शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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आशूरा का रोज़ा केवल छोटे गुनाहों को मिटाता है, बड़े गुनाहों के लिए तौबा ही है

प्रश्न

यदि मैं उन लोगों में से हूँ जो शराब पीते हैं, फिर मैं ने नीयत किया कि कल और कल के बाद - मुहर्रम के नवें और दसवें दिन - का रोज़ा रखूंगा, तो क्या यह रोज़ा मेरे लिए माना जायेगा, और इसके परिणाम स्वरूप क्या मेरे पिछले साल और आने वाले साल के गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

जिसकी वजह से अल्लाह तआला दो साल के गुनाह क्षमा कर देता है वह अरफा के दिन का रोज़ा है, रही बात आशूरा के रोज़ा की तो उसके द्वारा अल्लाह तआला एक साल के गुनाह क्षमा करता है।

अरफा के दिन के रोज़े की फज़ीलत प्रश्न संख्या (98334) के उत्तर में देखें, और आशूरा के रोज़े की फज़ीलत प्रश्न संख्या (21775) के उत्तर में देखें।

दूसरा :

इसमें कोई सन्देह नहीं कि शराब पीना बड़े गुनाहों में से है, विशेषकर उसके उपर डटे और अटल रहने के साथ ; शराब बुराईयों की जननी है, और वह हर बुराई का द्वार है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शराब के संबंध में दस लोगों पर लानत -धिक्कार- भेजी है। तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 1295) ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया: अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शराब के बारे में दस व्यक्तियों पर लानत फरमाई है : उसको निचोड़ने वाला, उसे निचोड़वाने वाला, उसके पीने वाला, उसे उठाने वाला, जिसके पास उसे उठाकर लाया जा रहा है, उसे पिलाने वाला, उसका बेचने वाला, उसकी क़ीमत खाने वाला, उसे खरीदने वाला और जिसके लिए उसे खरीदा गया है।'' अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है।

अनिवार्य यह है कि उसे त्याग दिया जाए, उसके सेवन से तौबा किया जाय और अल्लाह की ओर ध्यान-मग्न हुआ जाए।

आशूरा के रोज़े या अरफा के रोज़े केवल छोटे गुनाहों को मिटाते हैं, रही बात कबीरा गुनाहों की तो उसके लिए सच्ची और खालिस तौबा की ज़रूरत है।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

''आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमाया : अरफा का रोज़ा दो वर्ष के गुनाहों के लिए कफ्फारा (परायश्चित) बन जाता है, और आशूरा का रोज़ा एक वर्ष के गुनाहों को मिटाता है। लेकिन सामान्यता यह कहना कि वह गुनाहों को मिटा देता है, इससे यह ज़रूरी नहीं हो जाता है कि वह कबीरा गुनाहों को बिना तौबा के ही मिटा देता है ; क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है कि ''एक जुमा दूसरे जुमा तक और एक रमज़ान दूसरे रमज़ान तक उनके बीच के गुनाहों के लिए कफफारा है यदि बड़े गुनाहों से बचा जाए।'' और यह बात मालूम है कि नमाज़, रोज़ा से श्रेष्ठतर है, और रमज़ान का रोज़ा अरफा के रोज़ा से बढ़कर है, और वह गुनाहों को उसी स्थिति में मिटाता है जब कबीरा गुनाहों से बचा जाए, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह क़ैद (शर्त) लगाई है ; तो यह कैसे गुमान किया जा सकता है कि एक या दो दिन का नफली (एच्छिक) रोज़ा, ज़िना (व्यभिचार), चोरी, शराब खोरी, जुआ, जादू जैसे गुनाहों को मिटा सकता है?

