तरफ पलट आए तो अल्हम्दुलिल्लाह, और अगर वह अपनी स्थिति पर बाक़ी रहे तो आपकी बहन को तलाक़ लेने का प्रयास करना चाहिए,तथा वह इस मामले को अदालत में ले जा सकती है और वह उसके पास खर्चा न होने और नुक़सान के कारण तलाक़ मांग सकती है।
हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि उसके लिए आसानी और रास्ता पैदा फरमाये।