अतः ऐसा नहो सकता।''

''मुख्तसर फतावा मिस्रिया'' (1/254) से समाप्त हुआ।

इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं :

''कुछ लोग कहते हैं कि : आशूरा का रोज़ा पूरे साल के गुनाहों को मिटा देता है, और अरफा के रोज़े का अज्र व सवाब अतिरिक्त है, जबकि इस फरेब और धोखे में फंसे इस व्यक्ति को पता नहीं कि रमज़ान का रोज़ा और पाँच समय की नमाज़ें, अरफा के दिन और आशूरा के दिन के रोज़े से अधिक महान और बढ़कर हैं, और ये उसी समय उनके बीच होने वाले गुनाहों को मिटाते हैं जब कबीरा गुनाहों से बचा जाए। चुनांचे एक रमज़ान दूसरे रमज़ान तक और एक जुमा दूसरे जुमा तक छोटे गुनाहों को मिटाने पर सक्षम नहीं होते हैं मगर जब उनके साथ बड़े गुनाहों को त्यागना सम्मिलित हो जाए, तो दोनों तत्व एक साथ मिलकर छोटे गुनाहों को मिटाने पर सक्षम हो जाते हैं।

तो जब मामला यह है तो एक दिन का नफली रोज़ा हर उस बड़े गुनाह को कैसे मिटा सकता है जिसे बन्दे ने किया है और वह उस पर अटल है, उससे तौबा करने वाला नहीं है? यह असंभव है।

लेकिन यह दुर्लभ नहीं है कि अरफा का रोज़ा और आशूरा का रोज़ा सामान्य रूप से साल के सभी गुनाहों के लिए कफ्फारा बन जाएं, और वह वादे के उन नुसूस में से हों जिनकी कुछ शर्तें और रूकावटें हैं, और उसका कबीरा गुनाहों पर अटल रहना गुनाहों को मिटाने में रूकावट बनता हो। और अगर वह कबीरा गुनाहों पर स्थिर न रहे तो रोज़ा और गुनाहों पर स्थिर न रहना दोनों मिलकर सहयोग करते हैं और सामान्य रूप् से गुनाहों को मिटाने पर आपस में मदद करते हैं, जिस तरह कि रमज़ान और पांच समय की नमाज़ें गुनाहों से बचने के साथ, छोटे गुनाहों को को मिटाने पर सहयोग और मदद करनेवाले थे, जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

''यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हमतुम्हारी बुराइयों (छोटे गुनाह) को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान मेंप्रवेश कराएँगे।'' (सूरतुन्निसा : 31)

इससे मालूम हुआ कि किसी चीज़ को परायश्चित का कारण बनाना इस बात से नहीं रोकता है कि वह और एक अन्य कारण परस्पर परायश्चित पर सहयोग और मदद करें, और दोनों कारणों के एकत्र होने की स्थिति में परायश्चित अकेले एक कारण के होने से अधिक ताक़तवर और अधिक परिपूर्ण होगा, और परायश्चित के कारण जितने ही ताक़तवर होंगे, उतना ही वह अधिक ताक़तवर, मज़बूत, परिपूर्ण और व्यापक होगा।'' किताब ‘‘अल-जवाबुल काफी'' (पृष्ठ : 13)- से समाप्त हुआ।

तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1862) ने अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत किय है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जिसने शराब पिया अल्लाह उसकी चालीस सुबह - अर्थात दिन - कोई नमाज़ क़बूल नहीं करेगा, यदि वह पश्चाताप और तौबा कर तो अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार कर लेता है, यदि वह फिर उसकी तरफ लौट आता है तो अल्लाह उसकी चालीस दिन कोई नमाज़ क़बूल नहीं करता है। फिर यदि वह तौबा करता है तो अल्लाह उसकी तौबा स्वीकार कर लेता है, यदि वह फिर शराब पीने की तरफ लौट आता है तो अल्लाह उसकी चालीस दिन नमाज़ नहीं क़बूल करता है, फिर अगर वह तौबा करता है तो अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार कर लेता है। यदि वह चौथी बार शराब पीने की ओर लौट आता है तो अल्लाह उसकी चालीस दिन नमाज़ नहीं क़बूल करता है, यदि वह तौबा करता है तो अल्लाह उसकी तौबा नहीं क़बूल करता और उसे खबाल के नदी से पिलायेगा।'' इसे अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

अल्लामा मुबारकपूरी ने ‘‘तोहफतुल अहवज़ी'' में फरमाया : ‘‘और कहा गया है कि : यहाँ विशिष्ट रूप से नमाज़ का उल्लेख इसलिए किया गया है क्योंकि वह शरीर की सबसे श्रेष्ठ इबादत है, यदि वह क़बूल नहीं हुई, तो उसके अलावा इबादतें तो और भी क़बूल न होंगी।''

तोफतुल अहवज़ी (5/488) से कुछ परिवर्तत के साथ समाप्त हुआ। इसी तरह की बात ईराक़ी और मुनावी ने भी कही है।

जब शराब पीने पर अटल रहने के साथ इबादतें नहीं स्वीकार की जाती हैं तो आशूरा का रोज़ा कैसे स्वीकार किया जायेगा? बल्कि वह एक साल के गुनाहों का कैसे परायश्चित बन सकता है?

अतः आपके ऊपर अनिवार्य है कि सच्ची शुद्ध तौबा करने में जल्दी करें, और आप जिस शराब पीने पर जमे हुए हैं उससे उपेक्षा करें, और आप जिस कोताही व लापरवाही पर क़ायम हैं उसकी भरपाई करें, और अधिक से अधिक बाक़ी रहने वाले नेक कार्य करें, आशा है कि अल्लाह आपकी तौबा स्वीकार कर ले और आप से जो कुछ अतीत में कोताही व लापरवाही और अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन हो चुका है, उसे क्षमा कर दे।

तीसरा :

हमने आप से जिन चीज़ों का वर्णन किया है, वे अरफा या आशूरा का रोज़ा रखने, या आप जो भी स्वेच्छिक भलाइयाँ व नेकियाँ, जैसे- नमाज़, रोज़ा, दान, क़ुर्बानी करना चाहें उसके लिए रूकावट नहीं है, शराब पीना इन सब के करने से नहीं रोकता है। किसी बड़े गुनाह में पड़ जाने का अर्थ यह नहीं होता है कि आप अपने आप को पूजा के कार्यों और भलाइयों से रोक लें, इससे तो मामला और बुरा व गंभीर हो जायेगा, बल्कि तौबा करने और गुनाह से रुक जाने में जल्दी करें, और अधिक से अधिक भलाईयां करे, अगरचे आपका मन आपके ऊपर गालिब आ जाए और आप कुछ गुनाहों में पड़ जाएं।

लेकिन कार्य का सही होना और उसका स्वीकार होना एक चीज़ है, और एक साल या दो साल के गुनाहों को मिटाने से संबंधित विशेषता और फज़ीलत एक दूसरी चीज़ है।

जाफर बिन यूनुस कहते हैं : मैं शाम में एक क़ाफिला में था, तो दीहाती लोग निकले और उसे छीन लिया और उसे अपने अमीर (सरदार) पर पेश करने लगे, तो उसमें एक थैला निकला जिसमें चीनी और बादाम था। उन्हों ने उससे खाया और सरदार नहीं खाता था!!

तो मैंने उससे कहा: तुम क्यों नही खाते हो? तो उसने कहा कि मैं रो़ज़े से हूँ।

मैंने कहा : तुम डाका डालते हो, लोगों का माल छीनते हो, हत्या करते हो, और तुम रोज़ा रखे हो!?

तो उसने कहा : हे शैख, मैं मुसालहत (सुधार) के लिए एक जगह बना रहा हूँ!!

कुछ समय बीतने के बाद जब मैंने उसे एहराम की हालत में अल्लाह के घर का तवाफ करते हुए देखा तो उससे कहा : क्या तुम वही आदमी हो?

उसने कहा : उस रोज़े ने मुझे इस स्थान पर पहुँचाया है !!

(तारीख दिमश्क़ 66/52)

तथा प्रश्न संख्या : (14289) का उत्तर देखें।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर